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13 वर्ष में गायब हो गए डेढ़ करोड़ के बोरे

स्कूलों में मध्याह्न भोजन योजना संचालित है। मिड डे मील के तहत स्कूलों को चावल का आवंटन करने का काम एफसीआइ करता है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 22 Aug 2018 02:52 PM (IST)Updated: Wed, 22 Aug 2018 02:52 PM (IST)
13 वर्ष में गायब हो गए डेढ़ करोड़ के बोरे
13 वर्ष में गायब हो गए डेढ़ करोड़ के बोरे

आशीष सिंह, धनबाद। स्कूलों में मध्याह्न भोजन योजना संचालित है। मिड डे मील के तहत स्कूलों को चावल का आवंटन करने का काम एफसीआइ करता है। यह चावल 50-50 किलो के बोरे में मिलता है, इसका भुगतान झारखंड राज्य मध्याह्न भोजन प्राधिकरण की ओर से किया जाता है। इसके तहत प्रावधान यह किया गया है कि चावल खाली करने के बाद इन बोरों को शिक्षा विभाग के मार्फत एफसीआइ को लौटाना है। एफसीआइ 14.40 रुपये की दर से इन बोरों की बिक्री करेगा। या तो स्कूल ही इस दर से बोरों की बिक्री कर विभाग को राशि वापस करेंगे। लेकिन पिछले 13 वषरें से जब से मिड डे मील योजना चल रही है, तब से लेकर आज तक के बोरों का हिसाब स्कूलों के पास नहीं है। जिले में स्कूल संख्या, छात्र संख्या, चावल आवंटन के आकड़ों के अनुसार डेढ़ करोड़ का बोरों का कोई हिसाब-किताब नहीं है।

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झारखंड राज्य मध्याह्न भोजन प्राधिकरण ने अब इन बोरों या खाली बनी बैग की सुध ली है। निदेशक ने पत्र जारी कर धनबाद डीएसई से इन बोरों पर रिपोर्ट तलब की है। जिले के सभी स्कूलों से मांगे गए बोरों के हिसाब से खलबली मची हुई है। किसी भी स्कूल के पास बोरों का हिसाब नहीं है, या तो गनी बैग सड़-गल गए या तो चूहे खा गए। शिक्षा के गलियारे में तो इस बात की भी चर्चा है कि बोरे बेच दिए गए। जिले में सरकारी प्राथमिक एवं मध्य विद्यालयों की संख्या 1832 है।

ऐसे समझें बोरों का गणित: स्कूलों में चावल का आवंटन जूट के बोरे में भरकर किया जाता है। एक बोरे चावल का भार 50 किग्रा होता है। चावल खाली होने के बाद इसकी बिक्री करने और मिलने वाली राशि मध्याह्न भोजन योजना पर ही खर्च करने का प्रावधान किया गया है। पिछले 13 वर्षो से धनबाद जिले से खाली बोरों का हिसाब ही नहीं दिया गया है। खाली बोरों की संख्या लगभग 11 लाख 76 हजार 760 है। विभाग द्वारा निर्धारित दर 14.40 रुपये के हिसाब से शिक्षा विभाग को 1 करोड़ 69 लाख 45 हजार 344 रुपये मिलते। खाली बोरों का ब्योरा इससे पहले 20 दिसंबर 2013 को भी मांगा गया था, लेकिन न तो उस समय इसका हिसाब दिया गया और न ही आज इसका कोई लेखा-जोखा मौजूद है।

फैक्ट फाइल

- 2005 से मध्याह्न भोजन योजना का स्कूलों में संचालन

- पहली से पांचवीं के लिए प्रति छात्र 100 ग्राम रोजाना चावल

- छठी से आठवीं के लिए प्रति छात्र 150 ग्राम रोजाना चावल

- पहली से पांचवीं के लिए 2463.98 मीट्रिक टन चावल आवंटित

- छठी से आठवीं के लिए 2062.10 मीट्रिक टन चावल आवंटित

- एक साल में 4526.08 मीट्रिक टन चावल का आवंटन

- एक साल में 90 हजार 520 गनी बैग (बोरा) में भेजा गया चावल

- 13 वर्षो में 11 लाख 76 हजार 760 बोरे में भेजा गया चावल

प्राधिकरण ने मांगा हिसाब

इस मामले को लेकर झारखंड राज्य मध्याह्न भोजन प्राधिकरण ने डीएसई को पत्र जारी कर खाली बोरों का हिसाब मांगा है। इसमें कहा है कि मध्याह्न भोजन योजना के खाली गनी बैग की बिक्री भारतीय खाद्य निगम को करने तथा बिक्री से प्राप्त राशि का उपयोग मध्याह्न भोजना योजना में किया जाना है। लेकिन अभी तक किसी भी जिले से अनुपालन प्रतिवेदन प्राप्त नहीं है, यह काफी निराशाजनक है। इसलिए विभिन्न वर्षो में जिले को उपलब्ध कराए गए खाद्यान्न के अनुसार खाली गनी बैग का लेखा संधारण करते हुए वर्षवार प्रतिवेदन एमडीएम प्राधिकरण को उपलब्ध कराना सुनिश्चित करें। जिले की बात करें तो यहां 2005 से एमडीएम योजना संचालित है।

कैसे मिलेगा बोरों का हिसाब

अखिल झारखंड प्राथमिक शिक्षक संघ के महासचिव नंद किशोर सिंह का कहना है कि इतने दिनों के बोरों का हिसाब-किताब लगाना आसान काम नहीं है। किसी भी विद्यालय में 50 बोरा भी मिल जाए, यह संभव नहीं है। ऐसी स्थिति में स्कूलों के प्रधानों की मुश्किलें बढ़ना लाजिमी है। 2005 से कई विद्यालय के प्रभारी बदले गए, कई सेवानिवृत्त भी हो गए हैं।

खाली बोरों को लेकर प्राधिकरण से निर्देश मिला है। सभी प्रखंड के बीईईओ को इस संबंध में पत्र जारी कर दिया गया है। बोरों का हिसाब मांगा जा रहा है, हालांकि अधिकतर स्कूलों में बोरा सही सलामत नहीं है। विनीत कुमार, डीएसई धनबाद।


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