JMM Foundation Day: शिबू सोरेन ने झारखंड के लिए खाई थी पिता की कसम, 51 साल बाद भी सपना नहीं हो सका पूरा
JMM Foundation Day झामुमो शनिवार को धनबाद में अपना 51वां स्थापना दिवस मनाएगा। इस दौरान सीएम सहित पार्टी के दिग्गज नेता जुटेंगे और पार्टी कहां से चली थी और 51 साल के सफर में कहां तक पहुंची इसकी समीक्षा करेंगे।
दिलीप सिन्हा, धनबाद। झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन चार फरवरी 1973 को धनबाद के गोल्फ ग्राउंड में हुआ था। प्रसिद्ध मार्क्सवादी चिंतक कामरेड एके राय, बिनोद बिहारी महतो और शिबू सोरेन के नेतृत्व में झामुमो का गठन हुआ था। झामुमो शनिवार को धनबाद में अपना 51वां स्थापना दिवस मनाएगा। जिसमें पार्टी अध्यक्ष शिबू सोरेन, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन समेत सभी दिग्गज नेता इसमें शामिल होंगे। पार्टी कहां से चली थी और 51 साल के सफर में कहां तक पहुंची, इसकी समीक्षा होगी।
झामुमो के गठन के मौके पर ऐतिहासिक जनसभा हुई थी। इसी जनसभा में बिनोद बिहारी महतो झामुमो के पहले अध्यक्ष व शिबू सोरेन महासचिव बने थे। बिनोद बाबू को शिबू अपना धर्म पिता मानते थे। महासचिव बनने के बाद शिबू ने सभा में अपने दिवंगत पिता की सौगंध खाई थी कि शोषण मुक्त झारखंड के निर्माण के लिए अपनी जान लगा देंगे।
सभा में बिनोद बाबू, एके राय और शक्तिनाथ महतो ने बताया था कि आखिर क्यों झामुमो बना है। शोषण मुक्त झारखंड का निर्माण, गांवों से महाजनी प्रथा और कोयलांचल से माफिया गिरी खत्म करना इसका उद्देश्य है। निश्चित रूप से झामुमो अपने गठन के उद्देश्य में काफी हद तक सफल रहा, लेकिन अभी भी लंबा सफर तय करना है। शोषण मुक्त झारखंड अभी भी सपना है।
कांग्रेस से दोस्ती और कामरेड की पार्टी से कुश्ती पार्टी की ताकत थी। गठन के समय हुई पहली सभा में एके राय ने झामुमो को मार्क्सवादी आंदोलन का संतान बताया था। झामुमो का जैसे-जैसे विस्तार होता गया, लाल-हरा मैत्री टूट गई। पिछले विधानसभा चुनाव में झामुमो ने कांग्रेस और राजद से गठबंधन किया, लेकिन मासस से कुश्ती की। नतीजा, निरसा सीट भी मासस के हाथ से निकल गई। सिंदरी सीट पहले ही मासस खो चुकी थी। दोनों पर आज भाजपा का कब्जा है।
वृहत झारखंड पर गंभीर नहीं
बिहार, बंगाल, ओडिशा और मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल इलाकों को मिलाकर वृहत झारखंड निर्माण अब झामुमो का मुख्य एजेंडा नहीं रहा। झारखंड की सत्ता मिलने के बाद से पार्टी शांत पड़ गई। वृहत झारखंड की मांग उठाने के कारण झामुमो का बंगाल, छत्तीसगढ़ और ओडिशा में जनाधार बढ़ा। यह मुद्दा नहीं उठाने के कारण यहां अब झामुमो कमजोर पड़ गया।
वैसे 2015 के महाधिवेशन में झामुमो बंगाल और ओडिशा के आदिवासी बहुल जिलों को स्वायत्त परिषद बनाने की मांग उठा चुका है। वृहत झारखंड के प्रति पार्टी में अब वह गंभीरता नहीं दिख रही, जो आंदोलन के दिनों में थी।
1932 खतियान से महतो-मांझी की पार्टी की छाप से निकलेगी झामुमो
बिनोद बाबू शिवाजी और शिबू सोरेन सोनोत संताल समाज चलाते थे। दोनों क्रमश: कुर्मी और आदिवासियों को एकजुट कर रहे थे। गोल्फ ग्राउंड में हुई पहली सभा में झामुमो के गठन के पूर्व शिवाजी और सोनोत समाज का विलय किया गया था। फिर, झामुमो बना। यही कारण है कि शुरूआत में कुर्मी और आदिवासी झामुमो के आधार बने। आज भी झामुमो का बेस वोट यही है। 1932 खतियान विधेयक पारित कर झामुमो ने सभी मूलवासियों पर डोरा डाला है।
सितंबर 1972 में कार्तिक उरांव के रांची घर में तैयार हुई थी पृष्ठभूमि
झामुमो के संस्थापक सदस्य व राजगंज निवासी शंकर किशोर महतो ने बताया कि झामुमो के गठन की पृष्ठभूमि दिग्गज नेता कार्तिक उरांव के रांची स्थित आवास पर सितंबर 1972 में ही तैयार हो गई थी। इस बैठक में अलग राज्य निर्माण समिति बनी थी, जिसके अध्यक्ष बिनोद बाबू बने थे। एनई होरो, बागुन सुम्ब्रई समेत कई बड़े नेता बैठक में शामिल थे। इसी बैठक में बिनोद बाबू ने झामुमो के गठन का निर्णय लिया था।
चार फरवरी 1974 के पूर्व संध्या पर बिनोद बाबू के चीरागोड़ा स्थित आवास पर बैठक हुई थी। इसमें तदर्थ समिति बनी थी। अध्यक्ष बिनोद बाबू, उपाध्यक्ष कतरास के राजा पूर्णेंदू नारायण सिंह, सचिव टेकलाल महतो, शिवचरण उर्फ शिबू सोरेन, कोषाध्यक्ष चुड़ामणि महतो और कार्यालय सचिव शंकर किशोर महतो बने थे। झामुमो के संविधान निर्माण की जिम्मेवारी बिनोद बाबू ने शंकर किशोर महतो को दी थी।