Weekly News Roundup Dhanbad: स्टूडेंट्स गैलरी... बीबीएमकेयू में टूटने लगा आइआइटी-आइएसएम के जादूगर का तिलिस्म
धनबाद लॉ कॉलेज के बड़ा बाबू का जलवा कॉलेज में कार्यकाल के दौरान छात्र देख चुके हैं। जब तक रहे अपने मन मुताबिक काम किया। वर्षों पहले वे सेवानिवृत्त हो चुके हैं।
धनबाद [ शशिभूषण ]। जादूगर जादू कर जाएगा, किसी को समझ नहीं आएगा...। यह मशहूर गीत है जो अब बीबीएमकेयू में अपने जादूगर के लिए गुनगुनाया जा रहा है। जादूगर पहले आइआइटी-आइएसएम में अपना जादू दिखा चुके हैं। उनके जादू का असर इस कदर चढ़ा कि बीबीएमकेयू के सरदार उनके दीवाने हो गए और विश्वविद्यालय में लाने के लिए एड़ी-चोटी एक कर दी। सफल भी हुए और उच्च पद पर आसीन कर दिया। उम्मीद ही नहीं बल्कि विश्वास भी था कि नए विश्वविद्यालय को अपने लंबे अनुभव से कुछ नया दे पाएंगे। जादू देखने को तो नया विश्वविद्यालय बेकरार था मगर देख नहीं पाया। जादूगर से उम्मीद लगा बैठे विश्वविद्यालय को उनकी तस्वीर अब धुंधली दिखने लगी है। अब तो बस दिन गिने जा रहे हैं। और, हो रहा है नए जादूगर के आने का इंतजार।
सवा लाख के बड़ा बाबू
कहावत है कि जिंदा हाथी लाख का और मर गया तो सवा लाख का। कोई आदमी भी सवा लाख का होगा, ऐसा सुनने को अब तक तो नहीं मिला। हालांकि एक बड़ा बाबू हैं जिनकी कीमत सेवानिवृत्ति के बाद सवा लाख हो गई है। धनबाद लॉ कॉलेज के बड़ा बाबू का जलवा कॉलेज में कार्यकाल के दौरान छात्र देख चुके हैं। जब तक रहे, अपने मन मुताबिक काम किया। वर्षों पहले वे सेवानिवृत्त हो चुके हैं। बावजूद जलवा बरकरार है। बल्कि अब और बढ़ चुका है। प्रबंधन का हाथ उनके सिर पर जो है। स्थिति ऐसी है कि विधि विशेषज्ञ बनना है तो उनकी छत्रछाया में आना ही होगा। चाहे आपने विधि की किताबों को पढ़ा हो या न पढ़ा हो। यदि बड़ा बाबू खुश तो आप लॉ पास कर गए समझो। वरना ऐसे निगल लेंगे जैसे सांप-सीढ़ी के खेल में सर्प निगल लेता है।
बच्चों के नाम पर खेल
एक तो चोरी ऊपर से सीना जोरी। ऐसा ही वाक्या धनबाद में देखने को मिला। अपनी रोटी सेंकने के लिए लाल बाल और सफेद दाढ़ी वाले एक तथाकथित समाजसेवी ने स्कूली बच्चों को खतरे में डाल दिया। बच्चों के अभिभावकों को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने भी खूब खरी-खोटी सुनाई। कहा- बच्चे स्कूल में पढऩे जाते हैैं न कि आंदोलन करने। हुआ यूं कि रेलवे आम लोगों की सुविधा के लिए वैकल्पिक रास्ते का निर्माण करने जा रहा है। जमीन भी रेलवे की है लेकिन बच्चों के कंधे पर बंदूक रखकर समाजसेवी और स्कूल मामले को तूल दे रहे हैं। जबकि रेलवे ने स्कूल को 1958 में लीज पर जमीन दी थी। 1988 में लीज खत्म हो गया। इस बीच बकाया करीब साढ़़े तीन करोड़ हो गया। लीज की रकम स्कूल ने रेलवे को नहीं दी। अब जबकि रेलवे जमीन पर रोड बना रहा है तो सीनाजोरी पर उतर आए हैं।
...वे हुए न हमारे
हम थे जिनके सहारे, वे हुए न हमारे..., ये पंक्तियां आइआइटी-आइएसएम में छात्र मन ही मन गुनगुना रहे हैं। दरअसल आर्थिक सुस्ती का जो माहौल बना हुआ है, उससे आइआइटी जैसे संस्थान भी अछूते नहीं हैं। यह अलग बात है कि कैंपस प्लेसमेंट में छात्रों को नौकरियां मिल रही हैं, लेकिन आर्थिक सुस्ती का असर तो संस्थान पर दिख ही रहा है। जिन ऑटोमोबाइल कंपनियों से संस्थान के रिश्ते बेहतर रहे हैं और जो कंपनियां हर वर्ष कैंपस प्लेसमेंट के लिए आती रही हैं, उनमें से बजाज, टाटा, महेंद्रा सहित कई बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनियों ने इस बार प्लेसमेंट में हिस्सा नहीं लिया। हालांकि इन कंपनियों पर संस्थान को काफी भरोसा था। वैसे आर्थिक मंदी की चर्चाओं के बीच अब तक तीन दर्जन से अधिक कंपनियों ने आइआइटी-आइएसएम के 550 छात्रों का चयन कर लिया है। उन्हें अच्छा पैकेज भी मिला है मगर पहले जैसा नहीं। और, इसकी चर्चा संस्थान में हो रही है।