झारखंड के येदियुरप्पा बनेंगे बाबूलाल, BJP में पोजिशनिंग का प्लान तैयार; पढ़िए घर वापसी की अंदरुनी कहानी
झारखंड विधानसभा चुनाव-2019 में हार और सत्ता से बेदखल होने के बाद राज्य भाजपा के सामने नेतृत्व का संकट खड़ा हो गया है। सांसद और विधायक तो हैं लेकिन नेतृत्वकर्ता और संगठनकर्ता नहीं।
धनबाद [ मृत्युंजय पाठक ]। इसे समय का ही तकाजा कहा जाएगा कि जब भाजपा पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी की घर वापसी चाहती थी तो वे तैयार नहीं थे। उनकी शर्त ही कुछ ऐसी थी। अब बगैर किसी शर्त के भी पार्टी में शामिल होने को तैयार हैं और भाजपा बिन मांगे सब कुछ देना चाहती है जो वह पहले चाहते थे। दोनों के बीच जो सहमति बनी है उसके अनुसार झारखंड में बाबूलाल की घर वापसी कुछ उसी तर्ज पर होने जा रही है जैसे कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा की हुई। भाजपा में शामिल होने के बाद येदियुरप्पा को पुराना रुतबा मिला। उनके नेतृत्व में भाजपा ने पांच साल तक संघर्ष किया। चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनी तो येदियुरप्पा का कर्नाटक में राज्याभिषेक हुआ। मुख्यमंत्री बने। भाजपा में शामिल होने के बाद की बाबूलाल की झारखंड में पोजिशनिंग भी तय हो गई है। झारखंड भाजपा के सर्वेसर्वा होंगे। उनके नेतृत्व में ही हेमंत सोरेन सरकार के खिलाफ भाजपा पांच साल तक संघर्ष करेगी।
भाजपा और बाबूलाल दोनों एक-दूसरे की मजबूरी
झारखंड विधानसभा चुनाव-2019 में हार और झारखंड की सत्ता से बेदखल होने के बाद राज्य भाजपा के सामने नेतृत्व का संकट खड़ा हो गया है। भाजपा के पास सांसद और विधायक तो हैं लेकिन नेतृत्वकर्ता और संगठनकर्ता नहीं हैं। पांच साल से राज्य में सरकार चला रहे रघुवर दास खुद विधानसभा चुनाव हार चुके हैं। पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा केंद्र सरकार में मंत्री हैं लेकिन सबको साथ लेकर चलना उनके लिए भी मुश्किल है। उनके नेतृत्व में ही 2009 के विधानसभा चुनाव में झारखंड में भाजपा की ऐतिहासिक हार हुई। सिर्फ 18 सीटें ही मिली थीं। झारखंड विधानसभा चुनाव- 2019 में भाजपा की जो हार हुई है वह 2009 के मुकाबले करारी हार नहीं कही जा सकती है। 25 सीटें मिली हैं। भाजपा की करारी हार तो कोल्हान क्षेत्र में हुई है। इस क्षेत्र में विधानसभा की 14 सीटें हैं। इसी इलाके से अर्जुन मुंडा और रघुवर दास भी आते हैं। यहां भाजपा को एक भी सीट नहीं मिली। भाजपा के लिए सबसे बड़ा धक्का और शर्मनाक यह रहा कि मुख्यमंत्री रहते हुए रघुवर दास अपनी सीट नहीं बचा सके। पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के गढ़ सरायकेला-खरसावां में भी भाजपा खेत रही। यहीं से भाजपा नेतृत्व सोचने को विवश हुआ। और बाबूलाल के लिए घर वापसी का दरवाजा खुल गया।
कायम होगा साल 2003 से पहले का रुतबा
झारखंड विकास मोर्चा का भाजपा में विलय होगा और उसके अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी भाजपा में शामिल होंगे। अब कोई किंतु-परंतु नहीं है। किंतु-परंतु है तो सिर्फ दिन, समय और स्थान को लेकर। झाविमो प्रमुख मरांडी ने 8 फरवरी को दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय अपाध्यक्ष ओपप्रकाश माथूर से मुलाकात की। इसके अगले दिन 9 फरवरी को बाबूलाल ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिलकर विचार-विमर्श किया।इस दाैरान झाविमो का भाजपा में विलय के प्लान पर अंतिम रूप दिया गया। झाविमो का भाजपा में विलय के बाद बाबूलाल मरांडी का झारखंड में क्या भूमिका होगी? इस पर चर्चा की गई। बाबूलाल के सामने तीन विकल्प दिए गए हैं। पहला-केंद्र सरकार में मंत्री। दूसरा-झारखंड प्रदेश भाजपा अध्यक्ष। तीसरा-झारखंड विधानसभा में विरोधी दल का नेता। वैसे भाजपा को जोर बाबूलाल को विरोधी दल का नेता बनाने पर है। वैसे बाबूलाल को तय करना है कि उन्हें किस पद पर रहकर झारखंड में भाजपा का नेतृत्व करना है। वैसे झारखंड भाजपा नेतृत्व पूरी तरह बाबूलाल के हाथ में होगा, साल 2003 से पहले जैसा। जब अर्जुन मुंडा झारखंड के मुख्यमंत्री