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कोयलांचल के स्लम क्षेत्रों में अपने बलबूते कोरोना से लड़ रहे लोग

झरिया देश में चारों ओर कोरोना वायरस का खौफ है। लॉकडाउन के बीच लोग घर से बाहर नहीं निकल रहे हैं। ऐसे में झरिया कोयलांचल के स्लम क्षेत्रों के लोग सरकारी सहयोग के बिना अपने बलबूते कोरोना के खिलाफ लॉकडाउन में लड़ रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Mon, 06 Apr 2020 03:35 AM (IST)Updated: Mon, 06 Apr 2020 06:16 AM (IST)
कोयलांचल के स्लम क्षेत्रों में अपने बलबूते कोरोना से लड़ रहे लोग
कोयलांचल के स्लम क्षेत्रों में अपने बलबूते कोरोना से लड़ रहे लोग

झरिया : देश में चारों ओर कोरोना वायरस का खौफ है। लॉकडाउन के बीच लोग घर से बाहर नहीं निकल रहे हैं। ऐसे में झरिया कोयलांचल के स्लम क्षेत्रों के लोग सरकारी सहयोग के बिना अपने बलबूते कोरोना के खिलाफ लॉकडाउन में लड़ रहे हैं।

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झरिया सिंह नगर गुलगुलिया बस्ती में 46 परिवार रहते हैं। यहां के युवा व लोग दिहाड़ी मजदूरी करने के साथ रिक्शा-ठेला चलाते हैं। वहीं महिलाएं व बच्चे झरिया व धनबाद में भीख मांगकर गुजारा करते हैं। कोरोना खौफ के बीच यहां छाया देवी, चालो देवी, राजू कुमार, रामबाबू कहते हैं कि वायरस को रोकने के लिए कोई सरकारी पहल नहीं की जा रही है। सैनिटाइजर का छिड़काव भी नहीं किया गया है। मास्क का वितरण नहीं हुआ है। हमलोग कच्चे घर में रहकर खुद से बस्ती के लोगों को रोज सफाई, साबुन से हाथ धोने व सामाजिक दूरी बनाने के लिए जागरुक कर रहे हैं। खाने पर भी आफत आ गई है। झरिया की विधायक पूíणमा नीरज सिंह, झरिया पुलिस व कुछ समाजसेवी खाना का पैकेट देते हैं।

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कोयलांचल के इन जगहों पर है स्लम क्षेत्र : झरिया कोयलांचल व इसके आसपास क्षेत्रों में लगभग एक दर्जन स्लम क्षेत्र हैं। इनमें हजारों लोग रहते हैं। झरिया में 46, पाथरडीह में 60, सिदरी में 12, बलियापुर में 10, भूदा में 26, गोधर में 10, सरायढेला में 24, पांडेयडीह में 40, पांडरपाला में 20, राधानगर में 10 गुलगुलिया परिवार रहकर किसी तरह अपना जीवन जी रहे हैं। इसके अलावा घनुडीह-दुर्गापुर, बनियाहीर, भौंरा आदि स्लम क्षेत्रों में भी लोग रह रहे हैं।

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गुलगुलिया समाज के लोग निम्न स्तर का जीवन जीने को अभिशप्त हैं। जिले के कई क्षेत्रों में दशकों से गुलगुलिया कच्चे आवास में रहने को मजबूर हैं। इनके हक को लेकर कई बार प्रशासन का ध्यान दिलाया गया। कोरोना खौफ के बीच यहां के लोग जागरुक होकर अपने बलबूते इसे रोकने में लगे हैं।

- अनिल पांडेय, समाजसेवी झरिया।


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