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15 वर्ष में 15 हजार का भी नहीं हुआ पुनर्वास

धनबाद विधानसभा चुनाव परवान पर है। टिकट के लिए सभी जगह अभ्यर्थी परेशान हैं।

By JagranEdited By: Published: Tue, 19 Nov 2019 03:55 AM (IST)Updated: Tue, 19 Nov 2019 06:23 AM (IST)
15 वर्ष में 15 हजार का भी नहीं हुआ पुनर्वास
15 वर्ष में 15 हजार का भी नहीं हुआ पुनर्वास

धनबाद : विधानसभा चुनाव परवान पर है। टिकट के लिए सभी जगह अभ्यर्थी परेशान हैं। न मिले तो दूसरे दल का दरवाजा खटखटा रहे हैं। ऐसे में आम लोग सोचने पर विवश हैं कि जब पार्टियों का अपने कार्यकर्ताओं के प्रति और कार्यकर्ताओं के प्रति निष्ठा का कोई मतलब नहीं तो उनकी समस्याओं के प्रति क्या होगा। धनबाद जिला जहां तीन-तीन मानव निर्मित जलाशयों का केंद्र है वहीं इसकी जमीन का बड़ा हिस्सा कोयला खदानों की भेंट चढ़ चुका है। इन परियोजनाओं के कारण हजारों लोग जहां विस्थापित हुए हैं वहीं हजारों को विस्थापित किया जाना शेष है। जलाशयों और कोयला खदानों की जद में आए लोग तो विस्थापन की मार झेल ही रहे हैं जिन्हें इनके कारण रोजगार मिला अब उनका भी विस्थापन किया जाना है। धनबाद की अधिकांश कोयला खदानें कोल इंडिया की अनुषंगी कंपनी भारत कोकिंग कोल लिमिटेड के तहत आती है। कोयला खनन का काम निजी मालिकों ने बेतरतीब ढंग से शुरू की थी जिसकी वजह से कई कोयला खदानें आग की भेंट चढ़ गई। अब यह खतरनाक स्तर पर आ गई हैं जिसकी वजह से हर वर्ष कोई न कोई हादसा हो रहा है और लोग असमय काल के गाल में समा रहे हैं।

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आश्चर्यजनक यह है कि इतने के बावजूद जनप्रतिनिधि पुनर्वास के लिए सदन में कोई निजी विधेयक लाकर गंभीर चर्चा करने तक को अग्रसर नहीं हुए हैं। घोषणा पत्रों में भी यह विषय अनमने ढंग से ही शामिल किया जाता रहा है। इसके लिए कोई बड़ा आंदोलन भी अभी तक नहीं किया जा रहा है। लाखों लोगों का भविष्य तय करने वाला यह मामला चुनाव की सुर्खियां भले न बना हो लेकिन धनबाद के लाखों लोगों के लिए के लिए तो यह बड़ा मुद्दा है। पुनर्वास के लिए 2004 हुआ जरेडा का गठन :

लगातार हादसों के बाद दबाव में भारत सरकार ने राज्य सरकार के साथ मिलकर अग्नि प्रभावित क्षेत्र के विकास और वहां के लोगों का पुनर्वास करने के लिए दिसंबर 2004 में झरिया पुनर्वास व विकास प्राधिकार (जरेडा) का गठन किया है। जरेडा को अग्नि प्रभावित क्षेत्र के लोगों को सुरक्षित स्थान पर बसाने की जिम्मेदारी दी गई। इसके लिए बीसीसीएल से फंड मुहैया कराना निश्चित हुआ। बीसीसीएल ने जरेडा के तहत सिंदरी विधानसभा के बलियापुर थाना अंतर्गत पलानी पंचायत में बेलगढि़या में जमीन चिह्नित किया और टाउनशिप बसाना भी शुरू किया। इस दौरान विधि-व्यवस्था की स्थिति संभालने के लिए प्राधिकार में प्रमुख पदों पर प्रशासनिक अधिकारियों को भी शामिल किया गया। तय हुआ कि पहले पूरे अग्नि प्रभावित इलाके का सर्वे कर पुनर्वास के लायक लोगों को चिह्नित कर लिया जाए। और उनका पुनर्वास हो। लेकिन तकरीबन डेढ़ लाख प्रभावितों में अब तक चंद हजार लोग ही पुनर्वासित हो सके हैं। 15 वर्ष में जरेडा 15 हजार का भी पुनर्वास नहीं कर सका है। क्या है गतिरोध :

अब तक कट ऑफ डेट भी तय नहीं : समस्या यह आई कि अग्नि प्रभावित क्षेत्र में नित नए लोग आ कर बस रहे हैं। आवास देना तय हुआ तो भीड़ और बढ़ेगी। लिहाजा कट ऑफ डेट तय हो। फिलहाल वर्ष 2004 कट ऑफ डेट तय किया गया है। हालांकि इसमें भी विवाद जारी है। जरेडा की हाई पावर कमेटी जिसमें केंद्रीय कोयला सचिव और राज्य के मुख्य सचिव भी शामिल होते हैं ने 30 अक्टूबर को हुई बैठक में इसे बढ़ाकर 2009 करने पर विचार किया है। हालांकि निर्णय नहीं लिया गया। सर्वे का काम भी अधूरा :

