रिसोर्स सेंटर का मिला साथ तो सेरेब्रल पाल्सी को दी मात
जीवन एक संघर्ष है, लेकिन दुख की घड़ी में अधिकतर इंसान टूट जाते हैं। वही इंसान जीवन में सफल होता है जो दुख में भी तमाम झंझावात को हंसते-हंसते झेल जाता है।
गोविंदनाथ शर्मा, झरिया: जीवन एक संघर्ष है, लेकिन दुख की घड़ी में अधिकतर इंसान टूट जाते हैं। वही इंसान जीवन में सफल होता है जो दुख में भी तमाम झंझावात को हंसते-हंसते झेल जाता है। हम बात कर रहे हैं झरिया राजबाड़ी रोड में रहनेवाली गरीब मजदूर राजू राम की 12 वर्षीय बेटी पम्मी कुमारी की। पम्मी सेरेब्रल पाल्सी बीमारी से पीड़ित है। झरिया रिसोर्स सेंटर का साथ मिलने पर पम्मी ने सेरेब्रल पाल्सी को भी मात दे दी।
कभी घर की खाट पर पड़ी रहनेवाली पम्मी जीवन से उब चुकी थी। छह वर्ष तक खाट पर पड़ी रही। बंद जुबान, मुंह से टपकते लार, मंदबुद्धि जैसी बेटी को देख मां सीमा देवी व पिता राजू ने कभी सपने मे भी नहीं सोचा था कि सेरेब्रल पाल्सी जैसी बीमारी को मात देकर पम्मी कभी स्कूल की दहलीज पर कदम रखेगी। यह सब संभव हो पाया समावेशी शिक्षा के झरिया रिसोर्स सेंटर के प्रयास से। वर्ष 2011 में रिसोर्स सेंटर की टीम सर्वेक्षण के दौरान पम्मी के घर पहुंची। टीम के फिजियोथेरपिस्ट डॉ. मनोज ¨सह, रिसोर्स शिक्षक अखलाक अहमद व रिसोर्स शिक्षिका रोशन कुमारी ने जब पम्मी के माता-पिता को बताया कि लगातार प्रशिक्षण से पम्मी स्कूल जाने लायक बन सकती है तो दोनों चौंक गए। उन्हें टीम के लोगों की बात पर विश्वास नहीं हुआ।
पम्मी के माता-पिता ने अगले ही दिन उसका नामांकन रिसोर्स सेंटर में करा दिया। हर दिन पम्मी की फिजियोथेरपी शुरू हो गई। पम्मी की मां ने भी जीवटता का परिचय दिया। मां रोज उसे गोद में उठाकर सेंटर लाती रही। डॉ. मनोज ने पम्मी को कई वर्षों तक फिजियोथेरेपी, स्पीच थेरेपी, बैलें¨सग, सी¨टग, स्टैं¨डग व गेट ट्रे¨नग दी। रिसोर्स शिक्षक अखलाक व शिक्षिका रोशन ने बिहेवियर मोडिफिकेशन, ब्र¨शग, टॉयलेट ट्रे¨नग, क्लो¨दग जैसे दैनिक क्रियाकलापों का प्रशिक्षण दिया। साथ में पम्मी का शैक्षणिक कार्य भी चलता रहा। प्रशिक्षण से लगातार पम्मी की स्थिति में सुधार होता गया। वह सहारा लेकर चलने लगी। छह वर्षो के संघर्ष, अनवरत प्रयास व अटूट विश्वास के कारण अब वह खुद चलकर स्कूल जाती है। आज वह डीएवी मध्य विद्यालय झरिया में वर्ग छह की छात्रा है।
विद्यालय में पम्मी की 90 प्रतिशत उपस्थिति दर्ज होती है। विद्यालय के प्रधानाध्यापक व शिक्षक भी पम्मी का विशेष खयाल रखते हैं।
सेरेब्रल पाल्सी से पीड़ित दो और बच्चियां पहुंचीं विद्यालय: प्रखंड कार्यालय झरिया के पास चल रहे रिसोर्स सेंटर के प्रयास से दो अलग-अलग क्षेत्र की सेरेब्रल पाल्सी की शिकार बालिकाएं भी लगातार प्रशिक्षण के बाद विद्यालय जाने लगीं हैं। फिजियोथेरेपिस्ट डॉ. मनोज ¨सह ने बताया कि भागा पांच नंबर की 13 वर्षीय ¨रकू कुमारी भी सेरेब्रल पाल्सी की शिकार होकर जीवन से उब चुकी थीं। कई वर्षो तक प्रशिक्षण के बाद अब वह एसइ रेलवे स्कूल भागा में कक्षा सात में पढ़ती है। इसी तरह नई दुनिया, झरिया की 10 वर्षीय तनु कुमारी भी रिसोर्स सेंटर के सहयोग से सेरेब्रल पाल्सी को मात देकर अभी प्राथमिक विद्यालय नई दुनिया में कक्षा दो में अध्ययनरत है।
क्या है सेरेब्रल पाल्सी: झरिया लाइफ लाइन अस्पताल के संचालक डॉ. ओपी अग्रवाल का कहना है कि सेरेब्रल पाल्सी बीमारी जन्मजात होती है। इससे मानसिक व शारीरिक निश्शक्तता आ जाती है। इसे मानसिक व शारीरिक लकवा मारना भी कहते हैं। यह पूरी तरह से ठीक तो नहीं हो पाता, लेकिन लगातार फिजियोथेरपी, बिहेवियर मोडिफिकेशन व अन्य प्रशिक्षण से पीड़ित को काफी हद तक ठीक किया जा सकता है। इसके लिए पीड़ित के माता-पिता का दृढ़ इच्छाशक्ति का होना बहुत जरूरी है।