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ग्रीन स्कूलों में तैयार हो रहे पर्यावरण के नवप्रहरी

कक्षा छह से आठ तक के बच्चों को पर्यावरण संबंधी विशेष पाठ्यक्रम की शिक्षा के साथ ही व्यावहारिक समझ के लिए आउटडोर गतिविधियों पर फोकस किया जा रहा है।

By Edited By: Published: Fri, 14 Sep 2018 12:00 PM (IST)Updated: Fri, 14 Sep 2018 01:56 PM (IST)
ग्रीन स्कूलों में तैयार हो रहे पर्यावरण के नवप्रहरी
ग्रीन स्कूलों में तैयार हो रहे पर्यावरण के नवप्रहरी

विनय झा, धनबाद। ग्लोबल वार्मिंग, ग्रीन हाउस गैसें, क्लाइमेट चेंज.. ऐसे तमाम शब्द और इनके मायने अब भी शहरी शिक्षित वर्ग तक ही सीमित हैं। दूर-दराज पिछड़े इलाकों और देहातों के अधिसंख्य लोगों को इनसे अधिक सरोकार नहीं। मगर देश में पहली बार 30 ऐसे ग्रीन स्कूल तैयार हो रहे हैं जहा बच्चे न केवल खुद पर्यावरण को भलीभांति समझेंगे बल्कि समाज को भी पर्यावरण संरक्षण के मायने समझाएंगे। इन स्कूलों में पर्यावरण को लेकर बच्चों में व्यावहारिक समझ विकसित की जा रही है। आप उनकी समझ देख दंग रह जाएंगे। ये अगली पीढ़ी के वो बच्चे हैं जो आमजन और देश-समाज के लिए पर्यावरण के नवप्रहरी बनेंगे।

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बच्चों में पर्यावरण की समझ को सुव्यवस्थित ढंग से विकसित करने के लिए टाटा स्टील एवं द एनर्जी रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (टेरी) ने मिलकर यह नायाब बीड़ा उठाया है। इसके तहत कक्षा छह से आठ तक के बच्चों को पर्यावरण संबंधी विशेष पाठ्यक्रम की शिक्षा के साथ ही व्यावहारिक समझ के लिए आउटडोर गतिविधियों पर फोकस किया जा रहा है। झारखंड व ओडिशा में टाटा स्टील के खदान बहुल व उत्पादन संयंत्र वाले इलाकों के चुनिंदा स्कूलों में ये पर्यावरण प्रहरी तैयार हो रहे हैं। इनमें धनबाद के चार स्कूलों के अलावा वेस्ट बोकारो, नोआमुंडी, जोडा, सुकिंदा, जयपुर, बामनीपाल आदि क्षेत्रों के स्कूल शामिल हैं। 2017 में पृथ्वी दिवस पर दस स्कूलों से इसकी शुरुआत हुई थी। इसके उत्साहव‌र्द्धकपरिणाम को देखते हुए इस साल बीस और स्कूलों को जोड़ा गया है। अगले साल कुछ और स्कूलों को जोड़ा जाएगा।

देने लगे हैं सीख: ये बच्चे पास के कस्बों में भी जाकर लोगों को छोटी-छोटी बातें समझा रहे हैं। अभी जल संरक्षण व ऊर्जा संरक्षण पर मुख्य फोकस है। सामूहिक प्रयास से गाद निकाल कर व अगल-बगल पेड़ लगाकर कैसे तालाबों को पुनर्जीवित किया जा सकता है, यह बता रहे हैं। बेमतलब बल्ब व दिन में स्ट्रीट लाइट नहीं जले तो कितनी बिजली बच सकती है, इसकी सीख भी दे रहे हैं। छोट-छोटे बच्चों के मुंह से बड़ी-बड़ी बातें सुन हर कोई अचंभित रह जाता है।

यह है ग्रीन स्कूल की खासियत: प्रोजेक्ट के तहत पर्यावरण संरक्षण से तमाम पहलुओं को अपने आस-पास के पर्यावरण से जोड़ते हुए समझने, इसे व्यवहार में लाने तथा समाज को भी जागरूक करते हुए इसमें भागीदार बनाने पर फोकस किया गया है। इसके लिए टेरी ने सबसे पहले सीबीएसई, आइएससीई व ओडिशा बोर्ड के सिलेबस में शामिल पर्यावरण संबंधी विषयों का अध्ययन किया। पाया गया कि कई विषय अछूते रह गए हैं जो जानना जरूरी हैं। इस गैप को ध्यान में रखते हुए अलग से टीचर्स मैन्युअल तैयार कर उन विषयों को शामिल किया गया। मुख्य रूप से जल संरक्षण, ऊर्जा संरक्षण, जैव विविधता, कचरा प्रबंधन व जलवायु परिवर्तन पर जोर दिया गया है। प्रोजेक्ट के तहत शिक्षकों को विशेष रूप से प्रशिक्षित किया गया। बच्चों को प्रोत्साहित किया जा रहा है कि वे खुद आइडिया दें। इस आइडिया पर पहले आपस में विचार-विमर्श करें, फिर समाज को जागरूक करें। हर स्कूल में तीस-तीस बच्चों का इको क्लब बनाया गया है।

''पर्यावरण के प्रति स्कूली बच्चों में गजब की दिलचस्पी पैदा हो गई है। ये आसपास के वातावरण को बेहतर ढंग से समझ रहे हैं। ये बच्चे ही कल समाज के लिए पर्यावरण दूत साबित होंगे। यही हमारा मकसद है।''
-संजय कुमार सिंह, महाप्रबंधक कोल, टाटा स्टील।


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