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Jharkhand Elephants Attack: मादा हाथी से संसर्ग के लिए होते रहता संघर्ष, इस कारण झुंड से बिछड़ते और इंसानों पर करते हमले

Giridih Jharkhand Elephants Attack लंबे कालखंड तक गज अभयारण्य में काम कर चुके वन अधिकारियों का अध्ययन है कि झुंड से ऐसे कुछ हाथी बिछड़ते हैं जो मादा हाथी से संसर्ग के लिए हुई वर्चस्व की लड़ाई में झुंड के दूसरे हाथी से हार जाते हैं।

By MritunjayEdited By: Published: Mon, 22 Nov 2021 10:17 PM (IST)Updated: Tue, 23 Nov 2021 07:18 AM (IST)
Jharkhand Elephants Attack: मादा हाथी से संसर्ग के लिए होते रहता संघर्ष, इस कारण झुंड से बिछड़ते और इंसानों पर करते हमले
झुंड से बिछड़े हाथी को जंगल की ओर भगाते लोग ( फाइल फोटो)।

दिलीप सिन्हा, गिरिडीह। Giridih, Jharkhand Elephants Attack झुंड से बिछड़े जंगली हाथियों द्वारा इंसानों को कुचलकर मारने की घटनाएं अक्सर अलग-अलग इलाकों से सामने आती रहती हैं। सच्चाई यह है कि हाथी झुंड से बिछड़ते नहीं हैं, बल्कि वे स्वयं झुंड को छोड़कर निकल जाते हैं। लंबे समय तक गज अभयारण्य में काम कर चुके वन अधिकारियों का अध्ययन है कि झुंड से ऐसे कुछ हाथी निकलते हैं, जो मादा हाथी से संसर्ग के लिए हुई वर्चस्व की लड़ाई में झुंड के दूसरे हाथी से हार जाते हैं। विजयी हाथी की अधीनता स्वीकार करने वाले नर हाथी झुंड में रह जाते हैं, जबकि अधीनता स्वीकार नहीं करने वाले हाथी खुद ही झुंड से अलग हो जाते हैं।

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बूढ़ी हथिनी करती है झुंड का नेतृत्व

हाथी का जो परिवार है, वह मादा नेतृत्व वाला परिवार है। यही कारण है कि झुंड का नेतृत्व सबसे बूढ़ी हथिनी करती है। साथियों को परास्त कर झुंड में रहने वाला सबसे ताकतवर नर हाथी झुंड का नेतृत्व नहीं करता है। झुंड में अधिकांशत: हथिनी एवं उसके बच्चे होते हैं।

सालों भर उत्पात मचाते हैं हाथी

जंगली हाथी सालों भर गिरिडीह, धनबाद, हजारीबाग, बोकारो, पूर्वी एवं पश्चिमी सिंहभूम, जामताड़ा, दुमका समेत लगभग पूरे झारखंड में उत्पात मचाते हैं। प्रत्येक साल दर्जनों लोगों को कुचलकर मार डालते हैं। वन विभाग के पास लोगों को इस संकट से मुक्ति दिलाने का प्रबंध नहीं है। बंगाल के बाकुड़ा से विशेषज्ञों को बुलाकर हाथियों को एक जिले से खदेड़कर उन्हें दूसरे जिले में भेज दिया जाता है।

दुमका से हजारीबाग तक जंगली हाथियों का होता है आना-जाना

संथालपरगना के मसलिया एवं मसानजोर जंगल में 25 जंगली हाथियों का एक दल है। हाथियों का यह दल दुमका, जामताड़ा होते हुए धनबाद जिले के टुंडी प्रखंड के जंगलों से पारसनाथ पहाड़ पहुंचता है। इसके बाद गिरिडीह जिले के पीरटांड़, डुमरी, बिरनी, सरिया होते हुए हजारीबाग तक जाता है। फिर उसी रास्ते से वापस मसलिया एवं मसानजोर जंगल लौटता है। सालों भर 25 हाथियों का यह दल इस रास्ते पर आना-जाना करता है।

भले ही जा रही है जान, हाथी को पूज रहे इंसान

हाथी के प्रति आस्था का यह हाल है कि गिरिडीह जिले के पीरटांड़ प्रखंड के सरिया नारायणपुर मोड़ के गुली डाड़ी में पिछले साल झुंड से निकले एक हाथी की मौत हो गई थी। इससे स्थानीय लोग इतने आहत हुए कि उस जगह का नाम हाथी धाम कर दिया।

मादा हाथी से संसर्ग के लिए झुंड में संघर्ष होते रहता है। विजयी हाथी का जो नेतृत्व स्वीकार नहीं करता वह झुंड से बाहर निकल जाता है। झुंड से निकल जाने के बाद ऐसे हाथी गुस्सैल और खतरनाक हो जाते हैं। ऐसे ही हाथी हमलावर होकर इंसानों पर हमला करते हैं।

सबा आलम अंसारी, वन प्रमंडल पदाधिकारी, गिरिडीह।


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