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शहरनामा: गले के दर्द तो बहाना था..

चार दिन से मेडिकल कॉलेज में आउटसोर्सिंग कर्मियों की हड़ताल थी। रोज मरीज मर थे। भाईजी ने हड़ताल की सुध तक नहीं ली।

By JagranEdited By: Published: Tue, 11 Sep 2018 10:34 AM (IST)Updated: Tue, 11 Sep 2018 10:34 AM (IST)
शहरनामा: गले के दर्द तो बहाना था..
शहरनामा: गले के दर्द तो बहाना था..

धनबाद, जेएनएन: रायजी के गले में क्या सचमुच दर्द था? यह तो चिकित्सकीय जाच रिपोर्ट ही खुलासा कर सकती है। वैसे उनके विरोधी और समर्थक दोनों दर्द को राजनीति बता रहे हैं। यह राजनीति है भाईजी को नीचे दिखाने का। चार दिन से मेडिकल कॉलेज में आउटसोर्सिंग कर्मियों की हड़ताल थी। रोज मरीज मर थे। भाईजी ने हड़ताल की सुध तक नहीं ली। जबकि उनकी जिम्मेवारी बनती है। आखिर जनता ने तो उन्हें ही चुन रखा है। रायजी राजनीति के माहिर खिलाड़ी ठहरे। लोकसभा क्षेत्र पर नजरें गड़ाई है तो माहौल बनाने के लिए कुछ तो करना होगा। और गले में उठ गया दर्द। लाव लश्कर के साथ पहुंच गए मेडिकल कॉलेज। गले के दर्द की दवा ली तो मेडिकल कॉलेज का भी इलाज हो गया। अधिकारी को फोन लगा हड़ताल समाप्त कराने का फरमान जारी कर दिया। चंद मिनटों में हड़ताल टूट गई। रायजी का माहौल बन गया। अस्पताल में इलाज के बाद रायजी का दर्द कम हुआ तो भाईजी का बढ़ गया। वह किसी को अपना दर्द बता नहीं रहे हैं। चुप हैं।

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माननीय का बाढ़ राहत कोष में दान: बाढ़ प्रभावित केरल को हर कोई मदद कर रहा है। बाढ़ राहत कोष में यथाशक्ति दान कर रहा है। साहब दफ्तर में दान देने वालों का इंतजार करते रहते हैं। वैसे यह मौका कई लोगों के लिए चेहरा चमकाने और बाजार बनाने का भी है। इसी बहाने साहब से मिलते हैं। फोटो खिंचवाते हैं। साहब भी सब जानते हैं, पर केरल की मदद जो करना है। जिले के एक माननीय बेटे-पोते के साथ साहब के पास पहुंचे। उनके हाथों में 25 हजार का चेक सौंप फोटो खिंचवाया। साहब ने माननीय की सराहना की। वह बाढ़ राहत कोष में दान देने वाले धनबाद के पहले माननीय जो थे। उनको छोड़ अब तक किसी ने राहत कोष में दान नहीं किया है। अब इस नेक काम के लिए भी कुछ लोग माननीय महोदय पर तंज कस रहे हैं। कोयले की काली कमाई है, इसलिए राहत कोष में दे रहे हैं। जो भी हो कमाई से कुछ नहीं होता। दिल बड़ा होने से होता है।

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..और माननीय का पोता का बन गया गब्बर सिंह: एक ओर जहां माननीय अगले चुनाव के टिकट की चिंता में छवि निखारने को दान-पुण्य में लगे हैं वहीं बिगड़ैल पोता नाम बिगाड़ने में लगा है। दादा के नाम की धौंस दिखाकर इलाके में गब्बर सिंह बन गया है। डंके की चोट पर कोयले की काली कमाई में लगा है। धौंस ऐसी कि एक सिपाही ने अवैध डिपो जाने वाली कोयला लदी साइकिल की टायर क्या पंक्चर कर दी, पोता ने सरेआम चाटा जड़ दिया। हड़काते हुए कहा- आगे इस तरह की हरकत नहीं करना। यही नहीं, उसने थाना पहुंचकर थानेदार की जमकर लानत-मलानत की। बुरे दिन की धमकी दी। कहा- मेरा कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता। इस दबंगई और भारी बेइज्जती पर थानेदार ने बड़े साहब के दरबार में दस्तक दी- साहब अब नहीं सहा जाता। या तो कार्रवाई कीजिए या मुझे वहां से हटाकर पुलिस लाइन भेज दीजिए। सबके हाथ बंधे हैं। क्या करें, विधायक जी का पोता जो ठहरा। विधायक जी भी क्या करें, इसी कमाई से तो दान-पुण्य का काम चल रहा है। चुनाव में खर्चा भी तो चाहिए।

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भाईजी का ज्ञान: भाईजी इन दिनों नया ज्ञान बाट रहे हैं। बाग्लादेश निर्माण के लिए भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध का समय 1970 बता रहे हैं। कारगिल युद्ध भारत की भूमि पर शुरू हुआ और पाकिस्तान जाकर खत्म हुआ। यह सुन बड़े-बड़े दाते तले अंगुलिया चबा रहे हैं। आखिर भाई जी को क्या हो गया? शायद यह चुनाव के टिकट की चिंता का दबाव है। इसलिए सुध-बुध खो रहे हैं।


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