धनबाद में स्कूलों के लिए प्रेरणा बने कौशल कुमार, सुशिक्षित समाज की संकल्पना को सतत प्रयास और नवाचार से दिया आधार
महात्मा गांधी ने जीवन में शिक्षा के महत्व पर खास जोर दिया। धनबाद के नागनगर सुसनीलेवा सरकारी विद्यालय के प्रधानाध्यापक कौशल कुमार सिंह इसी भाव को सशक्त कर रहे हैं। कभी जिस विद्यालय में 35 बच्चे पढ़ते थे आज वहां 206 विद्यार्थी हैं। इस विद्यालय में शिक्षादान के लिए अपनाए गए तौर-तरीकों की चर्चा जी-20 सम्मेलन तक पहुंची गई है।
आशीष सिंह, धनबाद। झारखंड के 35000 से अधिक सरकारी स्कूल इनके कौशल के कायल हैं। इनके नाम में ही कौशल है। अपनी दूरदृष्टि, शिक्षा के प्रति उत्कृष्ट सोच और मेहनत की बदौलत इन्होंने 35 बच्चों वाले स्कूल को 200 के पार पहुंचा दिया। स्कूल का कायाकल्प ऐसा किया कि प्राइवेट स्कूल भी अनुसरण करने को तत्पर। उपलब्धियां ढेरों हैं।
एक नजीर देखिए, सितंबर 2023 में नई दिल्ली में हुए जी-20 सम्मेलन में झारखंड के प्रेजेंटेशन में सबसे अधिक चर्चा इनके विद्यालय व कार्यों की ही हुई।
जी हां हम बात कर रहे हैं धनबाद के उत्क्रमित मध्य विद्यालय नागनगर सुसनीलेवा व उसके प्रधानाध्यापक कौशल कुमार सिंह की।
प्रदेश सरकार ने एक किताब बुनियादी साक्षरता एवं संख्या ज्ञान के बारे में पूछे जाने वाले प्रश्नों पर तैयार की, इसे झारखंड के सभी स्कूलों में भिजवाया।
किताब की खासियत है कि इसमें झारखंड के विभिन्न स्कूलों की 22 तस्वीरें हैं, इनमें 11 तस्वीरें सिर्फ उत्क्रमित मध्य विद्यालय नागनगर सुसनीलेवा की है।
2010 में जब कौशल इस स्कूल के प्रभारी बने, तब छात्रों की संख्या करीब 35 थी। आज नियमित छात्र 206 हैं। इनमें लड़कियों की संख्या अधिक है।
मुस्लिम बाहुल इलाका होने के कारण यहां छात्र आना नहीं चाहते थे। बावजूद कौशल घर-घर गए, बच्चों को स्कूल लेकर आए।
आसपास के आधा दर्जन से अधिक प्राइवेट स्कूल के बच्चों ने नाम कटाकर इस स्कूल में दाखिला लिया। केवल प्रधानाध्यापक का बच्चों के प्रति स्नेह देखकर।
कौशल कुमार सिंह, प्रभारी प्रधानाध्यापक उत्क्रमित मध्य विद्यालय नागनगर सुसनीलेवा।
राज्य का पहला स्कूल जहां छात्रों के लिए सिक रूम
सिक रूम अमूमन प्राइवेट स्कूलों में होता है। सरकारी स्कूलों में इसकी व्यवस्था नहीं है। कौशल ने अपने स्कूल में इसकी जरूरत समझी, अपने खर्च पर सिक रूम तैयार किया।
यहां एक बेड, कुर्सी-टेबल, फर्स्ट एड बाक्स और छात्राओं के लिए सेनेटरी पैड हैं। सिक रूम बनाने वाला राज्य का यह इकलौता सरकारी स्कूल है।
80 हजार खर्च कर बच्चों को दी झूलों की सौगात
स्कूल में पहली से आठवीं तक के बच्चे अध्ययनरत हैं। निजी स्कूलों में झूले देखकर कौशल को लगा कि हमारे स्कूल में भी ऐसा कुछ बनाया जा सकता है। शिक्षा विभाग से बात की, कोई मदद नहीं मिली।
स्वयं और एक अन्य शिक्षक मनोज कुमार महतो की मदद से 80 हजार खर्च किए, आधा दर्जन झूले लगवाए। अब एक बात और जान लें, जिले में किसी भी सरकारी स्कूल में झूला नहीं है।
झारखंड के कई पर्यटन स्थल का कराया भ्रमण
प्रधानाध्यापक ने अपने स्कूल के बच्चों को किताबी शिक्षा देने के साथ ही प्रकृति से भी जोड़ा। स्कूल के बच्चों को झारखंड के लगभग सभी पर्यटन स्थल का वे भ्रमण करा चुके हैं।
इसमें खर्च होने वाली राशि का भी उन्हीं ने इंतजाम किया। स्कूल के बच्चों ने बताया कि पतरातू डैम, हुंडरू फाल, उसरी फाल, पारसनाथ पहाड़ी, बिरसा जैविक उद्यान, बोकारो चिड़ियाघर, खंडोली डैम, मैथन डैम, तोपचांची डैम, गरगा डैम हमने अपने सर के साथ देखा है।
सभी तस्वीरें धनबाद के उत्क्रमित मध्य विद्यालय नागनगर सुसनीलेवा की।
खेल-खेल में बच्चों में ज्ञान भरने को रंग दिया स्कूल
वे बच्चों को खेल-खेल में शिक्षा देने की सोच रखते हैं। इसीलिए पूरे स्कूल को इस तरह से सजाया है जिससे पहली से लेकर आठवीं तक के बच्चे देख कर बहुत कुछ सीखें।
ग्रह, तारा मंडल, पृथ्वी, सौर मंडल, कंप्यूटर, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे स्कूल में उकेरे गए हैं। बच्चे कंप्यूटर शिक्षा किताब से नहीं प्रैक्टिकल कर करें, इसलिए 12 कंप्यूटर लगा रखे हैं। किचन गार्डन, मछलियों से भरा फिश टैंक भी यहां है। दो स्मार्ट क्लास बनाई हैं। स्कूल के कूड़ा प्रबंधन को इंसीनरेटर भी है।
उपलब्धियां
- 2017-18 में राष्ट्रपति शिक्षक पुरस्कार के लिए नामित
- 2018-19 में राज्य शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित
- 2021-22 में स्वच्छ विद्यालय पुरस्कार मिला
- यूनिसेफ हैदराबाद की टीम का स्कूल दौरा
- पीरामल फाउंडेशन की टीम ने की सराहना