Chhath Special : सास के लिए मांगी मन्नत, पूरी हुई तो 52 वर्षों से करती आ रहीं छठ महापर्व Dhanbad News
घर की नई दुल्हन सुशीला ने छठ मईया से मन्नत मांगी कि अगर उनकी सास ठीक हो जाती हैं तो जब तक सांस चलेगी छठ व्रत करेंगी। कुछ दिनों बाद ही सास गंगोत्री देवी एकदम स्वस्थ्य हो गईं।
धनबाद, जेएनएन। त्योहारों का देश भारत में कई ऐसे पर्व हैं, जिन्हें काफी कठिन माना जाता है। इन्हीं में से एक है लोक आस्था का महापर्व छठ, जिसे रामायण और महाभारत काल से ही मनाने की परंपरा रही है। आइए हम आपको एक ऐसे ही परिवार से मिलवाते हैं जो यह परंपरा 52 वर्षों से निभाते चला आ रहा है।
इसकी शुरुआत भी बिल्कुल अनूठी और किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है। ओल्ड कोल बोर्ड कालोनी पुलिस लाइन की सुशीला देवी इस समय 71 की होने को चली हैं। आज से 53 वर्ष पहले छह जून 1966 को इनकी शादी के एक-डेढ़ साल बाद ही सास गंगोत्री देवी के फेफड़ों में संक्रमण हो गया। बच पाने की गुंजाइश बहुत कम थी। ऐसे में घर में नई दुल्हन सुशीला ने छठ मईया से मन्नत मांगी कि अगर उनकी सास ठीक हो जाती हैं, तो जब तक सांस चलेगी छठ व्रत करेंगी।
28 रिश्तेदार बिहार और उत्तर प्रदेश से होते हैं यहां इकट्ठे
खुश होते हुए सुशीला ने बताया छठ के कुछ दिनों बाद ही मेरी सास गंगोत्री देवी एकदम स्वस्थ्य हो गईं। इसके बाद से वें 52 वर्षों से बिना रुके-थके छठ व्रत करती आ रही हैं। सबसे अहम बात यह कि इस महापर्व में पुण्य का भागीदार बनने के लिए इनका पूरा कुनबा यानी 28 रिश्तेदार बिहार और उत्तर प्रदेश से यहां इकट्ठे होते हैं। यह बताते समय हुए सुशीला के चेहरे पर एक अलग सी चमक थी।
व्रत धनबाद में व अघ्र्य 15 किमी दूर भूली में
सुशीला देवी पहले श्रमिक नगरी भूली में रहा करती थीं। उस समय यहीं के ईस्ट बसुरिया कोल डंप स्थित बाबा मुक्तिनाथ मंदिर के तालाब में सूर्य देवता को अघ्र्य समर्पित करती थीं। लगभग तीन दशक से इनका परिवार पुलिस लाइन के ओल्ड कोल बोर्ड कालोनी में रहने लगा, लेकिन अघ्र्य देने की परंपरा आज भी वही है। व्रत और पूरा विधान तो धनबाद से होता है लेकिन शाम और सुबह का अघ्र्य देने १५ किमी दूर भूली स्थित तालाब में ही जाती हैं। सुशीला देवी के साथ उनका पूरा परिवार भी इस पुण्य के भागीदार बनते हैं।
परिवार के ये सदस्य बन रहे पुण्य के भागीदार
- सिवान, बिहार से : राधेश्याम दूबे, रत्ना दूबे और बच्चे।
- पं.दीनदयाल उपाध्याय नगर, उत्तर प्रदेश से : जितेंद्रनाथ तिवारी, बिंदू तिवारी और बच्चे।
- देवरिया, उत्तर प्रदेश से : श्याम सुंदर मिश्रा, संगीता मिश्रा और बच्चे।
- धनबाद से : पारसनाथ दूबे, सुशीला देवी, घनश्याम दूबे, अपर्णा दूबे और बच्चे
उम्र के साथ श्रद्धा है कि बढ़ती ही जा रही
सुशीला देवी ने बताया कि उम्र के साथ श्रद्धा है कि बढ़ती ही जा रही है। हर साल कार्तिक और चैती छठ भी करती हूं और इस पर्व पर अटूट विश्वास है। आज से 30-40 वर्ष पहले आस्था तो वैसी ही थी जो आज है, मगर इतनी आबादी नहीं थी। पहले नदी व तालाब के किनारे व्रती पूजा करती थीं। मगर आज नदी व तालाबों की तुलना में व्रत करने वालों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है। जिसके कारण घर में ही तालाब बनाकर व्रत किया जा रहा है। लेकिन, मेरी आस्था शुरू से ही भूली के तालाब में रही है। इसलिए वहीं जाती हूं। कई बार तबीयत खराब रहती है फिर भी इस महापर्व पर कोई फर्क नहीं पड़ा। पति पारसनाथ दूबे के बिना यह सफर यहां तक नहीं पहुंच पाता।