गाै सेवा की मिसालः 100 साल का हुआ झरिया-धनबाद गाैशाला, इसके अधिवेशन में देश के पहले राष्ट्रपति कर चुके हैं शिरकत
गौशाला के एक सौ वर्ष स्थापना दिवस को यादगार बनाने के लिए गौशाला समिति के लोग अधिवेशन को यादगार बनाने में शिद्दत से जुटे हैं। वर्ष 1920 में बस्ताकोला में गौ संरक्षण विषय पर सार्वजनिक सभा हुई थी। इसमें झरिया के अलावा देश के अनेक गणमान्य लोग शामिल हुए थे।
झरिया [ गोविंद नाथ शर्मा ]। भारत के प्राचीन गाैशालों में एक झरिया-धनबाद गाैशाला अपने स्थापना काल का एक सौ वर्ष 2020 में पूरा कर लिया है। गाै संरक्षण को लेकर एक शताब्दी में अपनी मिशाल पेश की है। वर्षों से गाैशालसमिति के लोग तन, मन और धन से सहयोग कर देश में इस गाैशाला का नाम रोशन किया है। एक सौ वर्षो से लगातार झरिया-धनबाद गाैशाला समिति स्थापना दिवस समारोह में वार्षिक अधिवेशन के साथ बस्ताकोला में गाैशाला मेला का भव्य आयोजन करता रहा है। राष्ट्रीय कवि सम्मेलन के अलावा कई तरह के कार्यक्रम हुए हैं। वर्ष 1953 में देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद भी झरिया-धनबाद गोशाला के अधिवेशन में आये थे।
शताब्दी समारोह का यादगार बनाने की तैयारी
गौशाला के एक सौ वर्ष स्थापना दिवस को यादगार बनाने के लिए गौशाला समिति के लोग अधिवेशन को यादगार बनाने में शिद्दत से जुटे हैं। वर्ष 1920 में बस्ताकोला में गौ संरक्षण विषय पर सार्वजनिक सभा हुई थी। इसमें झरिया के अलावा देश के अनेक गणमान्य लोग शामिल हुए थे। गोवंश के ऊपर बढ़ते अत्याचार को रोकने और लूली, लंगड़ी व बूढ़ी गायों को कसाई में होने वाले बध को रोकने के लिए लोगों ने बस्ताकोला में गौशाला की स्थापना करने का निर्णय लिया। पंडित राम कुमार मिश्र, जगन्नाथ साव, स्नेही राम अग्रवाल, गणेश लाल, विष्णु लाल की अगुवाई में बस्ताकोला में झरिया-धनबाद गोशाला समिति की स्थापना की गई। सबसे पहले न्यू बीरभूम कोल कंपनी से मात्र रुपये 244 में 61 बीघा जमीन बस्ताकोला क्षेत्र में खरीदी गई। 10-12 बूढ़ी गायों की सेवा कर गौशाला का शुभारंभ किया गया। आज गौशाला में 500 से अधिक गोवंश है।
1930 के बाद झरिया-धनबाद गाैशाला का हुआ विकास
वर्ष 1930 से 40 तक का समय झरिया-धनबाद गौशाला के लिए स्वर्णिम रहा। इन वर्षों में गौशाला समिति की ओर से विकास के लिए कई कार्य किए गए। इनमें डेयरी की स्थापना, भूमि की वृद्धि, जल की व्यवस्था, गोधन का विकास व कई नए निर्माण कार्य किए गए। 1932 में बसंत कुमार मित्र की जमीन पर डेयरी फार्म खोला गया। तालाब खुदवाए गए। इसके बाद 1940 से 50 तक भी गौशाला की जमीन वृद्धि की गई। झरिया के राजा शिवप्रसाद सिंह के परिवार की ओर से गौशाला को भेड़ाकांटा मौजा में 120 बीघा टांड़ गौशाला को दान स्वरूप दिया गया। झरिया-धनबाद गोशाला समिति को यह सौभाग्य प्राप्त है कि देश आजाद होने के बाद वर्ष 1953 के अधिवेशन में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद बस्ताकोला आकर समारोह का उद्घाटन किए थे। उस समय राष्ट्रपति ने गोरक्षा को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया था। यह भी कहा था कि इससे देश की अर्थव्यवस्था जुड़ी हुई है। डॉ राजेंद्र ने झरिया गौशाला के पदाधिकारियों के कार्य की काफी सराहना की थी।
झरिया-धनबाद गौशाला के विकास में इनका रहा योगदान
एक सौ वर्ष पुराने झरिया-धनबाद गौशाला के विकास में पंडित राम कुमार मिश्र, भवानजी कारा, मदन लाल अग्रवाल, राजा शिव प्रसाद सिंह, काली प्रसाद सिंह, पीके अग्रवाल, ओमप्रकाश छाबड़िया, पूनम चंद्र जैन, महेंद्र कुमार अग्रवाल, द्वारका प्रसाद गोयनका, शिवकुमार खेमका, मुरलीधर पोद्दार, चंद्रकांत वीरजी संघवी, हरिराम गुप्ता जैसे सैकडों गो भक्तों नेअपना पूरा सहयोग किया।