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5 Lakh Prize Naxalite: रिश्ते का खून कर नक्सल की दुनिया में नुनूचंद ने किया प्रवेश, अब नक्सलियों के डर से पुलिस की शरण में

पीरटांड़ के भेलवाडीह गांव के निवासी पुनीत महतो का आठ साल का मासूम बेटा घर से गायब था। खोजबीन करने के बाद पता चला कि आखिरी बार उसे पुनीत के चचेरे भाई झबरू महतो के साथ देखा गया था। गांव में पंचायत हुई। सख्ती की तो झबरू महतो टूट गया।

By MritunjayEdited By: Published: Sun, 30 May 2021 07:58 AM (IST)Updated: Sun, 30 May 2021 08:31 AM (IST)
5 Lakh Prize Naxalite: रिश्ते का खून कर नक्सल की दुनिया में नुनूचंद ने किया प्रवेश, अब नक्सलियों के डर से पुलिस की शरण में
पांच लाख का इनामी नक्सली नुनूचंद महतो।

दिलीप सिन्हा, गिरिडीह : पुलिस के समक्ष सरेंडर करने वाला पांच लाख रुपये का इनामी एवं भाकपा माओवादी के पूर्व सब जोनल सदस्य नुनूचंद महतो उर्फ गांधी माओवाद की विचारधारा से प्रभावित होकर नक्सली नहीं बना था। अपने चचेरे भतीजे की हत्या का आरोप लगने के बाद गांव वालों के डर से घर से भाग गया था। करीब दो साल बाद नक्सली दस्ते में शामिल होकर ही गांव लौटा था। हत्यारोपित उसके चचेरे भाई झगरू महतो की आज तक घर वापसी नहीं हुई है। नुनूचंद एवं उसके चचेरे भाई दोनों का ससुराल पीरटांड़ की सीमा से सटे टुंडी के बंगारो में है। यह एक संयोग ही है कि कभी गांव वालों के डर से माओवादी बनने वाला नुनूचंद आज माओवादियों के डर से सरेंडर कर खुद को पुलिस संरक्षण में सुरक्षित महसूस कर रहा है। एक संयोग यह भी हे कि झगरू के घर पर ग्रामीणों ने और नुनूचंद के घर पर सरकार ने ताला जड़़ा है। ग्रामीणों से बातचीत में यह बात सामने आई है।

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नुनूचंद एवं उसका परिवार अंधविश्वासी

नुनूचंद एवं उसका परिवार अंध विश्वास पर भरोसा करता है। अंध विश्वास के ही कारण डायन को लेकर मासूम बच्चे की हत्या की गई थी। पीरटांड़ के भेलवाडीह गांव के निवासी पुनीत महतो का आठ साल का मासूम बेटा घर से गायब था। खोजबीन करने के बाद पता चला कि आखिरी बार उसे पुनीत के चचेरे भाई झबरू महतो के साथ देखा गया था। गांव में पंचायत हुई। ग्रामीणों ने सख्ती की तो झबरू महतो टूट गया। स्वीकार किया कि जामुन खिलाने के बहाने नदी की ओर ले गया था। इसके बाद वहां हत्या कर दी। ग्रामीणों को शक था कि इस हत्या में पुनीत के दूसरे चचेरे भाई नुनूचंद महतो का भी हाथ है। इसके बाद ग्रामीण उग्र हो गए और झबरू के साथ-साथ नुनूचंद पर भी हमला कर दिया। नुनूचंद किसी तरह जान बचाकर भागने में सफल रहा था।

सब जोनल कमेटी सदस्य बनने के बाद पांच लाख का इनाम

उसके चचेरे भाई झबरू को पंचायत में शारीरिक दंड के साथ-साथ आर्थिक दंड भी दिया गया। इसके बाद झबरू को गांव छोड़ना पड़ा। उसके घर पर ताला जड़ दिया गया। आज भी उसके घर में ताला जड़ा हुआ है। यह मामला वर्ष 2008 का है। वर्ष 2010 में माओवादी दस्ता में शामिल होने के बाद नुनूचंद आराम से घर आने-जाने लगा। फिर किसकी मजाल थी जो उसे निशाना बनाता। दस्ता में शामिल होते ही नुनूचंद सुर्खियों में आ गया। कई हिंसक घटनाओं को अंजाम देने के बाद उसे पारसनाथ सब जोनल कमेटी का सदस्य बना दिया गया। सरकार ने भी उसकी गिरफ्तारी के लिए पांच लाख रुपये का इनाम घोषित कर दिया।


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