ग्लोबल वार्मिंग से उत्तरी ध्रुव में बदली भालू की चाल, दुनिया के कई शहर हो जाएंगे तबाह
हवाएं गर्म हो रही हैं। ध्रुवों पर बर्फ पिघल रही है। उत्तरी ध्रुव पर रहने वाले जीवों का आचरण बदल रहा है। सोचिए क्यों दरअसल इसका कारण हम ही हैं।
धनबाद, आशीष सिंह। हवाएं गर्म हो रही हैं। ध्रुवों पर बर्फ पिघल रही है। उत्तरी ध्रुव पर रहने वाले जीवों का आचरण बदल रहा है। सोचिए क्यों, दरअसल इसका कारण हम ही हैं। हवा में कार्बन डाई ऑक्साइड जैसी तमाम गैसों और प्रदूषक तत्वों ने पारिस्थितिकी तंत्र को झकझोर दिया है।
धनबाद जयप्रकाश नगर की वैज्ञानिक डॉ. सोनल चौधरी ने इस दिशा में बड़ा काम किया है। उन्होंने अपने शोध में पाया कि उत्तरी ध्रुव के भालू चाल बदल रहे हैं। वहां के परिंदों के अंडे जल्द परिपक्व हो रहे हैं। डॉ. सोनल ने इंग्लैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ शेफील्ड के पर्यावरण विज्ञानी डॉ. गेरेथ फीनिक्स और यूनिवर्सिटी ऑफ बर्मिंघम के
वाइस चांसलर प्रो. मेल्कम प्रेस के मार्गदर्शन में शोध 2017 में पूरा किया। इसी विश्व विद्यालय में वे अभी बतौर व्याख्याता काम कर रही हैं।
शोध के लिए उन्होंने उत्तरी ध्रुव पर कई माह गुजारे। ‘क्लाइमेट चेंज एंड पॉल्यूशन’ विषय पर उनका शोध जंतु विज्ञानियों ने सराहा है। शोध से निकले निष्कर्षों से प्रदूषण के कारण बदलते वातावरण का जीवों पर होने वाले प्रभाव का अध्ययन हो सकेगा।
डॉ. सोनल ने बताया कि शोध के दौरान पाया गया कि ध्रुवीय परिंदों के अंडों से समय के पहले ही चूजे निकल रहे हैं। फूलों का रंग बदल रहा है। बर्फ का क्षेत्रफल घट रहा है। ध्रुवीय भालू जो बर्फ छोड़कर इधर-उधर नहीं जाते थे अब जमीन और पहाड़ों पर चढ़कर पशु-पक्षियों को निशाना बना रहे हैं। यही हाल रहा तो ध्रुवीय भालू की प्रजाति ही खत्म हो जाएगी या उनके व्यवहार में बड़ा परिवर्तन आएगा।
दुनिया के कई शहर हो जाएंगे तबाह
यूनिवर्सिटी ऑफ शेफील्ड से मिली पीएचडी की उपाधि डॉ. सोनल ने दिल्ली विवि से स्नातक करने के बाद पर्यावरण विज्ञान में एमएससी की। यूनिवर्सिटी ऑफ हेल (यूके) से जियोग्राफिक इन्फॉर्मेशन सिस्टम एंड इनवॉयरमेंट में डिग्री ली। यूनिवर्सिटी ऑफ शेफील्ड से पीएचडी की।
डॉ. सोनल ने बताया कि ग्लोबल वार्मिंग से उत्तरी ध्रुव पर तेजी से पारिस्थिति की परिवर्तन हो रहा है। ठोस पहल न हुई तो 21 वीं सदी के खत्म होने के साथ समुद्र का जलस्तर दो मीटर तक बढ़ेगा। इससे न्यूयॉर्क और मुंबई जैसे कई शहर डूब जाएंगे। दुनिया को बचाने के लिए वातावरण के बढ़ते तापमान को रोकना होगा। कार्बन डाई ऑक्साइड व अन्य हानिकारक गैसों का उत्सर्जन कम कर हरियाली धरती पर बिछानी होगी।
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