चीनी सैनिकों से लोहा ले रहे अमित की तीनी पीढि़या सरहद की निगहबा
फोटो 14 डीएनबी 11 कैचवर्ड - जागरण विशेष - बिशुनपुर के व्यास चौधरी के परिवार को क
फोटो : 14 डीएनबी 11 कैचवर्ड - जागरण विशेष
- बिशुनपुर के व्यास चौधरी के परिवार को कहा जाता है सैनिकों का परिवार, 49 वर्षों से सरहद की सुरक्षा
- व्यास चौधरी ने 1971-72 युद्ध देखा, मनोज ने 1991 में आतंकवादियों से लोहा लिया, अब अमित कर रहे देशसेवा आशीष सिंह, धनबाद धनबाद के बिशुनपुर के व्यास चौधरी के परिवार को सैनिकों का परिवार कहा जाता है। परिवार के सदस्य सेना में सूबेदार से कैप्टन पद पर रहकर सरहद की रक्षा करते रहे हैं। इस परिवार की तीसरी पीढ़ी ने भी सेना को ही प्राथमिकता दी। इस पीढ़ी के लेफ्टिनेंट अमित कुमार लद्दाख में भारत-चीन सीमा पर चीनी सैनिकों से लोहा लेने को डटे हैं। उनके दादा व्यास चौधरी 1971 में जवान के रूप में 88 आर्म्ड रेजीमेंट का हिस्सा बने और 2004 में ऑनरेरी कैप्टन पद से रिटायर हुए। 1971-72 के युद्ध में उन्होंने वीरता दिखाई।
उन्होंने 1999 कारगिल युद्व में अपनी जांबाजी दिखाई। अमित के पिता मनोज कुमार चौधरी 1991 में बतौर जवान इसी रेजीमेंट में शामिल हुए। 2013 में बाड़मेर से सूबेदार के पद से रिटायर हुए। 1991 से 1993 के बीच पंजाब की गुरदासपुर यूनिट में रहे। आतंकवादियों से लोहा लेने में हमेशा आगे रहे। अब अमित सियाचिन में ड्यूटी करने के बाद एक माह से लद्दाख में एलएसी पर मुस्तैद हैं। 49 वर्षों से यह परिवार सरहद की सुरक्षा में लगा है। व्यास चौधरी को पूर्व राष्ट्रपति डॉ.शंकर दयाल शर्मा और मनोज कुमार को पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा देवी पाटिल ने उत्कृष्ट कार्य के लिए प्रशंसा पत्र भी दिया है। हर चेहरे पर थी देशप्रेम की ललक व्यास चौधरी 1971-72 की जंग याद कर अतीत में खो जाते हैं। बोले उस समय हर जवान व आम लोगों के चेहरे पर सिर्फ देशप्रेम की झलक थी। उस जंग में जीत की खुशी बयां नहीं कर सकता। आज भी वो क्षण याद आ जाता है तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं। 93 हजार पाकिस्तानियों के सरेंडर ने हम सबमें जोश भर दिया था।
मनोज ने आतंकवादियों से लिया लोहा दूसरी पीढ़ी के मनोज कुमार चौधरी ने बताया कि गुरदासपुर में आतंकवादियों का सामना किया। हमारी यूनिट ने वहां से आतंकवाद का सफाया कर दिया था।
आर्मी के सिवा कुछ आया नहीं नजर तीसरी पीढ़ी के अमित कुमार जुलाई 2017 में कंबाइंड डिफेंस सर्विस परीक्षा के तहत चयनित हुए। इंडियन मिलिट्री एकेडमी देहरादून से ट्रेनिग के बाद एक साल पहले बरेली के ऑर्डिनेंस डिपो में बतौर लेफ्टिनेंट योगदान दिए। भारत-चीन तनातनी के बीच सियाचीन बॉर्डर पहुंचे। अब लद्दाख में हैं। वे कहते हैं कि सब आइएसएस, आइपीएस, इंजीनियर और डॉक्टर बन जाएंगे तो देशसेवा कौन करेगा। देशसेवा मेरे खून में है। इसीलिए आर्मी ज्वाइन की।