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भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के समय बांग्लादेश व पाकिस्तान दोनों भूखंडों से लोग आए थे धनबाद, पढ़िए पूरी खबर

भारत के समाज संस्कृति और सभ्यता की विशिष्टता का अपना स्थान है। यह किसी भी धर्म या किसी भी देश के लोगों को अपने अंदर बिना किसी भेदभाव के समाहित कर लेता है। इसका उदाहरण भारत के विभाजन के समय भी देखा गया था।

By Atul SinghEdited By: Published: Thu, 24 Dec 2020 11:29 AM (IST)Updated: Thu, 24 Dec 2020 11:29 AM (IST)
भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के समय बांग्लादेश व  पाकिस्तान दोनों भूखंडों से लोग आए थे धनबाद, पढ़िए पूरी खबर
भारत के समाज, संस्कृति और सभ्यता की विशिष्टता का अपना स्थान है। (प्रतीकात्मक तस्वीर)

धनबाद, आशीष सिंह: भारत के समाज, संस्कृति और सभ्यता की विशिष्टता का अपना स्थान है। यह किसी भी धर्म या किसी भी देश के लोगों को अपने अंदर बिना किसी भेदभाव के समाहित कर लेता है। इसका उदाहरण भारत के विभाजन के समय भी देखा गया था। कुछ राज्यों में हुए फसादों को छोड़कर, पूरे देश में स्थिति सामान्य ही बनी रही थी। धनबाद में विभाजन के समय सात हजार से अधिक शरणार्थी आए थे। इन्हें स्थानीय लोगों एवं सरकार ने मदद कर जगह-जगह पर न केवल बसाया था, बल्कि रोजगार के समुचित साधन भी उपलब्ध कराए। झरिया में तो एक नया मुहल्ला ही बसा था, जो आज भी अस्तित्व में है- नई दुनिया।  

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डेढ़ हजार लोग पाकिस्तान से आए थे धनबाद

वरिष्ठ पत्रकार वनखंडी मिश्र बताते हैं कि आजादी के समय भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के समय पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) एवं पश्चिमी पाकिस्तान (मौजूदा पाकिस्तान), दोनों भूखंडों से लोग धनबाद आए थे। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 1946 से 1951 तक लोग यहां आते गए। 1946 में पाकिस्तान से धनबाद पहुंचने वालों की संख्या 61 थी, जिसमें 37 पुरुष और 24 महिलाएं थी। 1947 में सर्वाधिक 1100 लोग धनबाद आकर बसे। इस बार महिलाओं की संख्या (570) पुरुषों (530) के मुकाबले च्यादा थी। 1948 में 174 पुरुष और 165 महिलाएं, 1949 में 50 पुरुष और छह महिलाएं और 1950 में कुल 72 (45 पुरुष और 27 महिलाएं) धनबाद आकर बसे थे।

बांग्लादेश से 5629 शरणार्थी पहुंचे थे धनबाद

बांग्लादेश से धनबाद (तब का मानभूम जिला) की भौगोलिक दूरी कम थी। इसलिए पाकिस्तान की तुलना में, यहां से ज्यादा लोग धनबाद आए। 1951 की जनगणना के मुताबिक 1946 से लेकर 1951 तक धनबाद में, पूर्वी पाकिस्तान यानी बांग्लादेश से पहुंचने वाले शरणार्थियों की संख्या 5629 थी। 1946 में 458 पुरुष और 125 महिलाएं, 1948 में 840 पुरुष और 393 महिलाएं, 1949 में 218 पुरुष और 173 महिलाएं, 1950 311 पुरुष एवं 219 महिलाएं तथा 1951 में पांच पुरुष व एक महिला का धनबाद शरणार्थी के रूप में आगमन हुआ था। वहीं, छह वर्षों की तुलना में अकेले 1947 का वर्ष सब पर भारी पड़ा, जब 1639 पुरुष एवं 1247 महिलाएं यानी कुल 2886 लोगों ने धनबाद आकर शरण लिया था।

जोड़ापोखर और धनबाद में बनाए गए थे शिविर

इन शरणार्थियों को बसाने के लिए सरकार ने तात्कालिक रूप से जिले में दो जगहों पर (जोड़ापोखर और धनबाद में) शिविर बनाए थे। लेकिन, शरणार्थियों ने शिविर में रहने से इनकार कर दिया और स्थाई घरों की मांग करने लगे। सरकार ने उनकी मांगों पर गौर करते हुए कोई निर्माण तो नहीं कराया लेकिन आर्थिक मदद की, जिनसे वे अपने लिए स्थाई डेरा बना सकें।

झरिया में बसाई गई थी नई दुनिया

झरिया नगर में एक मुहल्ला है नई दुनिया। आजादी के समय झरिया के चार नंबर, एक्का-टैक्सी स्टैंड, बस स्टैंड से पूरब झरिया-पाथरडीह रेल लाइन तक जो क्षेत्र बसाया गया था है। आज नई दुनिया के नाम से जाना जाता है। इस कार्य में समाजसेवी स्व. देशराज जी का प्रमुख योगदान था। उन्होंने अपनी जमीन, धन-जन आदि देकर विभाजन के समय आए शरणार्थियों को बसाया था। इस मुहल्ले में बाकायदा धर्मशाला, ठाकुरबाड़ी भी बनवाया गया था। विधिवत पूजा-पाठ के लिए पुजारी-पुरोहित की भी व्यवस्था उन्होंने की थी। आज यह क्षेत्र घनी आबादी वाला हो गया है।

मकान के साथ-साथ रोजगार के लिए भी सरकार ने दिए थे पैसे

इन शरणार्थियों को राहत पहुंचाने के लिए जिले के रिलीफ विभाग की ओर से अग्रिम लोन बांटे गए थे। ये लोन स्थाई आवास बनाने और जीवकोपार्जन के लिए धंधा शुरू करने के लिए दिए गए थे। 1948 से 1958 तक सरकार ने कुल 1 लाख 86 हजार 017 रुपये इस मद में शरणार्थियों को प्रदान किया था। 1959-60 में 30 हजार 934 रुपये मकान बनाने और 63 हजार 012 रुपये रोजगार के लिए दिए गए थे। अगले वर्ष 1960-61 ई. में घर निर्माण के लिए 45 हजार 290 रुपये और रोजी-रोटी के लिए 46 हजार 781 रुपये सरकार ने बांटे थे।


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