UPSC हो या SSC या Banking... धनबाद के इस जगह पर आइए और अपनी ज्ञान की प्यास बुझाइए
कुछ होती है हल्की कुछ भारी लेकिन इनमें होती है दुनिया की हर जानकारी अक्सर कुछ नया करने का इनसे ही बनता ख्वाब है जिंदगी में सबसे अच्छा दोस्त कोई और नहीं किताब है। डिजिटल युग में यह मानने वाले कम नहीं है कि किताब अब उतने प्रासंगिक नहीं रहेंगे।
अजय कुमार पांडेय, धनबाद: कुछ होती है हल्की, कुछ भारी, लेकिन इनमें होती है दुनिया की हर जानकारी, अक्सर कुछ नया करने का इनसे ही बनता ख्वाब है, जिंदगी में सबसे अच्छा दोस्त कोई और नहीं, किताब है।
जी हां, डिजिटल युग में यह मानने वाले कम नहीं है कि किताब अब उतने प्रासंगिक नहीं रहेंगे। लोग कंप्यूटर या मोबाइल पर सब कुछ पढ़ लेंगे। यह आकलन सच नहीं लगता। बीते सिर्फ एक साल के भीतर धनबाद के इकलौते राजकीय पुस्तकालय में एक हजार से अधिक नए सदस्य बने हैं।
कुल सदस्य संख्या 9580। प्रत्येक दिन एक से डेढ़ सौ लोग यहां आते हैं। जरूरत की पुस्तकें पढ़ते हैं अथवा ले जाते हैं। आखिर यहां 55318 पुस्तकों का विशाल भंडार जो है। स्कूल या कालेज की पढ़ाई के लिए किताबें चाहिए, समाज विज्ञान को समझना हो, इतिहास को जानने-समझने में रूचि है, विश्व के बड़े व्यक्तित्व को जानना हो, इतिहास के बड़े घटनाक्रम पर समझ बढ़ानी हो, धर्म-अध्यात्म की ओर रूझान हो, कोयला जगत की यात्रा को जानना हो, इस पुस्तकालय में आपकी हर जिज्ञासा को शांत करने वाली किताबें उपलब्ध हैं। ऐसे लोगों की संख्या हजारों में है जिनकी इन किताबों से मित्रता है। नियमित आते हैं, किताबों के संसार में खो जाते हैं। अगर कभी नहीं आए तो उन्हें खालीपन सा लगता है।
यह पुस्तकालय सचमुच ऐतिहासिक है। देश की आजादी के बाद 1953 में इसकी स्थापना हुई थी। अभी गोल्फ ग्राउंड के पास है। पहले कहीं और होता था। जगह बदलती गई। सिर्फ किताब नहीं बदले। डिजिटल अक्षर पढ़ने के दौरान भी पन्नों पर छपे हर्फ को पढ़ने के लिए इस पुस्तकालय में आने वाले पाठकों की संख्या में बहुत परिवर्तन नहीं हुआ है। हर विषय पर हिंदी, बांग्ला, उर्द एवं अंग्रेजी में किताबें मिल जाएंगी। कुछ और भाषाओं की भी पुस्तके हैं। शिक्षा विभाग के अधीन संचालित पुस्तकालय के अध्यक्ष उमापति रेड्डी कहते हैं, तीन पठन-पाठन कक्ष हैं। एक साथ डेढ़ सौ लोग बैठकर पढ़ सकते हैं। इनमें एक कक्ष सिर्फ महिलाओं के लिए है। तिल रखने की भी जगह शेष नहीं बचती। एक बार दो किताबें घर ले जाकर पढ़ने के लिए इश्यू करा सकते हैं। पर्याप्त जगह नहीं होने के कारण कई पाठक घर ले जाकर किताबें पढ़ते हैं। इसलिए धनबाद शहर के बाहर रहने वाले लोगों को सदस्य बनाना फिलहाल बंद कर दिया गया है।
हीरापुर की काजल पाठक का राजकीय पुस्तकालय से तीन साल पुराना नाता है। 2019 में सदस्य बनने के बाद वे नियमित आती हैं। प्रशासनिक अधिकारी बनने के लिए प्रतियोगिता परीक्षा की पुस्तकें उन्हें मिल जाती हैं। काजल कहती हैं, यहां आने के बाद उन्हें जीने का नया मकसद मिल गया है। वे कहीं बेहतर तरीके से तैयारी कर पा रही है। रितेश यहां 2016 से ही आ रहे हैं। उस वक्त वे बारहवीं की पढ़ाई कर रहे थे। वे कहते हैं, किताबों के इस संसार ने कालेज की पढ़ाई में सहारा दिया। अब प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए किताबों को लेकर तनिक भी तनाव नहीं है। हम यहां सिर्फ पढ़ते नहीं है। हरेक शनिवार को प्रतियोगी परीक्षा पर आधारित क्विज प्रतियोगिता भी होती है। पता चल जाता है, कितना पढ़े, कितना समझे, और कितना एवं क्या पढ़ना होगा। सच, जो आज पुस्तकालय के सदस्य हैं, वे शायद कल नहीं होंगे, मगर किताबें होंगी। सबकी दोस्त।