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Dharmraj Temple Bokaro: सनातन धर्म में विकृति ढूंढने वालों को बुला रहा गांव महाल; यहां यमराज की होती पूजा, कालिंदी होते पुजारी

Dharmraj Temple Bokaro सनातन धर्म में साल में एक ही दिन दिवाली के दिन यमराज की पूजा की पंरपरा रही है। लेकिन झारखंड के इकलाैते धर्मराज यमराज मंदिर में हर रोज पूजा होती है।

By MritunjayEdited By: Published: Sat, 01 Aug 2020 07:27 PM (IST)Updated: Sat, 01 Aug 2020 07:27 PM (IST)
Dharmraj Temple Bokaro: सनातन धर्म में विकृति ढूंढने वालों को बुला रहा गांव महाल; यहां यमराज की होती पूजा, कालिंदी होते पुजारी
Dharmraj Temple Bokaro: सनातन धर्म में विकृति ढूंढने वालों को बुला रहा गांव महाल; यहां यमराज की होती पूजा, कालिंदी होते पुजारी

बोकारो [ जागरण स्पेशल ]। सनातन धर्म में विकृति ढूंढने वालों को गांव महाल आमंत्रित करता है। यह गांव अपने साथ सामुदायिक एकता और अनूठी परंपरा की मिसाल लिए साै वर्षों से भी ज्यादा समय से विद्यमान है। एक तो मिसाल यह कि यहां धर्मराज यमराज का मंदिर है। दूसरा मंदिर का पुजारी कोई कर्मकांडी नहीं बल्कि कालिंदी समाज के लोग होते हैं। और भक्त होते हैं राजा-महाराज के वंशजों के साथ पूरे गांव-समाज के लोग। हर साल यहां श्रावण महीने के त्रयोदशी के दिन यमराज की धूमधाम से पूजा होती है। इस साल भी शनिवार को हुई। हालांकि कोरोना काल के कारण भीड़-भाड़ कम रही। 

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साल में एक ही दिन यमराज की पूजा की पंरपरा

सनातन धर्म में साल में एक ही दिन यमराज की पूजा की पंरपरा रही है। दिवाली के एक दिन पहले छोटी दिवाली मनाई जाती है। इसे नरक चतुर्दशी या रूप चाैदस भी कहते हैं। पुराणों के अनुसार इस दिन यमराज की पूजा करने या दीपदान करने से अकाल मृत्यु का भय सदा के लिए समाप्त होता है। लेकिन झारखंड के इकलाैते धर्मराज यमराज मंदिर में हर रोज यमराज की पूजा होती है।

यमराज का झारखंड में इकलाैता मंदिर

बोकारो जिले के चंदनकियारी प्रखंड अंतर्गत महाल में झारखंड का इकलाैता धर्मराज मंदिर है। यहां भगवान धर्मराज (यमराज) की पूजा होती है। चंदनकियारी के महाल गांव में अवस्थित इस मंदिर के पूजारी कोई ब्राह्मण नहीं है। कालिंदी समाज के लोग पुजारी होते हैं। सामान्य तौर पर कालिंदी समाज के लोग साफ-सफाई के कार्य से जुड़े हुए हैं पर यहां वे पुजारी हैं। अन्य जाति के लोग यहां भक्त बनकर आते हैं। खासकर काशीपुर महाराज के वंशज कहे जाने वाले जो कि क्षत्रीय हैं वे भी पूजा के दौरान उपस्थित रहते हैं।

मनोकामना पूर्ण होने पर बकरे और मुर्गे की चढ़ती बलि

प्रत्येक वर्ष की तरह इस वर्ष भी पूजा का आयोजन हुआ, लेकिन कोरोना के कारण लोग मंदिर में कम संख्या में पहुंचे और पूजा के लिए दी जाने वाली बलि का कार्य मंदिर के आसपास खेत व रास्ते के किनारे किया गया। पुजारी भरत कालिंदी ने विधिपूर्वक पूजा अर्चना की । सामान्य दिनों में यहां पूजा बड़े ही धूमधाम से की जाती है। प्रखंड के महाल, नयावन, पर्वतपुर, अमलाबाद, बीरूबांध, आसोनसल,देवग्राम समेत आसपास के श्रद्धालुओं ने अपने-अपने घरों में ही पूजा की। कुछ महिलाओं ने सड़क पर ही गोबर से लिपाई कर भगवान धर्मराज (यमराज) की पूजा की। अमन चैन के लिए मन्नतें मांगी । श्रद्धालु मनोकामना पूर्ण होने पर अपने घरों में ही बकरे व मुर्गे की बलि देते हैं।

क्या है किदंवती

इस मंदिर के संबंध में किदवंती है कि काशीपुर के महाराज के वंशज भगवान धर्मराज की पूजा किया करते थे। कालांतर में यहां के लोगों को आने-जाने में परेशानी होने लगी तो उन्हीं लोगों ने चंदनकियारी के महाल गांव में सैकड़ों वर्ष पूर्व भगवान धर्मराज के मूर्ति की स्थापना की। धीरे-धीरे वहीं मंदिर बन गया। प्रतिदिन पूजा-अर्चना के लिए कालिंदी परिवार के सदस्यों को जिम्मेदारी सौंपा गया, जो कि यहां के पुजारी हैं ।


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