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सियासत के भंवर ने डुबो दी 'त्रिदेव' की दोस्ती की कश्ती, कभी दी जाती थी दोस्ती की मिसाल, अब राह जुदा Dhanbad News

मथुरा को फिर झामुमो का टिकट मिला है। राजकिशोर और सबा अभी वेटिंग लिस्ट में हैं। इधर गिरिडीह सांसद रहे रवींद्र पांडेय के बेटे विक्रम की एंट्री से टुंडी का चुनाव और दिलचस्प बन गया है।

By Sagar SinghEdited By: Published: Sat, 23 Nov 2019 12:43 PM (IST)Updated: Sat, 23 Nov 2019 12:43 PM (IST)
सियासत के भंवर ने डुबो दी 'त्रिदेव' की दोस्ती की कश्ती, कभी दी जाती थी दोस्ती की मिसाल, अब राह जुदा Dhanbad News
सियासत के भंवर ने डुबो दी 'त्रिदेव' की दोस्ती की कश्ती, कभी दी जाती थी दोस्ती की मिसाल, अब राह जुदा Dhanbad News

धनबाद, (तापस बनर्जी)। बात तकरीबन तीन दशक पहले की है। तब मथुरा प्रसाद महतो, डॉ. सबा अहमद और राजकिशोर महतो ने एकसाथ झारखंड मुक्ति मोर्चा से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी। इन तीन शूरमाओं की दोस्ती की मिसाल दी जाती थी। बदलते वक्त और सियासी दांव-पेंच ने ऐसे हालात खड़े कर दिए हैं कि अब तीनों एक-दूसरे को मात देने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं।

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पिछले विधानसभा चुनाव में मथुरा, राजकिशोर और सबा तीनों ही टुंडी विधानसभा से चुनावी समर में कूदे थे। मथुरा झारखंड मुक्ति मोर्चा, राजकिशोर आजसू और सबा झारखंड विकास मोर्चा के उम्मीदवार थे। सबा और मथुरा तो पिछले कई बार से एक दूसरे से टक्कर लेते रहे हैं। पिछली बार राजकिशोर महतो की एंट्री से टुंडी का चुनावी तापमान गरमा गया था।

इस बार मथुरा को फिर झामुमो का टिकट मिल चुका है। राजकिशोर और सबा अभी वेटिंग लिस्ट में हैं। इधर, गिरिडीह सांसद रहे रवींद्र पांडेय के बेटे विक्रम पांडेय की एंट्री से टुंडी का चुनाव और दिलचस्प हो गया है।

राज किशोर के सांसद बनते ही पड़ने लगी दोस्ती में दरार : 1980 में झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक स्व. बिनोद बिहारी महतो टुंडी विधानसभा से विधायक बने थे। उनके निधन के बाद पुत्र राजकिशोर महतो गिरिडीह के सांसद चुने गए। यहीं से दोस्ती में दरार का सिलसिला शुरू हुआ। 1995 में झारखंड मुक्ति मोर्चा (एम) से डॉ. सबा टुंडी से विधायक चुनी गईं। उन्होंने कांग्रेस के उदय कुमार सिंह व भारतीय जनता पार्टी से फूलचंद मंडल को मात दी थी।

जब बिहार से झारखंड अलग हो गया : वर्ष 2000 के विधानसभा चुनाव से पहले ही डॉ. सबा झामुमो छोड़ राष्ट्रीय जनता दल में शामिल हो चुके थे। इस चुनाव में राजद के प्रत्याशी के रूप में भी उन्हें जीत मिली और अपने साथी मथुरा प्रसाद महतो को उन्होंने मात दे दी। यही वो वर्ष था, जब झारखंड बिहार से अलग हो गया। डॉ. सबा ने झारखंड विकास मोर्चा का दामन थाम लिया।

1957 में अलग विधानसभा बना टुंडी : 1951 में देश में हुए पहले विधानसभा चुनाव के दौरान टुंडी और निरसा एक साथ जुड़े थे, जहां टुंडी में राम नारायण शर्मा और निरसा से टिकाराम मांझी विधायक थे। दोनों विधायक कांग्रेस पार्टी से थे। बाद में 1957 में टुंडी अलग विधानसभा के रूप में अस्तित्व में आया। तब टुंडी विधानसभा के पहले विधायक कांग्रेस के रामचंद्र शर्मा बने थे।


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