प्रकृति की गोद में यहां जिंदगी को मिलेगी मोहलत
गोविंदपुर के सहराज गांव में सृजन शोध संस्थान की ओर से संचालित होने वाले हरदेवराम स्मृति आवासीय परिसर में मरीजों का प्राकृतिक ढंग से इलाज किया जाएगा।
By Edited By: Published: Sun, 22 Apr 2018 09:24 AM (IST)Updated: Sun, 22 Apr 2018 09:29 AM (IST)
राजीव शुक्ला, सहराज (धनबाद): पहाड़ों की तलहटी का सुरम्य वातावरण, दरख्तों की छांव, हर ओर हरियाली की चादर, प¨रदों का कलरव और उसके बीच एक खूबसूरत परिसर। हम बात कर रहे हैं गोविंदपुर के सहराज गांव में सृजन शोध संस्थान की ओर से संचालित होने वाले हरदेवराम स्मृति आवासीय परिसर की। इसका शुभारंभ रामकथा वाचक विजय कौशल महाराज रविवार को करेंगे। उद्घाटन सत्र में चिंतक गोविंदाचार्य भी मौजूद रहेंगे। पहले से शिक्षा और चरित्र निर्माण की पाठशाला यहां संचालित थी अब प्राकृतिक चिकित्सा के माध्यम से लोगों की काया को यहां निरोगी बनाया जाएगा। परिसर में प्रवेश करते ही दीवार पर संदेश नजर आता है-'यह परिसर मानव निर्माण का मंदिर है, सबके कल्याण की भावना ही यहां धर्म है।' सोहराय कला की बेमिसाल कृतियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। इस सुदूर गांव में जमीन पर बिछे टाइल्स, बांस से बनी बाड़, बच्चों के खेलने के लिए मैदान, आराधना स्थल मन को मोह लेते हैं। इनके बीच बनी हैं आठ पक्की झोपड़ियां। सृजन शोध संस्थान के संरक्षक शैलेंद्रजी व महेंद्र अग्रवाल ने बताया कि परिसर में बच्चों के रहने के लिए छात्रावास, प्राकृतिक चिकित्सा की व्यवस्था के साथ गोशाला है। अग्रवाल ने बताया कि राजस्थान के प्रख्यात वैद्य आरके गुप्ता यहां अपनी सेवाएं देंगे। यहां योग, ध्यान, धूप स्नान, भाप स्नान, मिट्टी स्नान जैसी विधियों व वन औषधियों के माध्यम से लोगों की प्राकृतिक चिकित्सा होगी। यहां का नैसर्गिक माहौल ही कई बीमारियां हर लेगा। संस्थान के अध्यक्ष नंदलाल अग्रवाल के दादा हरदेवराम अग्रवाल की याद में इसका नामकरण हुआ है। दिगंत पथ के संयोजक शैलेंद्र ने बताया कि स्व. लखीकांत ने मानव सेवा के लिए यहां जमीन दान दी थी। उसमें ही यह परिसर और एकलव्य माध्यमिक विद्यालय संचालित है। वर्ष 1995 में 30 बच्चों से शुरू हुए इस विद्यालय में अब 430 बच्चे हैं। बताया कि स्कूल के बच्चों और क्षेत्र के 14 गांव के युवक-युवतियों को सिलाई, प्रिंटिंग प्रेस, कंप्यूटर का प्रशिक्षण देकर उनको स्वावलंबी बनाएंगे। इस संस्थान में बच्चों व ग्रामीणों को संदेश दिया जाता है कि पर्यावरण की सुरक्षा अहम है। बच्चे पौधरोपण करते हैं। पौधों को सहेजते हैं। खुद परिसर की सफाई करते हैं। उनको आध्यात्मिक ज्ञान के तहत आत्मा की शुद्धता के लिए योग, प्राणायाम, सत्संग, विचार प्रवाह और ध्यान कराया जाता है। जल, जंगल और जमीन का महत्व बताते हैं।
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