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Green Economy: अरब के बाद अमेरिका और यूरोप को भा गई दुमका की बांस कारीगरी, चीन के उत्पाद को चुनौती देकर बनाई पहचान

बांस क्राफ्ट में विश्व में नाम कमा रहे चीन को झटका लगा है। सउदी अरब की कंपनी ने उसे दरकिनार कर झारखंड की उपराजधानी दुमका में बांस के बने पैकेजिंग बास्केट का आयात करना शुरू कर दिया है। उसने 2019 में तीन लाख का बास्केट खरीदा।

By MritunjayEdited By: Published: Thu, 01 Oct 2020 01:51 PM (IST)Updated: Thu, 01 Oct 2020 01:51 PM (IST)
Green Economy: अरब के बाद अमेरिका और यूरोप को भा गई दुमका की बांस कारीगरी, चीन के उत्पाद को चुनौती देकर बनाई पहचान
दुमका में बने बांस के उत्पादों की वैश्विक स्तर पर बनी पहचान।

दुमका [ आरसी सिन्हा ]। Dumka bamboo products ग्रीन इकोनॉमी में झारखंड का डंका बजना शुरू हो गया है। इसकी शुरुआत हुई है आकांक्षी जिला दुमका से। बांस पर की गई दुमका की कारीगरी अब अमेरिका और यूरोप में भारत का मान बढ़ाएगी। यूनाइटेड स्टेट एवं यूरोप ने 55 लाख रुपये के बांस उत्पाद का ऑर्डर जिले को दिया है। इस राशि से 80 हजार उत्पाद जनवरी 2021 में निर्यात किए जाएंगे। इनमें बांस के बास्केट, डस्टबिन, लैंप व अन्य घरेलू उत्पाद शामिल होंगे। मालूम हो कि आठ माह पहले दिसंबर 2019 में तीन लाख रुपये के बांस से बने बास्केट की खरीदारी सउदी अरब ने दुमका से की थी।

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चीन और वियतनाम के उत्पाद को दुमका ने दी चुनाैती 

दुमका की यह उपलब्धि आत्मनिर्भर भारत के संकल्प में मील का पत्थर साबित होगी। मालूम हो कि चीन और वियतनाम में बांस से बने घरेलू उत्पादों का डंका बजता था, लेकिन अब दुमका के कारीगरों ने वैश्विक स्तर पर अपनी छाप छोड़ी है। यह संताल परगना के पिछड़ेपन को दूर करने में भी मदद करेगा। प्रकृति की गोद में रोजगार का सृजन कर भारत को मजबूत करने की कोशिश झारखंड से हुई है। बांस के कारोबार में विश्व में चीन सबसे आगे है। यहां सालाना तकरीबन 38 बिलियन डॉलर का कारोबार होता है जबकि फिलहाल भारत में करीब 3.4 बिलियन डॉलर का कारोबार हो रहा है। बांस क्राफ्ट में विश्व में नाम कमा रहे चीन को झटका लगा है। सउदी अरब की कंपनी ने उसे दरकिनार कर झारखंड की उपराजधानी दुमका में बांस के बने पैकेजिंग बास्केट का आयात करना शुरू कर दिया है। उसने 2019 में तीन लाख का बास्केट खरीदा। 20 साल से चीन के साथ कारोबार कर रही कंपनी ने पहली दफा भारत पर भरोसा जताया है। उसने दुमका की लिम्स (लहांटी इंस्टीट्यूट ऑफ मल्टीपल स्किल्स) नामक संस्था में बने प्रोडक्ट को बेहतर बताया है। यह माना गया कि संताल परगना की माटी में तैयार बांस मजबूूत है और कारीगर हुनरमंद।

झारखंड में बांस के छह लाख कारीगर 

सउदी अरब में रमजान के समय करोड़ों के बांस के बास्केट खरीदे जाते हैं। इसमें खजूर व पिस्ता की पैकेजिंग कर लोग अमेरिका, अफगान में रह रहे अपने रिश्ते-नातेदारों व मेहमानों को तोहफे भेजते हैं। दूसरी ओर भारत अब तक चीन व वियतनाम से 600 करोड़ की अगरबत्ती स्टिक की खरीदारी हर साल कर रहा था। अब इस पर भी विराम लग गया है। झारखंड में बांस के छह लाख कारीगर हैं। दुमका समेत संताल परगना में इनकी संख्या लगभग दो लाख है। संताल परगना में मोहली जाति के लोग इस कारोबार में हैं। सूबे के दूसरे जिलों में तुरी, कालीनवी, महाली जाति के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी इसी कारोबार को आगे बढ़ा रहे हैं।

कारीगर मेले में पहुंचे थे कई देशों के निवेशक

मालूम हो कि दुमका में रघुवर शासन में बांस कारीगर मेला लगा था। इसमें कई देशों के निर्यातक व निवेशक ने भाग लिया था। बांस से बने उत्पाद आयात करने वाली फेडरेशन ऑफ बाइंग एजेंट्स के निदेशक विदेश से आए थे। उन्होंने खुले मंच से कहा था कि दुमका का बांस व उससे बने उत्पाद की गुणवत्ता बेहतर है।

पहली दफा सउदी अरब ने दुमका के बांस उत्पाद पर भरोसा जताया। दिसंबर 2019 में झारखंड से पहली बार बांस का उत्पाद विदेश भेजा गया। तीन लाख के पैकेजिंग बास्केट की दो खेप जा चुकी है। सउदी की कंपनी 20 साल से चीन से कारोबार कर रही थी, लेकिन अब विश्वास का सिलसिला बढ़ा है। यह दूसरा अवसर है जब सितंबर में बांस के उत्पाद का ऑर्डर यूनाइटेड स्टेट एवं यूरोप ने दिया है। जनवरी में 55 लाख का उत्पाद भेजा जाएगा। यह संताल परगना जैसे कमजोर इलाके के लिए मील का पत्थर साबित होगा।

-अजीत सेन, निदेशक लिम्स, दुमका


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