नहीं बने थे और बाबूलाल ही झारखंड में भाजपा के चेहरा थे। भले ही बाबूलाल का पुराने रुतबे में लाैटना किसी को अटपटा लग सकता है लेकिन भाजपा में यह नई बात नहीं है। सबसे ताजा उदाहरण तो बीएस येदियुरप्पा हैं। भाजपा छोड़ कर्नाटक जनता पार्टी बनाई। सफलता नहीं मिली तो भाजपा में घर वापसी हो गई। पुराना रुतबा मिला। उमा भारती ने भी भाजपा छोड़ अपनी पार्टी बनाई। मध्यप्रदेश में सफलता नहीं मिली तो भाजपा में वापसी हुई। इसके बाद भाजपा ने यूपी विधानसभा चुनाव में उमा भारती को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाकर चुनाव लड़ा। यह और बात है कि उमा भारती को यूपी में सफलता नहीं मिल सकी।
आरएसएस का संस्कार और कुशल संगठनकर्ता
बाबूलाल मरांडी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सांचे में ढले हुए नेता हैं। यह कहना गलत न होगा कि आरएसएस ने ही झारखंड में क्षेत्र में आदिवासियों के सबसे बड़े नेता झामुमो अध्यक्ष शिबू सोरेन के मुकाबले के लिए बाबूलाल मरांडी को तराश कर कुशल संगठनकर्ता बनाया। झारखंड राज्य बनने से पहले भाजपा ने वनांचल प्रदेश कमेटी बनाकर बाबूलाल को अध्यक्ष बनाया। दुमका लोकसभा क्षेत्र में शिबू सोरेन के सामने खड़ा किया। 1998 के लोकसभा चुनाव में जब दुमका के अखाड़े में शिबू सोरेन को पराजित किया तो अचानक बाबूलाल मरांडी का कद बड़ा हो गया। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में उन्हें केंद्र में मंत्री बनाया गया। 15 नवंबर, 2000 को झारखंड बना तो भाजपा ने बाबूलाल को मुख्यमंत्री बनाया। 2003 में जदयू विधायकों ने बगावत किया तो भाजपा को मजबूरन बाबूलाल मरांडी को मुख्यमंत्री पद से हटाना पड़ा। सरकार बचाने के लिए अर्जुन मुंडा को मुख्यमंत्री बनाना पड़ा। 2005 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की सरकार बनी तो अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री बने। यहीं से बाबूलाल के मन में एक टीस हुई। उन्हें लगा कि अर्जुन मुंडा के रहते अब मुख्यमंत्री नहीं बन सकते हैं तो 2006 में भाजपा से रिश्ता तोड़ लिया।
आदिवासी और गैर आदिवासी में एक समान पकड़
बाबूलाल मरांडी की खासियत यह है कि आदिवासी और गैर आदिवासी में समान रूप से पकड़ है। वे पहली बार आदिवासियों के लिए आरक्षित दुमका लोकसभा सीट से 1998 में निर्वाचित हुए। इसके बाद 1999 में भी दुमका में जीत दर्ज की। इसके बाद वे लगातार गैर आदिवासी सीटों से ही सांसद और विधायक बने। साल 2000 में झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बनने के बाद बाबूलाल मरांडी ने सामान्य विधानसभा क्षेत्र रामगढ़ से उप चुनाव लड़कर झारखंड विधानसभा में पहुंचे। 2004 में सामान्य लोकसभा सीट कोडरमा से जीत दर्ज कर लोकसभा में वापसी की। 2006 उप चुनाव और 2009 आम चुनाव में भी बाबूलाल मरांडी ने कोडरमा लोकसभा सीट से जीत दर्ज की। झारखंड विधानसभा चुनाव- 2019 में बाबूलाल ने धनवार विधानसभा सीट से जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं। यह भी सामान्य सीट है।
लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा चाहती थी बाबूलाल का साथ
लोकसभा चुनाव-2019 के समय भी भाजपा की तरफ से बाबूलाल मरांडी से संपर्क साधा गया था। भाजपा के तरफ से बाबूलाल मरांडी के सामने गठबंधन से लेकर विलय तक का प्रस्ताव था। लेकिन, बाबूलाल की शर्त थी कि उन्हें भाजपा विधानसभा चुनाव- 2019 के बाद मुख्यमंत्री बनाने का वादा करें। इसके लिए भाजपा तैयार नहीं थी। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने शानदार प्रदर्शन करते हुए झारखंड की 14 में 12 लोकसभा सीटों पर 2014 की तरह जीत दर्ज की। इससे झारखंड भाजपा का मनोबल सातवें आसमां पर आ गया और बाबूलाल का चैप्टर क्लोज हो गया। विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री रहते हुए रघुवर दास हार गए। बाबूलाल मरांडी की पार्टी झाविमो (प्रो) भी तीन सीटों पर सिमट गई। इसके बाद भाजपा और बाबूलाल दोनों एक-दूसरे की मजबूरी बन गए। और अब किसी भी दिन बाबूलाल अपनी पार्टी के साथ भाजपा में शामिल हो सकते हैं।