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Kol Rebellion: ब्रितानिया हुकूमत के खिलाफ सफल था यह विद्रोह, वीर बुधु भगत को प्राप्त थी दैवीय शक्तियां

ब्रितानिया हुकूमत के खिलाफ कोल विद्रोह सफल रहा था। इसके नायक वीर बुधु भगत थे। उन्होंने अंग्रेज अफसरों को जबरदस्त चुनाैती पेश की। छोटानागपुर इलाके में अंग्रेजी हुकूमत को हिला कर रख दिया था। ऐसे वीर नायक बुधु भगत की 17 फरवरी को जयंती है।

By MritunjayEdited By: Published: Wed, 17 Feb 2021 03:58 PM (IST)Updated: Wed, 17 Feb 2021 03:58 PM (IST)
Kol Rebellion: ब्रितानिया हुकूमत के खिलाफ सफल था यह विद्रोह, वीर बुधु भगत को प्राप्त थी दैवीय शक्तियां
कोल विद्रोह के नायक वीर बुधु भगत ( प्रतीकात्मक फोटो)।

धनबाद, जेएनएन। क्रांतिकारी बुधु भगत का जन्म आज ही के दिन 17 फरवरी, 1792 में रांची (झारखंड) में हुआ था। बचपन से ही तलवारबाजी और धनुर्विद्या का अभ्यास करते थे। साथ में हमेशा कुल्हाड़ी रखते थे। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ कई आंदोलन किए। जनजातियों को बचाने के लिए शुरू किए गए लरका आंदोलन और कोल विद्रोह की अगुआई की। अपने दस्ते को गुरिल्ला युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया। अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ने के लिए उस समय एक हजार रुपये के इनाम की घोषणा की थी। 13 फरवरी, 1832 को अपने गांव सिलागाई में अंग्रेजों की सेना से लोहा लेते हुए साथियों के साथ शहीद हो गए। 

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अंग्रेजी सेना को दी जबरदस्त चुनाैती 

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में झारखंड के अनेकों लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का झंडा बुलंद किया। अनेकों ने आदिवासी समाज और देश की अस्मिता की रक्षा के लिए अपने प्राण कुर्बान कर दिये। ऐसे ही एक महानायक थे वीर बुधु भगत। रांची जिले के चान्हो प्रखंड स्थित सिलागांई गांव में 17 फरवरी, 1792 को एक उरांव आदिवासी परिवार में जन्मे बुधु भगत 1831-32 के कोल विद्रोह के महानायक थे। बुधु भगत ने अंग्रेजी सेना के खिलाफ जोरदार लड़ाई लड़ी। इसे इतिहास में लरका आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है। 

रांची और आसपास के इलाके में था प्रभाव 

छोटानागपुर के रांची और आसपास के इलाके के लोगों पर बुधु की जबरदस्त पकड़ी थी। उनके एक इशारे पर हजारों लोग अपनी जान तक कुर्बान करने के लिए तैयार रहते थे। बुधु भगत का सैनिक अड्डा चोगारी पहाड़ की चोटी पर घने जंगलों के बीच था। यहीं पर रणनीतियां बनती थीं। 

13 फरवरी, 1832 को हुए थे शहीद

ऐसा कहा जाता था कि वीर बुधु भगत को दैवीय शक्तियां प्राप्त थीं। इसलिए वह एक कुल्हाड़ी सदैव अपने साथ रखते थे। कोल आंदोलन के जननेता बुधु भगत ने अंग्रेजों के चाटुकार जमींदारों, दलालों के विरुद्ध भूमि, वन की सुरक्षा के लिए जंग छेड़ी थी। आंदोलन में भारी संख्या में अंग्रेजी सेना तथा आंदोलनकारी मारे गये थे। बुधु भी 13 फरवरी, 1832 को शहीद हो गए। उनकी कहानियां आज भी उन जंगलों में सुनी जाती हैं। 

क्रूर अंग्रेज अधिकारियों से अंतिम सांस तक लिया लोहा 

कोल विद्रोह के दाैरान अंग्रेज सैनिकों ने अंधाधुंध गोलियां चलायीं। बच्चे, बूढ़े और महिलाओं तक को नहीं बख्शा. देखते ही देखते 300 लाशें बिछ गयीं। अंग्रेज सैनिकों के खूनी तांडव के बाद लोगों के भीषण चीत्कार से पूरा इलाका कांप उठा। अन्याय के विरुद्ध जन विद्रोह को हथियार के बल पर खामोश कर दिया गया। बुधु भगत अपने दो बेटों च्हलधरज् और च्गिरधरज् के साथ अंग्रेजों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए। कहते हैं कि अंग्रेजों की नाक में दम कर देने वाले इस आदिवासी वीर को उनके साथियों के साथ कैप्टन इंपे ने सिलागांईगांव में घेर लिया। बुधु भगत चारों ओर से अंग्रेज सैनिकों से घिर चुके थे। वह जानते थे कि अंग्रेज फायरिंग करेंगे। इसमें बेगुनाह ग्रामीण भी मर सकते हैं। इसलिए उन्होंने आत्मसमर्पण का प्रस्ताव रखा। लेकिन, क्रूर अंग्रेज अधिकारी ने बुधु भगत और उनके समर्थकों को घेरकर गोलियां चलाने के आदेश दे दिए। 


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