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शहरनामा: बेशर्मी के भी हैं बड़े फायदे

साहब की खासियत यह है कि वह कुछ असाधारण काम भी करते हैं। बगैर पैसा लिए कुछ नहीं करते। लेने के बाद भी खूब नचाते हैं।

By JagranEdited By: Published: Mon, 03 Sep 2018 09:15 AM (IST)Updated: Mon, 03 Sep 2018 09:45 AM (IST)
शहरनामा: बेशर्मी के भी हैं बड़े फायदे
शहरनामा: बेशर्मी के भी हैं बड़े फायदे

जागरण संवाददाता, धनबाद। साहब का बहुत नाम है। धनबाद से रांची तक। नाम है तो बदनाम भी हैं। वैसे विभाग भी कम नहीं है। आखिर काम ही ऐसा है। पीने और पिलाने का। वैसे यह तो काम की बात हुई। हर कोई करता है। साहब की खासियत यह है कि वह कुछ असाधारण काम भी करते हैं। बगैर पैसा लिए कुछ नहीं करते। लेने के बाद भी खूब नचाते हैं। एक बंदे से बेटे के लिए 85 हजार रुपये का आइ-फोन लिया। फिर भी काम नहीं किया। तगादा करने बंदा पहुंचा तो साहब ने बेटी के लिए स्कूटी की मांग कर दी। स्कूटी भी मिल गई। काम वही ढाक के तीन पात। चार किश्तों में पांच लाख रुपये भी ले लिए। बंदा परेशान होकर बड़े साहब के पास पहुंचा। सब कुछ बताया। काम भी गलत नहीं। बड़े साहब भड़क गए। वह लेनदेन में विश्वास नहीं करते हैं। तुरंत हाजिर होने का फरमान जारी किया। साहब हाजिर। मारपीट छोड़कर बड़े साहब ने हर तरह से स्वागत किया। गाली देने से लेकर धिक्कारने तक। सिर झुकाए वह सुनता रहा। अंत में बड़े साहब ने डांटते हुए सामने से दफा होने हो जाने को कहा। साहब चैंबर से दांत निपोरते हुए ऐसे निकले मानो कुछ हुआ ही न हो। आखिर पैसा कमाना है तो बेशर्म बनना ही पड़ेगा। नाराज बड़े साहब ने विभाग को कार्रवाई के लिए लिखा है। कार्रवाई होगी? इंतजार कीजिए। आखिर विभाग भी तो कम बदनाम नहीं है।

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मेरी इज्जत क्यों उछालते हो: बिजली संकट से सिर्फ आम लोग ही नहीं बल्कि खास लोग भी परेशान हैं। आम लोग तो सिर्फ बिजली कटौती की मार झेल रहे हैं। खास लोग दोहरी मार झेल रहे हैं। खास लोगों में भी जनप्रतिनिधि ज्यादा परेशान हैं। उन्हें जनता को जवाब देते नहीं बन पा रहा है। लोग वक्त-बेवक्त जनप्रतिनिधियों को फोन लगा दे रहे हैं। उन्हें जनता की गाली भी सुननी पड़ रही है। भाईजी तो कुछ ज्यादा ही परेशान हैं। उनके पास व्यवसायी लालटेन लेकर पहुंचे। वह भी गिफ्ट पैक में। भाईजी को पता लग गया कि अंदर क्या है? उन्होंने गिफ्ट पैक नहीं लिया। व्यवसायियों के सामने अपनी लाचारगी जाहिर करते हुए कहा, मेरी इज्जत क्यों उछाल रहे हैं। यह तो भाईजी की बात हुई है। वक्त-बेवक्त मेढक की तरह टरटराने वाले भी गायब हैं। बिजली संकट पर चुप्पी साध रखे हैं। चुप्पी भारी पड़ेगी। चुनाव आ रहा है।

था ना.. या ना था?

जब भी बड़ा लफड़ा होता है तो थाना का चरित्र सामने आ ही जाता है। था ना और ना था। यह चरित्र फर्जी गोलीचालन के मौके पर भी देखने को मिला। दोनों तरफ से लिखित शिकायत थी। चर्चा है कि एक पक्ष से 40 हजार में सौदा हुआ। छह आरोपित हाजत से बाहर हो गए। अनुसंधानकर्ता को सौदे की भनक लगी तो अड़ गए। सभी को फिर से हाजत में बंद कर दिया। अब थानेदार और अनुसंधानकर्ता आमने-सामने थे। आखिर में सभी हाजत से आजाद हुए। दोनों के बीच कैसे बात बनी, यह राज की बात है।


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