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8 को होगा जिला परिषद चेयरमैन रॉबिन गोराई के भाग्य का फैसला, जोड़तोड़ शुरू

सदस्य दुर्गा दास द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर 20 सदस्यों ने हस्ताक्षर किए थे। दो नाम ऐसे हैं जो बोर्ड बैठक के दिन अविश्वास प्रस्ताव पर अध्यक्ष के पक्ष में उठ खड़े हुए थे।

By mritunjayEdited By: Published: Wed, 30 Jan 2019 11:55 AM (IST)Updated: Wed, 30 Jan 2019 11:55 AM (IST)
8 को होगा जिला परिषद चेयरमैन रॉबिन गोराई के भाग्य का फैसला, जोड़तोड़ शुरू
8 को होगा जिला परिषद चेयरमैन रॉबिन गोराई के भाग्य का फैसला, जोड़तोड़ शुरू

धनबाद, जेएनएन। धनबाद जिला परिषद के चेयरमैन रॉबिन गोराई के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव की तारीख फाइनल हो गई है। अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग के लिए उपायुक्त आंजनेयुलु दोड्डे ने 8 फरवरी को डीआरडीए सभागार में बैठक बुलाई है। वोटिंग का समय 12.15 निर्धारित किया गया है। इसके बाद पक्ष-विपक्ष ने अपना किला मजबूत करने का काम शुरू कर दिया है। अध्यक्ष के खिलाफ आए इस विश्वास प्रस्ताव पर सप्ताह भर पूर्व अध्यक्ष के पक्ष में अपनी आवाज बुलंद करने वाले भी अब अविश्वास के साथ हाथ मिला चुके हैं। 

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बताते चलें कि जिला परिषद सदस्य दुर्गा दास द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर 20 सदस्यों ने हस्ताक्षर किया था। इनमें दो नाम ऐसे हैं जो बोर्ड बैठक के दिन इसी अविश्वास प्रस्ताव पर अध्यक्ष के पक्ष में उठ खड़े हुए थे। इनमें जिला परिषद सदस्य संतोष कुमार महतो और सुनील कुमार मुर्मू का नाम प्रमुख है। 15 जनवरी को जिला परिषद बोर्ड बैठक चल रही थी। इसी दौरान सदस्य दुर्गा दास ने आरोप लगाया कि अध्यक्ष के कारण गांव का विकास ठप है। दास ने सदन में ही अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की घोषणा कर दी और एक आवेदन सचिव शशि रंजन को सौंप दिया। आवेदन सौंपने से पूर्व अध्यक्ष ने बैठक समाप्ति की घोषणा कर चले गए। इसके बाद सदस्य सुनील मुर्मू, संतोष महतो और सुभाष राय उठ खड़े हुए। इन तीनों ने कहा कि बैठक सुचारू रूप से चल रही थी, ऐसे में दुर्गा दास को इस प्रकार का कदम नहीं उठाना चाहिए था। इस बात का विरोध निरसा विधायक अरूप चटर्जी के प्रतिनिधि गौतम दसौंधी ने किया तो सुनील, संतोष और सुभाष तीनों का दसौंधी के साथ वाद-विवाद हो गया। यह नजारा सदन में मौजूद अधिकांश लोगों ने देखा। जबकि 22 जनवरी को दुर्गा दास द्वारा प्रपत्र क में दिए गए अविश्वास प्रस्ताव पर सुनील और संतोष के भी हस्ताक्षर हैं। 

ऐसे में यह बात चर्चा का विषय बनी हुई है कि आखिर एक सप्ताह के अंदर ही ऐसा क्या हुआ कि जो लोग अविश्वास के विरोध में थे, वे ही अब इसके पक्ष में आ चुके हैं। 


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