शायरी से 'राहत' दे जाते थे इंदौरी, धनबाद के लोगों को बनाया था अपना मुरीद, दैनिक जागरण के कवि सम्मेलन में हुए थे शामिल
फैसला जो भी हो मंजूर होना चाहिए। जंग हो या इश्क हो भरपूर होना होना चाहिए। नई हवाओं की शोहबत बिगाड़ देती है कबूतरों को खुली छत बिगाड़ देती है। -डॉ. राहत इंदौरी
धनबाद, [आशीष सिंह]। मशहूर शायर डॉ. राहत इंदौरी हमारे दिलों में अमिट छाप छोड़ रुखसत हो लिए। डॉ. इंदाैरी को जिसने भी करीब से देखा और सुना वो उनका मुरीद हुए बिना नहीं रह सका। यही कारण है कि धनबाद की धरती पर उनका आगमन गाहे बगाहे होता रहा है। अपने हास्य-व्यंग्य से उन्होंने न केवल श्रोताओं का दिल जीता बल्कि अपना अक्स भी लोगों के जेहन में छोड़ गए। जब भी जिस भी आयोजक ने डॉ. साहब कार्यक्रम कराया, वहां खुद ब खुद भीड़ जुट जाती थी।
फरवरी 2018 में यहां आयोजित एक कार्यक्रम में शहर में बढ़ती आबादी पर डॉ. इंदौरी का व्यंग्य खासा चर्चा में रहा - शहर में तो बारूदों का मौसम है, गांव में चलो अमरूदों का मौसम है। इसके अलावा नवंबर 2018 की वो शाम तो शायद ही कोई भूला होगा। जरा बानगी देखिए - फैसला जो भी हो, मंजूर होना चाहिए। जंग हो या इश्क हो, भरपूर होना होना चाहिए। नई हवाओं की शोहबत बिगाड़ देती है, कबूतरों को खुली छत बिगाड़ देती है।
फरवरी 2018 में डॉ. राहत इंदौरी साहब : किसने दस्तक दी दिल पर कौन है, आप तो अंदर हैं ये बाहर कौन है। शहर में तो बारूदों का मौसम है, गांव में चलो अमरूदों का मौसम है। मेरी सांसों में समाया भी बहुत लगता है, वहीं शख्स पराया भी बहुत लगता है। सिर्फ खंजर ही नहीं आंखों में पानी चाहिए, ये खुदा मुझको दुश्मन भी खानदानी चाहिए।
नवंबर 2018 डॉ. राहत इंदौरी साहब : मेरे हुजरे में नहीं कहीं और रख दो, आसमां लाए हो, लाओ जमीं पर रख दो। अब कहां ढूंढ़ने जाओगे हमारे कातिल, आप कत्ल का इल्जाम हमीं पे रख दो। ये जो दीवार का सुराख है यही साजिश का हिस्सा है, मगर हम इसे अपने घर का रोशन दान कहते हैं।