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जिस ट्रेन में आखिरी बार सुभाषचंद्र बोस ने की थी यात्रा, डेढ़ सौ साल में कितनी बदली वह, देखें तस्वीरें

नेताजी सुभाषचंद्र बोस आखिरी बार झारखंड के गोमो जंक्शन से कालका मेल पर सवार होकर पेशावर गए थे। उसके बाद उन्‍हें किसी ने नहीं देखा। उसी कालका मेल की अब सूरत बदल चुकी है।

By Deepak PandeyEdited By: Published: Wed, 03 Oct 2018 03:11 PM (IST)Updated: Wed, 03 Oct 2018 03:11 PM (IST)
जिस ट्रेन में आखिरी बार सुभाषचंद्र बोस ने की थी यात्रा, डेढ़ सौ साल में कितनी बदली वह, देखें तस्वीरें
जिस ट्रेन में आखिरी बार सुभाषचंद्र बोस ने की थी यात्रा, डेढ़ सौ साल में कितनी बदली वह, देखें तस्वीरें

जागरण संवाददाता, धनबाद: डेढ़ सौ साल से अधिक समय से पटरियों पर दौड़ रही कालका मेल की सूरत ही अब बदल गई है। रेलवे ने ट्रेेन को नया कलेवर दिया है। बता दें कि यह वही ट्रेन है, जिसमें नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने आखिरी बार यात्रा की थी। उपलब्ध स्रोतों से यह पता चलता है कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस आखिरी बार झारखंड के गोमो जंक्शन से कालका मेल पर सवार होकर पेशावर गए थे। उसके बाद नेताजी को किसी ने नहीं देखा।

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सुभाषचंद्र बोस की स्मृति में ही गोमो जंक्शन को उनका नाम दिया गया है। यहां की दीवारें सुभाषचंद्र की अंतिम रेलयात्रा की गवाही देती हैं। जिस स्टेशन से नेताजी गुम हुए, उसे पहले गोमो और फिर नेताजी सुभाषचंद्र बोस गोमो जंक्शन नाम दिया गया। अब एक बार फिर रेलवे ने उन यादों को ताजा किया है। गांधी जयंती के मौके पर दो अक्टूबर को कालका मेल एक नए रंग-रूप में पटरी पर दौड़ी।

152 साल पहले शुरू हुआ था सफर: अंग्रेजों के शासनकाल में प्रारंभ हुई हावड़ा-कालका मेल ट्रेन ने 2016 में अपने सफर के 150 वर्ष पूरे किए। ईस्ट इंडियन रेलवे ने एक जनवरी 1866 को हरी झंडी दिखाकर हावड़ा-कालका मेल को वन अप व टू डाउन नाम से शुरू किया था। तब हावड़ा-कालका मेल को कोलकाता से दिल्ली तक चलाया गया था। तब इस ट्रेन में अंग्रेजी हुकूमत के हाई रैंक के अधिकारी सफर करते थे। अन्य यात्रियों के लिए इस ट्रेन में यात्रा संभव नहीं थी। तब से यह ट्रेन गौरवमयी सेवा दे रही है। दशकों तक इसी नंबर के साथ चलने के बाद इस ट्रेन का नंबर 2311 हुआ। वर्ष 2012 में ट्रेनों के पांच अंकों के नंबर होने से यह ट्रेन अप में 12311 और डाउन में 12312 बनी।

1891 में दिल्ली से कालका तक विस्तार: हावड़ा से दिल्ली तक परिचालन के सिल्वर जुबली यानी 25 साल पूरे करने के बाद इस ट्रेन का विस्तार हिमाचल प्रदेश की तलहटी कालका तक हुआ। दरअसल, शिमला को ब्रिटिश सरकार ग्रीष्मकालीन राजधानी के तौर पर मानती थी। उस वक्त वायसराय समेत सिविल सर्विस से जुड़े अफसरों को शिमला तक पहुंचाने के उद्देश्य से ही कालका मेल का विस्तार कालका तक किया गया था। शिमला में गर्मी की छुट्टियां बिताने के लिए अंग्रेजों ने 1891 में रेलवे लाइन का विस्तार कर इसे कालका तक बढ़ाया।

हावड़ा में आज भी कैरेज वे: वायसराय को कालका मेल तक पहुंचाने के लिए उस वक्त हावड़ा स्टेशन पर कैरेज वे का निर्माण कराया गया था, ताकि बग्गी या मोटर यान से उतर कर ज्यादा पैदल न चलना पड़े और सीधे ट्रेन में सवार हो जाएं। डेढ़ सौ साल पुराना अतीत आज भी अस्तित्व में है। आज भी जब आप हावड़ा पहुंचेंगे तो स्टेशन के प्लेटफार्म 8 और 9 के बीच कैरेज वे दिख जाएगा।

यात्रियों को रेलवे ने दी सौगात: इस वर्ष गांधी जयंती पर रेलवे ने कालका मेल के मुसाफिरों को खास सौगात दी है। हावड़ा से कालका जाने वाली ट्रेन के जनरल से एसी तक के सभी कोच को आधुनिक रूप दिया गया है। कालका मेल नए कलेवर में मंगलवार को धनबाद पहुंची। इससे ट्रेन में सफर करने वाले यात्री काफी उत्साहित दिखे। ट्रेन में स्लीपर के मुसाफिरों के लिए माड्युलर टॉयलेट व तौलिया की सुविधा दी गई है। ट्रेन के बाहरी हिस्से को क्रीम व अंदर आसमानी रंग से दिया गया नया लुक दिया गया है। जनरल कोच की अंदरूनी सजावट मनमोहक और सीटें आरामदायक बनाई गई है। ट्रेन के पैन्ट्री कार को बिल्कुल नए तरीके से डिज़ाइन किया गया है, ताकि इसमें कॉकरोच या गंदगी पनपने के लिए जगह न मिल सके। 


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