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इथियोपिया से कोलेश्वर का शव झारखंड आने में लग गए 17 दिन, पोचरी गांव में क्रंदन

10 जनवरी 2022 को कोलेश्वर महतो की मौत पूर्वी अफ्रीका के इथियोपिया में काम के दौरान केबल पुलिंग मशीन से तार खींचने के दौरान अचानक रस्सी टूटने से हो गयी थी। वे पावर ट्रांसमिशन कंपनी में काम करते थे। मौत के बाद कंपनी मुआवजा देने को तैयार नहीं थी।

By MritunjayEdited By: Published: Thu, 27 Jan 2022 03:42 PM (IST)Updated: Fri, 28 Jan 2022 11:05 AM (IST)
इथियोपिया से कोलेश्वर का शव झारखंड आने में लग गए 17 दिन, पोचरी गांव में क्रंदन
पोचरी गांव में रोते-बिलखते कोलेश्वर महतो के स्वजन।

जागरण संवाददाता, गिरिडीह। गुरुवार सुबह कोलेश्वर महतो का शव अफ्रीका के इथोपिया से बगोदर के पोचरी गांव पहुँचा तो परिजनों के हृदय विदारक चीत्कार से पूरा माहौल गमगीन हो गया। महतो का पार्थिव शरीर 16 दिनों बाद बुधवार को सेवा विमान से रांची पहुंचा था। वहां से एम्बुलेंस में गांव पोचारी लाया गया। शव देखने के साथ कोलेश्वर की विधवा पत्नी टेकनी देवी का रोते- रोते बुरा हाल हो चुका है। वे लगातार अचेत हो जा रही हैं। आस- पास की महिलाएं उसे संभाल रही है। वह अपने पति के खोने के गम में वह किसी की नहीं सुन रही हैं।

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पीड़ित पत्नी यही कहते हुए अनवरत रो रही हैं कि हम केकर बिगड़ले रहनी हा, अब हमनी के केकरा सहारे रहब। उसकी पत्नी यह कह कर दहाड़ मार रही हैं कि मुझे क्या मालूम कि मेरे पति मुझे ठुकरा कर जिंदगी के उस दहलीज पर ले जाकर खड़ा कर देंगे कि जहां आंखों के आंसू ही सूख जाएंगे। विधवा पत्नी की विलाप से अन्य लोग भी मर्माहत हो रहे हैं। इसके पूर्व मृतक कोलेश्वर महतो का शव 17 दिनो बाद जैसे ही उनके घर पहुंचा तो बूढ़े, नौजवान उसके घर की तरफ दौड़ पड़े ।मृतक के पुत्र कामेश्वर महतो,कृष्णा कुमार व बेटी सरस्वती कुमारी मृत पिता के शव को बिलख रहे थे।

बताते चले कि 10 जनवरी 2022 को कोलेश्वर महतो की मौत अफ्रीका के इथोपिया में काम के दौरान केबल पुलिंग मशीन से तार खींचने के दौरान अचानक रस्सी टूटने से हो गयी थी। वे पावर ट्रांसमिशन कंपनी में काम करते थे। कोलेश्वर महतो की मौत के बाद कंपनी ने मुआवजा देने में आनाकानी करना शुरू कर दिया। बाद में दबाव बनाने पर कंपनी 25 लाख रुपया का मुआवजा देने को राजी हुई।की सहमति बन पायी।

प्रवासी मजदूरों के हित में कार्य करने वाले समाजसेवी सिकन्दर अली का कहना हैं कि झारखंड से दूसरे राज्य और विदेश जाने वाले अधिकांश प्रवासी श्रमिकों की मौत जोखिम वाले काम करने से होती है।अगर सरकार कंपनियों के लिए सख्त नियम बनाये तो श्रमिकों की मौत के बाद एक निश्चित रकम मुआवजा के रूप में कंपनियों को देना ही पड़ेगा। इससे गरीब मजदूरों के परिवारों को कुछ राहत मिलती।


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