कोयला निकालने के लिए देश में पहली बार होगा मोनो रेल टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल, छह गुना बढ़ेगा उत्पादन
इस इंक्लाइन से उत्पादन अप्रैल 2022 से ही शुरू हाे सकेगा। इस इंक्लाइन के शुरू हाेते ही बीसीसीएल उत्तम गुणवत्ता के कोयले की आपूर्ति पर्याप्त मात्रा में स्टील सेक्टर काे कर पाएगी। इससे स्टील कंपनियाें काे बाहर से काेयला आयात करने की जरूरत नहीं रहेगी।
जागरण संवाददाता, धनबादः भारत काेकिंग काेल लिमिटेड की महत्वाकांक्षी मुनीडीह 15 सीम जनवरी तक मुख्य खदान से जुड़ जाएगा। हालांकि इस इंक्लाइन से उत्पादन अप्रैल 2022 से ही शुरू हाे सकेगा। इस इंक्लाइन के शुरू हाेते ही बीसीसीएल उत्तम गुणवत्ता के कोयले की आपूर्ति पर्याप्त मात्रा में स्टील सेक्टर काे कर पाएगी। इससे स्टील कंपनियाें काे बाहर से काेयला आयात करने की जरूरत नहीं रहेगी।
इस परियाेजना से कंपनी काे ही नहीं पूरे काेल इंडिया काे काफी उम्मीदें हैं। दाे हजार मीटर तक बनने वाले इंक्लाइन में फिलहाल 1800 मीटर तक की खुदाई हाे चुकी है। इसमें 1400 मीटर तक माेनाे रेल ट्रैक भी बिछाई जा चुकी है। आगे का काम प्रगति पर है।
देश की पहली खदान, जहां मोनो रेल की सुविधाः मुनीडीह तकनीक के मामले में सबसे उन्नत कोयला खदान रहा है। इसके निर्माणाधीन 15 सीम इंक्लाइन में देश में पहली बार मोनो रेल टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जा रहा है। इससे न सिर्फ श्रमिकों बल्कि भारी साज-ओ-सामान लाने ले जाने में भी मदद मिलती है और समय की भी बचत होती है। अधिकारियों के मुताबिक, फिलहाल 2000 मीटर इंक्लाइन बनने से कोयला क्षेत्र में हम प्रवेश कर जाएंगे। इतनी दूर श्रमिक के पैदल आने-जाने में दाे घंटे का वक्त लगेगा। मोनो रेल से यह दूरी आधे घंटे में पूरी की जा सकती है। फिलहाल 1400 मीटर की दूरी तय करने में मोनो रेल को 25 मिनट का समय लग रहा है।
मोनो रेल के जरिए 36 टन तक सामग्री एक बार में खदान के अंदर ले जाई जा सकती है। भविष्य में मुनीडीह परियोजना के सभी सीम में मोनो रेल बिछाई जानी है। 15 सीम के इंक्लाइन एक में इसकी शुरुआत हो चुकी है। इंक्लाइन दो में भी ट्रैक बिछाया जा रहा है। पूरी तरह बनने के बाद इसकी कुल लंबाई 10 किलोमीटर होगी।
[मुनीडीह कोयला खदान में निर्माणाधीन वर्कशॉप की तस्वीर]
विश्व की अत्याधुनिक तकनीक से लैस होगी खदानः मोनो रेल यदि चेक रिपब्लिक से प्राप्त की गई है तो इंक्लाइन की खुदाई कर रही रोड हेडर मशीन चीन की तकनीक है। इसके पूरा हाेने के बाद इंक्लाइन के अंदर कोयला खनन के लिए लांगवाल मशीन इंस्टाल की जाएगी। यह जर्मन तकनीक पर आधारित होगीी। लांगवाल से कोयला खनन के बाद कन्वेयर बेल्ट के जरिए कोयला को बाहर लाया जाएगा। इंक्लाइन-1 व इंक्लाइन-2 दोनों में ही कन्वेयर बेल्ट लगाया जा रहा है। फिलहाल इससे खदान का मलबा निकाला जा रहा है। कोयला बाहर निकालने के लिए फिलहाल लिफ्ट तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है। इससे एक समय में काफी कम कोयला ही निकाला जा सकता है। समय भी अधिक लगता है।
छह गुना तक बढ़ जाएगा उत्पादनः 1230 कराेड़ रुपये की लागत से निर्माणाधीन इस परियोजना के पूरा हाेने के बाद मुनीडीह परियोजना की उत्पादन क्षमता छह गुना तक बढ़ने की कंपनी को उम्मीद है। महाप्रबंधक जेएस महापात्रा के अनुसार फिलहाल 1500 से 2000 टन प्रतिदिन कोयले का उत्पादन हो रहा है। 15 सीम के तैयार हो जाने के सात 7000 टन प्रतिदिन तक उत्पादन किया जा सकेगा। महापात्रा के मुताबिक सालाना उत्पादन फिलवक्त पांच लाख टन है जो इस सीम के शुरू होने के बाद 30 लाख टन होने की उम्मीद है। यह बीसीसीएल की सर्वाधिक महत्वाकांक्षी परियाेजना है।
उत्तम गुणवत्ता का काेयला है यहांः मुनीडीह भूमिगत खदान में बीसीसीएल का उत्तम गुणवत्ता का काेयला है। यहां वाशरी-2 ग्रेड का काेयला है। यह पूरी तरह इस्पात उद्याेग के लिए आरक्षित है। मुनीडीह का काेयला पूरी तरह सेल काे भेज दिया जाता है। हालांकि उत्पादन कम होने की वजह से सेल (स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड) को विदेश से कोयला आयातित करना पड़ता है। इसके पूरा हो जाने पर आयात की मजबूरी समाप्त हो जाएगी। खदान में 35 वर्ष तक के काेयला का स्टॉक है। मुनीडीह पहली भूमिगत खदान है जहां आउटसोर्सिंग के तहत कोयला उत्पादन किया जा रहा है। अमूमन भूमिगत खदान का संचालन कंपनी ही करती रही है। यहां इंदु कंपनी कोयला उत्पादन कर रही है। निर्माणाधीन 15 सीम भी इंदु ही बना रही है। इस सीम से नाै वर्षाें तक कोयला उत्पादन का कंपनी का करार है।