अगड़ों को आरक्षण के बाद कुड़मी समाज भी जोश में, चाहिए आदिवासी का दर्जा
कुड़मी को आदिवासी का दर्जा देने के लिए जनजातीय कार्य मंत्रालय को अनुशंसा भेजी थी। यह मसला राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग तक गया।
धनबाद, अश्विनी रघुवंशी। टुसू पर्व पर कुड़मी को आदिवासी का दर्जा देने की आवाज गूंजने लगी है। गांव-गांव में टुसू मेला लग रहे हैं, जहां हजारों लोग जुटते हैं। कुड़मी बहुल इलाके के हर टुसू मेला में छोटे बड़े कुड़मी नेता से लेकर प्रतिष्ठित लोगों के मुंह से यही सुनने को मिल रहा है कि कुड़मी भी आदिवासी हैं, हमारे लिए अनुशंसा कीजिए। नाराजगी इस बात की भी है कि सोहराय और टुसू पर्व पर सरकारी अवकाश घोषित नहीं किया गया।
दरअसल, अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने कुड़मी को आदिवासी का दर्जा देने के लिए जनजातीय कार्य मंत्रालय को अनुशंसा भेजी थी। यह मसला राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग तक गया। यह अनुशंसा दिल्ली होते हुए रांची के जनजातीय शोध संस्थान तक आया। जनजातीय शोध संस्थान ने अपनी अनुशंसा में कुड़मी को अनुसूचित जनजाति मानने से मना कर दिया। आशा टूट गई। मामला विधानसभा के भीतर गूंजा। संसदीय कार्य मंत्री के नाते सरयू राय ने सदन में सरकार की ओर से आश्वासन दिया था कि कुड़मी के लिए फिर भारत सरकार को अनुशंसा भेजी जाएगी।
टुसू कुड़मी समाज का बड़ा पर्व है। चाउड़ी, बाउड़ी और टुसू के दिन सरकारी अवकाश होना चाहिए। संथालपरगना समेत और जगह पर सोहराय पर्व मनाया जाता है। दोनों पर्व पर एक साथ पूरे झारखंड में अवकाश दिया जाना चाहिए।
- महेंद्र महतो, केंद्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष, कुड़मी विकास मोर्चा (पुटकी निवासी)
कुड़मी सरकारी दस्तावेजों में आदिवासी के नाते दर्ज रहे हैं। कुड़मी भी प्रकृति पूजक हैं। सरकारी अमला भी समझ रहा है। जल्द गोला के पास दो दिन का चिंतन मंथन होगा। सामूहिक रणनीति बनेगी।
- महादेव दुंगरीयार, संयोजक, कुड़माली भाखीचारी आखड़ा (तालगढिय़ा, बोकारो)
झारखंड आंदोलन के शहीदों की सूची देखिए तो सबसे अधिक नाम कुड़मी के मिलेंगे, तब झामुमो हमें आदिवासी मानता था। 2005 में भाजपा के घोषणा पत्र में यह बात थी। दर्जा नहीं मिला। हम लड़ेंगे।
- संतोष महतो, केंद्रीय सचिव, कुड़मी विकास मोर्चा (पिलैया, बरवाअड्डा)
2012 में जाति जनगणना के दस्तावेज में भी अनुसूचित जनजाति की सूची में कुड़मी का नाम है। अब राज्य सरकार को तुरंत अनुशंसा नहीं करे। इसमें विलंब से कुड़मी समाज में गुस्सा बढ़ रहा है।
- डॉ बीएन महतो, सहायक प्रोफेसर, चास कॉलेज (भंडरो, पिंड्राजोड़ा)
झारखंड में कुड़मी बहुसंख्यक है। षडय़ंत्र के तहत उनका नाम आदिवासी की सूची से हटाया गया। ईसाई धर्म मानने वाले को आदिवासी माना जाता है। कुड़मी का क्या कसूर है। हकीकत में कुड़मी का धर्म सरना है। कुड़मी प्रकृति को पूजते हैं। कुड़मी का खान पान, रहन सहन, संस्कृति, धर्म, रीति रिवाज, सब कुछ आदिवासी के समान है। सरकार कुछ करे नहीं तो चुनाव में बड़ा नुकसान हो जाएगा।
- गणपत महतो, कार्यकारी अध्यक्ष, आदिवासी कुड़मी समाज (सरायढेला)