Modi 2.0 Cabinet: कोल सेक्टर में सुधार की जरूरत, प्रहलाद जोशी से बड़ी उम्मीद
कोल इंडिया सात राज्यों में खनन करती है। धनबाद की बीसीसीएल समेत उसकी सात इकाइयां इस काम में लगी हैं। कोयला उद्योग के राष्ट्रीयकरण के समय कोल इंडिया की श्रमशक्ति साढ़े सात लाख थी।
धनबाद, आशीष अंबष्ठ। कोयला उद्योग। यह वह सेक्टर है जो पूरे देश को ऊर्जा देता है। बावजूद इस सेक्टर की स्थिति वक्त के साथ डांवाडोल होती गई। कोयला उत्पादन करने वाली कंपनी कोल इंडिया बेशक मुनाफे में है पर अपने लक्ष्य 2020 में एक हजार मिलियन टन कोयला उत्पादन से अभी भी दूर है। भारत कोकिंग कोल लिमिटेड दुश्वारियों से जूझ रही है। झरिया पुनर्वास योजना का धरातल पर बुरा हाल है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राजग की देश में नई सरकार बनी है। कोयला मंत्री की जिम्मेदारी प्रहलाद जोशी को सौंपी गई है। अब समस्याओं को दूर करने की चुनौती उनको स्वीकार करनी है। कोयला सेक्टर को उनसे काफी उम्मीदें भी हैं।
बेहतर कार्ययोजना बनाकर करना होगा काम : कोल इंडिया सात राज्यों में खनन करती है। धनबाद की बीसीसीएल समेत उसकी सात इकाइयां इस काम में लगी हैं। कोयला उद्योग के राष्ट्रीयकरण के समय कोल इंडिया की श्रमशक्ति साढ़े सात लाख थी। जो मौजूदा समय में घटते-घटते तीन लाख पर सिमट गई है। यह दीगर है कि कोयला उत्पादन बढ़ रहा है, पर श्रमशक्ति घट रही है। क्योंकि अधिकतर काम आउटसोर्सिंग कंपनियों से कराया जा रहा है। नए प्रोजेक्ट खोलने में जमीन अधिग्रहण की समस्या है। फंड की व्यवस्था के लिए कोल इंडिया के शेयर बिक रहे हैं। इन समस्याओं बेहतर कार्ययोजना के साथ कंपनी का उत्पादन बढ़ाकर निपटना होगा। उत्पादन लक्ष्य के अनुरूप तभी हो सकेगा जब पर्यावरण स्वीकृति, विधि व्यवस्था, बंद भूमिगत खदानें खोलने, मजदूरों के लिए बेहतर चिकित्सा व्यवस्था, आवास, खदान के लिए जमीन अधिग्रहण के मामले सुलझेंगे। नई तकनीक से कंपनी को सुसज्जित किया जाए। विदेशों से आ रहे कोयले पर निर्भरता कम करके झरिया कोलफील्ड में राख होते जा रहे कोयले का सदुपयोग सुनिश्चित करना होगा। नए ब्लॉक में खनन शुरू कराना होगा। इसके लिए बेहतर कार्ययोजना बनाकर काम करना होगा।
ठेका मजदूरों के दर्द पर लगाएं मरहम : कोल इंडिया में आउटसोर्सिंग से अधिकतर काम हो रहा है। इनमें ठेका मजदूरों की संख्या साढ़े तीन लाख तक पहुंच गई है। इनको कल्याणकारी योजनाओं का लाभ दिलाने के साथ हाई पावर कमेटी की अनुशंसा के अनुरूप वेतन भी दिलाना कोयला मंत्री का बड़ा टास्क होगा। श्रम संगठन लगातार इस मामले को उठा रहे हैं।
झरिया पुनर्वास योजना की गति करनी होगी तेजः भूमिगत आग के कारण खतरे में रह रही झरिया की आबादी के पुनर्वास की योजना वर्ष 2009 में बनी थी। उसे 2021 में पूरा करने का लक्ष्य था। पर, धरातल पर योजना की गति बेहद धीमी है। अभी तक महज कुछ हजार परिवार का ही पुनर्वास हो सका है। दरअसल पुनर्वास में सबसे बड़ी बाधा रैयतों का मुआवजा तय नहीं है। इस समस्या को भी सुलझाना होगा।
कोयला मंत्री से ये हैं उम्मीदें
-कोयला श्रमिकों को दसवें वेतन समझौता के लंबित मुद्दों के लागू होने की आशा बंधी है।
- फंड और पेंशन की व्यवस्था में सुधार, पेंशन फंड को मजबूत करने की दिशा में सकारात्मक पहल।
- नई खदानों को खोलने की पहल हो ताकि रोजगार के साधन बढ़ें।
- कोल इंडिया में वर्षों से बंद कर्मियों की बहाली शुरू हो।
- आरएनआर पॉलिसी को बेहतर किया जाए।
क्या कहते हैं श्रमिक प्रतिनिधि
मंत्री कोई भी बने अगर सरकार की नीति श्रमविरोधी है तो इससे किसी भी सेक्टर को फायदा नहीं होगा। कोयला मंत्री प्रहलाद जोशी से आशा है। वे मजदूर हित में काम करें।
-डीडी रामानंदन जेबीसीसीआइ सदस्य
जो सुविधाएं पहले कोल सेक्टर के मजदूरों को मिलती थीं वह अब नहीं मिल रही हैं। वेतन समझौता का लाभ आज तक नहीं मिल पाया। मेडिकल सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। कई योजनाएं बंद हो गईं।
-एके झा, राष्ट्रीय कोलियरी मजदूर संघ
परिस्थितियां बदल रही हैं। सरकार मजदूर विरोधी नीतियों से तौबा करे। मजदूरों के हित के काम करे। कोयला मंत्री मजदूरों के हित में नई योजनाएं लाकर अपना दायित्व निभाएं। तभी श्रमिकों का उत्थान होगा।
-नाथूलाल पांडेय, जेबीसीसीआइ सदस्य
कोयला मंत्री अधिकारियों की लंबित मांगों पर ध्यान दें। हमारी कई जायज मांगों पर भी ध्यान नहीं दिया जा रहा है। कोयला मंत्री हमारी मांग पूरी करेंगे यही आशा है।
-अनिरुद्ध पांडेय, अध्यक्ष, ऑफिसर्स एसोसिएशन (बीसीसीएल)
झारखंड से ये बने थे कोयला मंत्री :
- कडिय़ा मुंडा: 29 जनवरी 2003 से 9 जनवरी 2004 तक।
- शिबू सोरेन: मई 2004 से 10 मार्च 2005 तक।
29 जनवरी 2006 से 28 नवंबर 2006 तक।
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