मैंने पत्थर से दिल को बनाया सनम, वो खुदा बन गए देखते-देखते...
सूफी गीतों की मल्लिका और संगीत कला अकादमी से पुरस्कृत डॉ. ममता जोशी ने रविवार की शाम को अपने गीतों का जो शमां बांधा उससे लोग बाहर निकल नहीं सके।
जागरण संवाददाता, धनबाद: सूफी गीतों की मल्लिका और संगीत कला अकादमी से पुरस्कृत डॉ. ममता जोशी ने रविवार की शाम को अपने गीतों का जो शमां बांधा, उससे लोग बाहर निकल नहीं सके। देर रात तक केंद्रीय खनन ईंधन अनुसंधान संस्थान (सिंफर) के सभागृह में दैनिक जागरण की ओर से रंग बरसे कार्यक्रम चला। इसमें डॉ. ममता जोशी ने सूफी, गजल, ठुमरी, भक्ति, होली के साथ-साथ बॉलीवुड गीतों की झड़ी लगा दी। लोग नाचने को मजबूर हो गए।
डॉ. जोशी ने सूफी गायिका से कार्यक्रम की शुरुआत की। उन्होंने सबसे पहले 'सोचता हूं वो कितने मासूम थे, क्या से क्या हो गए देखते-देखते, मैंने पत्थर से दिल को बनाया सनम, वो खुदा बन गए देखते-देखते...' की प्रस्तुति दी। गीत के बोल सुनते ही हॉल में मौजूद तमाम लोग वाह-वाह कर उठे। दूसरे गीत के रूप में उन्होंने गजल गाया। गजल के बोल थे 'हमें तो सिर्फ मोहब्बत को आजमाना था, तेरी गली से गुजरना तो इक बहाना था...।' इस गीत के साथ डॉ. ममता ने एक शेर भी पेश करते हुए कहा कि 'नई हवाओं की सोहबत बिगाड़ देती है, कबूतरों को खुली छत बिगाड़ देती है, जो जुल्म करते इतने बुरे नहीं होते, सजा ना देकर अदालतें बिगाड़ देती हैं।' तीसरे गीत में 'मेरे नैना, नैना, नैना...' और फिर गीतों की लड़ी लग गई। 'राम नारायणम, जानकी वल्लभम, कौन कहता है भगवान सोते नहीं, मां यशोदा के जैसे सुलाते नहीं, कौन कहता भगवान खाते नहीं, बेर सबरी के जैसे खिलाते नहीं...', 'मैं गिरधर की गिरधर मेरा, गोविंद बोलो हरी गोपाल बोलो, हरे कृष्णा, कृष्णा कृष्णा हरे हरे, हरे रामा हरे रामा, रामा रामा हरे हरे...' तक का सफर तय किया।
गायकी का दिखा अलग अंदाज: डॉ. ममता अपनी गायिकी के एक खास अंदाज के लिए जानी जाती हैं। वह देश की हर भाषाओं में गायकी करती हैं। इसके साथ ही हर प्रकार के गीतों को भी गाती हैं। इसका भी नमूना उन्होंने होली को गायकी के विभिन्न रूपों में गा कर किया। ठुमरी और सूफी का होली रंग पेश किया। ठुमरी में उन्होंने गाया कि 'के रंगवा होली अबीर, कृष्ण मुरारी संग राधिका जी सोहे..., आज बिरज में होली मोरे रसिया...', जबकि सूफी में 'आज रंग है री, मेरे महबूब के घर आज रंग है री, मोह पीर पाओ...' को प्रस्तुत कर देश की विभिन्नता में एकता का संदेश भी दे दिया।
गीतों से उकेरा दर्द: डॉ. ममता शर्मा ने अपनी प्रस्तुति के दौरान दर्द को भी गजल के माध्यम से उकेरने का प्रयास किया। उन्होंने गाया कि 'उसने अंधेरे लिख दिए अब तो नसीब में, जिस के लिए चिराग नहीं दिल जलाए हैं, आंसू हमें वो दे के हंसी छीन ले गया, अब याद भी नहीं के कभी मुस्कुराए हैं, इतना सफर कबील है के थक गई हयात, मंजिल की जुस्तजू में कदम डगमगाए हैं...।' दर्द के इस गजल को लोगों ने खूब सराहना की। दूसरी गजल में उन्होंने कहा कि 'हो गई है मोहब्बत किसी से, अश्क पीना पड़ा है खुशी से, आ गया देखो कैसा जमाना, सांप डरने लगा आदमी से, पूछता है ये पागल दीवाना, आदमी का पता आदमी से...।' इस गजल पर तालियों की गडग़ड़ाहट से पूरा हॉल गूंज गया।
होली के गीतों से किया समापन: अपनी प्रस्तुति का समापन डॉ. ममता जोशी ने होली के गीतों से किया। लोक गीतों के साथ फिल्मी गीतों का समावेश ने होली के रंग को और भी दोगुना कर दिया। इसमें उन्होंने कहा कि 'होली में उड़े रे गुलाल..., ऐसे लहरा के तू रूबरू आ गई, दर्द में बेतहाशा तड़पने लगे, तीर ऐसा लगा, दिल में ऐसा लगा, चोट ऐसा लगा कि मजा आ गया..., कजरा मोहब्बत वाला अखियों में ऐसा डाला, कजरे ने ले ली मेरी जान हाय रे मैं तेरे कुर्बान...' समेत कई गीत पेश किए।
जुगलबंदी ने लोगों को बांधा: डॉ. ममता शर्मा के गीत के दौरान ढोल और तबले की जुगलबंदी भी देखने को मिली। इस जुगलबंदी का भी लोगों ने खूब आनंद उठाया।
अतिथियों ने कार्यक्रम का किया शुभारंभ: दैनिक जागरण के रंग बरसे कार्यक्रम की शुरुआत मुख्य अतिथि सिंफर के वरीय वैज्ञानिक डॉ. सिद्धार्थ सिंह, सिंफर लेडीज क्लब की कोषाध्यक्ष नंदिता सिंह, नालंदा बिल्डर्स के अनिल सिंह, गोल इंस्टीच्यूट के संजय आनंद, द्वारिका मेमोरियल स्कूल के मदन सिंह, वेदश्री के रत्नेश सिन्हा के साथ दैनिक जागरण धनबाद के यूनिट हेड प्रवीण चौबे ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया।
जी भर के नाचे युवा: कार्यक्रम जैसे-जैसे आगे बढ़ता गया, वैसे वैसे इसका रंग चढ़ता गया। सभा गृह में युवाओं की अच्छी खासी तदाद थी। डॉ. ममता जोशी के गीतों पर युवा खूब थिरके। होली के गीतों पर तो कोई भी अपने आप को रोक नहीं पाया। सभी ने इसका जमकर आनंद उठाया।