आत्मनिर्भर बनने की दिशा में चल पड़े हैं झारखंड के किसान, सरकारी योजना का लाभ उठाकर ऐसे कमा रहे हैं मोटी रकम
किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के मकसद से हेमंत सोरेन की सरकार ने झारखण्ड बिरसा हरित ग्राम योजना की शुरुआत की थी। राज्य के किसान इस योजना का अब भरपूर लाभ उठा रहे हैं। उन्हें अच्छी-खासी आमदनी भी हो रही है।
अजय कुमार पांडेय, धनबाद। प्रदेश की वर्तमान हेमंत सोरेन की सरकार ने कोविड काल में जब सरकारी पौधारोपण योजना को मनरेगा से जोड़ कर इसे प्रवासी मजदूरों के लिए रोजगार देने की योजना के रूप में हरी झंडी दी थी, तो इसकी सफलता को लेकर सभी के मन में संशय था। लेकिन 2020 में शुरू की गई इस योजना ने मनोहर जैसे प्रवासी मजदूरों की किस्मत तो खोली ही। नरेश महतो जैसे स्थानीय किसान के लिए भी आमदनी का अतिरिक्त जरिया बन गई।
कोरोना के बाद से ऐसे बदली किसानों की जिंदगी
अब इनकी सफलता से प्रेरित होकर जिले के ग्रामीण विकास विभाग के अधिकारी इन किसानों की बागवानी को नजीर बनाते हुए अन्य किसानों को प्रोत्साहित करने की योजना बना रहे हैं। दरअसल धनबाद सदर प्रखंड के धोखरा पंचायत के रहने वाले सीमांत किसान मनोहर महतो हर वर्ष खेती के सीजन में मजदूर की तरह काम करने के लिए अन्य प्रदेशों में चले जाते थे।
लेकिन कोरोना के समय उनका मन बदल गया। पास में पुरखों की कुछ जमीन थी, जिस पर वह खेती करने का सोच रहे थे। इसी बीच गांव के रोजगार सेवक और मुखिया के माध्यम से बिरसा हरित ग्राम योजना की जानकारी मिली। आवेदन करने के बाद ग्राम सभा से उनके नाम का चयन भी हो गया।
सिर्फ पेड़ों के रख-रखाव के बदले मिलने लगी मजदूरी
मनोहर कहते हैं कि सरकार के लोगों ने ही आकर पेड़ों को लगाया और इसके खाद पानी की व्यवस्था की। मुझे केवल इन पेड़ों की रख-रखाव करने के अलावा सिंंचाई करनी थी। उसके लिए भी मुझे मनरेगा से मजदूरी मिलने लगा। फिर क्या था, एक एकड़ जमीन पर सरकार से मिले आम के आम्रपाली सहित विभिन्न प्रजातियों के एक सौ पेड़ लगाए। साथ ही अंर्तखेती विधि से इन पेड़ों के बीच की खाली जमीन पर खीरा और अन्य सब्जियों को भी लगाया।
फल और सब्जियों को बेचकर होने लगी अच्छी आमदनी
महतो कहते हैं कि पहले दो साल तो पेड़ों में मंजर आए। लेकिन विशेषज्ञों के कहने पर तोड़ दिया। अभी पिछले वर्ष कुछ पेड़ों में फल आए थे, जिनको बेचकर करीब तीस हजार रूपये कमाए थे। साथ ही सत्तर हजार रूपये से अधिक की सब्जियां भी बेचीं थी। इस तरह महीने का औसतन आठ हजार कमाए।
सरकार की योजना का लाभ लेने आगे आ रहे किसान
उसी गांव के रहने वाले नरेश कहते हैं कि उन्होंने भी आधे एकड़ में चालीस पेड़ लगाए हैं। साथ ही अंर्तखेती विधि से सब्जियां उगा कर आमदनी कर रहे हैं। आज मनोहर और नरेश की सफलता देख जिला के हजारों किसान इस योजना का लाभ लेने के लिए लालायित हैं। आंकड़ों के अनुसार, लाभुकों की संख्या औेर बागवानी का क्षेत्रफल हर वर्ष बढ़ता जा रहा है। पहले वर्ष जहां मात्र 1100 पेड़ ही लगे। वहीं, इस वित्तिय वर्ष में आठ हजार पेड़ इस योजना से लगाए गए हैं।
बागवानी से प्रदूषण भी हो रहा कम
इस बारे में उप विकास आयुक्त शशि प्रकाश सिंह कहते हैं कि योजना को मनरेगा जैसी योजनाओं को जोड़ देने से ग्रामीण इलाकों में रोजगार का सृजन हो रहा है। वहीं, धनबाद जैसे कोयला खनन इलाकों में प्रदूषण को भी कम करने में मदद मिल रही है। अब जिले के अन्य किसानों के उत्साह को बढ़ाने के लिए इन किसानों के बागवानी को दिखाने की योजना बनाई जा रही है।
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