चचा की दहाड़ सुन सो गए भाईजी के टाइगर
पहले के ऊपर के साहबों ने साहब से डीसी लाइन पर निगेटिव रिपोर्ट लिखवा ली। तब खूब मजा आ रहा था। बैठकों में उछल-उछल बंदी की वकालत करते थे। अब चुनाव आया तो लाइन चालू करने का दबाव है।
धनबाद, जेएनएन। भाईजी ने क्या सोच कर चचा से पंगा लिया? यह तो वही जाने। वैसे चर्चा है कि मैंशन को मैनेज करने के लिए बयान दिया। चचा पर कॉलेज बंदी का तोहमत मढ़ दिया। आखिर बबुआ ने लोकसभा चुनाव लडऩे की घोषणा कर टेंशन जो दे रखा है। लगा-चचा पर हमले से बबुआ खुश होकर चुनाव लडऩे का इरादा बदल दे। हालांकि चुनावी अखाड़े में उतरने के लिए ताल ठोंक चुके बबुआ किस करवट बैठेंगे यह तो समय ही बताएगा। लेकिन, एक को मैनेज करने के चक्कर में भाईजी चचा को नाराज कर बैठे। चचा भी कोई कमजोर तो ठहरे नहीं कि डर जाए। गलत को गलत स्वीकार कर लें। उन्होंने भाईजी जो को तुरंत आईना दिखा दिया। विफलताओं की लंबी लिस्ट जारी करते हुए पलटवार कर दिया। साथ ही यह भी जोड़ दिया कि लोकसभा चुनाव में सबक सिखाएंगे। चचा की दहाड़ ने उनके समर्थकों में भी जोश भर दिया है। सब भाईजी को बयानों के तीर से बेध रहे हैं। भाईजी मौन हैं। उनका मौन तो समझ में आता है। उनकी पार्टी के पदाधिकारियों और फेसबुकिया टाइगरों का मौन गौरतलब है। बात-बात पर हल्ला बोलने वाले और फेसबुक पर उधम मचाने वाले सो गए लगते हैं। यह चचा का डर है जनाब।
साहब की अटकी सांसः साहब परेशान हैं। उनकी सांस फुल रही है। सेवाकाल से विदाई का अंतिम समय चल रहा है। इसी माह सेवानिवृत्त हो जाएंगे। लेकिन, ऐसे चक्कर में फंसे हैं कि घनचक्कर बन गए हैं। पहले के ऊपर के साहबों ने साहब से डीसी लाइन पर निगेटिव रिपोर्ट लिखवा ली। तब खूब मजा आ रहा था। बैठकों में उछल-उछल बंदी की वकालत करते थे। अब चुनाव आया तो लाइन चालू करने का दबाव है। सब पॉजिटिव रिपोर्ट चाहते हैं। चक्कर यह है कि साहब को अपनी ही लिखी रिपोर्ट काटनी पड़ेगी। सो, बचने के लिए एलटीसी पर विदेश दौरे के लिए मुख्यालय से निकल पड़े। अभी देश की धरती से उड़े भी नहीं थे कि मंत्री का फरमान आ गया। जल्द से जल्द रिपोर्ट दीजिए। रिपोर्ट नहीं मिली तो खैर नहीं। साहब लौट गए हैं। क्या पॉजिटिव रिपोर्ट देंगे? इंतजार कीजिए।
जवाब के डर से नहीं आए जनाबः सिन्हा साहब ने अपनी पार्टी से ज्यादा अपने बेटे को परेशान कर रखा है। उनकी बगावत को तो पार्टी ने नोटिस लेना भी बंद कर दिया। असहज कर रहे हैं तो अपने बेटे को। कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्र्राउंड में जमकर विषवमन किया। अगले दिन उनके बेटे का धनबाद में कार्यक्रम। सब उम्मीद कर रहे थे कि पार्टी की तरफ से मोर्चा खोलेंगे। पिता के वार पर पलटवार करेंगे। अचानक खबर आई कि हेलीकॉप्टर खराब हो गया है। धनबाद नहीं आएंगे। लोग इंतजार करते रह गए। अंदर की कहानी यह है कि हेलीकॉप्टर तो बहाना था। आते तो मीडिया के सवालों से जूझना पड़ता। पार्टी की नजरों में चढऩे के लिए कुछ न कुछ तो जवाब देना पड़ता। सो दौरा रद हो गया।
और अंत मेंः सौ दिन रोजगार की गारंटी देने वाली योजना के कर्मचारियों की हड़ताल समाप्त हो गई। सरकार ने कर्मचारियों की मांगें मान ली है। अब खुश होना चाहिए। लेकिन, कर्मचारी दुखी हैं। दुख अलग किस्म का है। दरअसल, हड़ताल के कारण रोजगार सृजन लक्ष्य से काफी पीछे है। इसे हासिल करने की चुनौती कर्मचारियों के कंधे पर आन पड़ी है। समय कम है। मार्च में वित्तीय वर्ष समाप्त हो जाएगा। दो महीने शेष हैं। लक्ष्य हासिल नहीं किया तो नन पारफॉर्मेंस में छंटनी की तलवार लटक जाएगी। सो कर्मचारी काम के बोझ तले दबे जा रहे हैं।