Move to Jagran APP

बांग्ला नाटकों के मंचन में आई कमी के बाद खड़ा हुआ हिंदी रंगमंच, 80 के दशक से हो रहा था संघर्ष Dhanbad News

धनबाद का हिंदी रंगमंच अनेक आयामों से गुजरा और अपनी एक अलग पहचान बनाने में कामयाब हुआ। बांग्ला नाटकों के मंचन में कमी आई और हिंदी रंगमंच उठ खड़ा हुआ।

By Sagar SinghEdited By: Published: Fri, 03 Apr 2020 04:19 PM (IST)Updated: Fri, 03 Apr 2020 04:19 PM (IST)
बांग्ला नाटकों के मंचन में आई कमी के बाद खड़ा हुआ हिंदी रंगमंच, 80 के दशक से हो रहा था संघर्ष Dhanbad News
बांग्ला नाटकों के मंचन में आई कमी के बाद खड़ा हुआ हिंदी रंगमंच, 80 के दशक से हो रहा था संघर्ष Dhanbad News

धनबाद, जेएनएन। भावनाओं, सामाजिक मुद्दों और व्यक्तिगत अभिनय क्षमता को बढ़ाने में रंगमंच हमेशा से कारगर रहा है। धनबाद जैसे बांग्ला भाषी क्षेत्र में हिंदी रंगमंच ने काफी संघर्ष किया और यह द्वंद अब भी जारी है। इसके बावजूद भी 80 के दशक से लेकर अबतक धनबाद का हिंदी रंगमंच अनेक आयामों से गुजरा और अपनी एक अलग पहचान बनाने में कामयाब हुआ।

loksabha election banner

धनबाद में हिंदी नाटकों की शुरुआत 80 के दशक में हुई थी। वशिष्ठ प्रसाद सिन्हा, विजय प्रकाश, हीरालाल सरगम जैसे लोगों ने कम संसाधनों में इसकी नींव डाली। वह वक्त था जब धनबाद में बांग्ला जात्रा का अधिक प्रभाव था। जगह-जगह जात्रा आयोजित होते थे, लेकिन समय बीतने के साथ बांग्ला नाटकों के मंचन में कमी आती गई और हिंदी रंगमंच उठ खड़ा हुआ।

बांग्ला जात्रा और हिंदी नाटकों से रुचि रखने वाले धनबाद के समाजसेवी सह द ब्लैक पर्ल्स के संरक्षक बिजय झा कहते हैं कि पहले बांग्ला भाषा क्षेत्र रहने के कारण जात्रा काफी होती थी। सरकारी नौकरी पेशा बंगाली वर्ग इसमें बहुत ही सक्रिय था। बाद के दिनों में बंगाली समुदाय के लोग रिटायर होते गए और धनबाद छोड़ते गए। बाद में हिंदी नाटकों ने अपनी जगह बनाई। 1980 के बाद कला निकेतन, बिखरे मोती जैसी संस्थाओं ने हिंदी नाटकों को आगे बढ़ाया। 2010 के बाद कॉलेजों एवं रेलवे जैसी संस्थाओं में नाटकों का मंचन शुरू हुआ।

अन्तरराष्ट्रीय स्तर के आयोजनों से आकर्षित : फिर वक्त आया कि युवाओं का, जिन्होंने रंगमंच के पारंपरिक ढर्रे से हटकर आधुनिक हिंदी नाटकों के मंचन में सक्रिय हुए। द ब्लैक पर्ल्स की शारदा कुमारी गिरी कहती हैं कि राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर होनेवाले आयोजनों ने युवाओं का आकर्षित किया। अपनी अदाकारी व कलाकारी लाइव दिखाने का मौका रंगमंच के सिवा कहीं नहीं मिल सकता। हिंदी के प्रचार-प्रसार में भी हिंदी नाटकों की अहम भूमिका है। सरकारी स्तर से नाट्य संस्थाओं को मदद मिले तो यह अपने मुकाम पर होगी।

कला निकेतन के वशिष्ट प्रसाद सिन्हा ने कहा कि समय अंतराल में हिंदी रंगमंच को बहुत अधिक संघर्ष करना पड़ा। यही कारण है कि आज भी धनबाद में संघर्ष करना पड़ा रहा है। नए जमाने के नाटककारों की बात करें तो सहाना ट्रूप की सहाना राय ने कहा कि हिंदी सभी को आसानी से समझ में आ जाती है। यही कारण है कि इसका धनबाद में प्रसार तेजी से हुआ।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.