सुप्रीम कोर्ट के निर्देश को भी नहीं मान रहा डीआरडीए
सूचना का अधिकार के तहत जिला प्रशासन से जवाब मांगनेवाले ग्रामीण विकास श्रमिक संघ के प्रदेश मंत्री प्रवीण झा बताते हैं कि सरकार मनरेगा कर्मियों को न्यूनतम मजदूरी भी नहीं दे रही।
धनबाद, जेएनएन। पहली अगस्त 18 को सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड सरकार को अस्थायी नियुक्तियों पर रोक का निर्देश दिया और आठ सितंबर को ही उसे नजरअंदाज करते हुए नए सिरे से विज्ञापन निकाल दिया गया। मामला मनरेगा में तकनीकी सहायकों की अस्थायी नियुक्ति का है। राज्य के सभी जिलों में डीआरडीए ने मनरेगा कार्यों के लिए तकनीकी सहायकों की नियुक्ति को आवेदन मंगाया है। धनबाद जिले में तकनीकी सहायकों के 13 रिक्त पदों के लिए आवेदन मांगा गया।
इसका मनरेगा कर्मियों के बीच व्यापक विरोध हुआ। जब सूचना का अधिकार के तहत जिला प्रशासन से जानकारी मांगी गई तो उपविकास आयुक्त ने उपायुक्त के निर्देश से आवेदन मांगने की जानकारी दी। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों पर कोई जवाब न देते हुए इसे विभाग से संबंधित मामला बता दिया। जब विभागीय सचिव से इस संबंध में पूछा गया तो उन्होंने पूरे मामले से ही अनभिज्ञता जता दी।
क्या है अदालत का निर्देश : झारखंड सरकार के अधीनस्थ अनियमित रूप से नियुक्त एवं कार्यरत कर्मियों की सेवा नियमितीकरण नियमावली-2015 के तहत नियमित किए जाने से इन्कार जाने के मामले की सुनवाई करते हुए पहली अगस्त 18 को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी लोकुर व जस्टिस दीपक गुप्ता के बेंच ने फैसला दिया था कि सरकार सिर्फ स्थायी नियुक्ति ही करे। अस्थायी नियुक्तियों का विचार त्याग दे।
पंचायत सचिव के वेतन पर अभियंता की नियुक्तिः सूचना का अधिकार के तहत जिला प्रशासन से जवाब मांगनेवाले ग्रामीण विकास श्रमिक संघ के प्रदेश मंत्री प्रवीण झा बताते हैं कि सरकार मनरेगा कर्मियों को न्यूनतम मजदूरी भी नहीं दे रही। नियमित पंचायत सचिव का वेतन 18 हजार से अधिक है। जबकि उसके ही समान काम कर रहे रोजगार सेवक के लिए छह हजार रुपये मानदेय रखा गया है। इसी में टीए-डीए व फोन का खर्च शामिल है। जबकि मजदूरों के लिए न्यूनतम मजदूरी प्रतिदिन 300 रुपये करीब रखा गया है। महीने में लगभग नौ हजार। पंचायत सचिव के कम वेतन में सरकार कनीय अभियंता (तकनीकी सहायक) रखना चाहती है जिनका वेतन 17520 रुपये रखा गया है। विरोध इसी बात पर है।
मैं इस बारे में फिलहाल कुछ नहीं कह सकता। मुझे नहीं पता कहां क्या हो रहा है।
-अविनाश कुमार, प्रधान सचिव, ग्रामीण विकास विभाग, झारखंड