जरेडा ने 595 इलाके चिह्नित किए जहां से लोगों का पुनर्वास किया जाना था। इनका सर्वे कर प्रभावितों की वास्तविक संख्या पता करनी थी। प्रभावितों में बीसीसीएल कर्मी और निजी लोगों को रखा गया था। निजी लोगों में अतिक्रमणकारी और रैयत दोनों ही शामिल थे। सर्वे के दौरान एक लाख चार हजार के करीब अतिक्रमणकारी चिह्नित किए गए जिनका पुनर्वास किया जाना है। इनके पुनर्वास का काम शुरू भी हुआ है। जबकि रैयतों की निश्चित संख्या तय नहीं हो पाया। कारण कि रैयत सर्वे का लगातार विरोध करते रहे हैं। अब तक रैयतों को मुआवजे पर फैसला नहीं :

जरेडा का गठन वर्ष 2004 में किया गया। बावजूद अब तक रैयतों को क्या मुआवजा दिया जाए यह निर्धारित नहीं हो सका है। यही वजह है कि रैयत लगातार सर्वे का विरोध करते रहे हैं। पिछले जुलाई माह में हुए सर्वे में बोकारो व धनबाद के आधा दर्जन क्षेत्र में सर्वे नहीं किया जा सका। अब कंपनी बीसीसीएल के हाल सर्वे और संबंधित अंचल कार्यो के मौजा रिपोर्ट के आधार पर रैयतों की पहचान में लगी है।

कुम्हार बस्ती नदी पार घनुआडीह में 36 घरों का पुनर्वास बाकी है। सभी को नोटिस मिल चुका है लेकिन एनओसी नहीं दिया गया है। मेरे पिताजी का मकान बेलगढि़या में मिल चुका है लेकिन मुझे मकान नहीं दिया गया है। यह बहुत खतरनाक इलाका है। वहां बारिश में भू-धंसान भी हो चुका है।

दीपक लहेरी, कुम्हार बस्ती जब सर्वे हुआ था तो कहा गया था कि मेरी शादी नहीं हुई। अब बाल-बच्चा भी हो गया है। दूसरे सर्वे में मेरे नाम से भी मकान देने की बात कही गई। अभी तक मेरे बस्ती के लोग और हम इंतजार कर रहे हैं लेकिन अभी तक पुनर्वास नहीं कराया जा रहा है।

बाल्मीकि पासवान, घनुआडीह चार नंबर हमारे घर के कुछ ही दूरी पर बारिश में भू-धंसान हुआ था। सर्वे में हम सभी के घर को चिह्नित कर नंबर दे दिया गया है। कोई कागजात नहीं दिया गया। अभी तक कोई सूचना भी नहीं दी गई। हम जल्द यहां से जाना चाहते हैं। क्या करें समझ नहीं आता।

दामोदर साव, गंसाडीह चार नंबर, गोधर रैयतों की मांग :

सर्वे कर लिया गया है। रसीद हम लोगों को दे दिया गया है। इसके बाद कोई कार्यवाही नहीं हुई है। प्रबंधन जब तक हम लोगों की शर्ते पूरी नहीं करती है हम लोग यहां से नहीं जाएंगे। हमारे इलाके में आग का खतरा भी नहीं है। आग सड़क के उस पार है।

हरिनारायण बेलदार, बेलदरिया बस्ती गोधर हम लोग रैयत हैं। हमने शर्त रखी है कि हमें जमीन के बदले जमीन, मकान के बदले मकान चाहिए जिसमें सभी सुविधा हो। बेलगढि़या के खोली में नहीं रहेंगे। दुर्गा मंदिर, शिव मंदिर व लहरा देवी मंदिर भी बनाकर देना होगा। पंडित व मंदिर के नाई के लिए भी आवास देना होगा।

रामप्रसाद बेलदार, बेलदरिया बस्ती, गोधर सीओ और जीएम ने लिखित आश्वासन दिया है कि हमें ऐसी जमीन दी जाएगी जिसका मालगुजारी टैक्स कटवाया जा सके। घर के साथ स्कूल की भी व्यवस्था होनी चाहिए। अभी तक तो जरेडा ने मुआवजा नीति ही नहीं बनाया है।

गणेश चौहान, बेलदरिया बस्ती, गोधर रैयतों की सबसे बड़ी शर्त यह है कि जितने लोग यहां पड़ोसी हैं, पुनर्वास स्थल पर भी उन सभी को एक ही जगह आवास व जमीन दी जाए। ऐसा नहीं किया गया तो हम नहीं जाएंगे। जमीन का मुआवजा भी हमें पुनर्वास की तिथि के अनुसार ही चाहिए।

नागेश्वर प्रसाद चौहान, बेलदरिया बस्ती, गोधर

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30 अक्टूबर को हुई हाई पावर कमेटी की बैठक में रैयतों के पुनर्वास के लिए मुआवजा कानूनों का अध्ययन करने का निर्णय लिया गया है। कट ऑफ डेट 2004 से 2009 किया जाए या नहीं इसका भी बीसीसीएल अधिकारियों के साथ विचार-विमर्श करना निर्धारित हुआ है। संभव है अगली बैठक में कुछ निर्णय हो जाए। जहां तक निश्चित संख्या की बात तो कई रैयतों ने गैरमजरुआ जमीन भी अपने नाम दिखा दिया है। अब जरेडा हाल सर्वे व मौजा प्लान का मिलान कर रैयतों को चिह्नित करने का काम कर रहा है। सूची जारी करने से पहले सभी रैयतों को दावा करने का समय दिया जाएगा।

राजू रजक, सर्वे प्रभारी, जरेडा


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