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अहंकार की अग्नि में जल रही रिश्‍तों की मजबूत डोर

धनबाद के विशेष विवाह निबंधन कार्यालय में जितनी शादियां नहीं हो रही हैं, उससे कहीं ज्यादा तलाक की अर्जियां फैमिली कोर्ट तक पहुंच रही हैं।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 26 Dec 2017 03:38 PM (IST)Updated: Tue, 26 Dec 2017 03:39 PM (IST)
अहंकार की अग्नि में जल रही रिश्‍तों की मजबूत डोर
अहंकार की अग्नि में जल रही रिश्‍तों की मजबूत डोर

धनबाद, [रिजवान शम्स] । विवाह, यानी जन्म जन्मांतर का रिश्ता। भरोसे की नींव और एक दूसरे पर दृढ़ विश्वास की ईंटों से बनी दांपत्य जीवन की इमारत कभी नहीं दरकती। लेकिन, जहां शक-शुबह का घुन और अहंकार आ गया वहां इस रिश्ते की बुनियाद हिल जाती है। अहंकार की अग्नि में रिश्‍तों की मजबूत डोर भी जल जा रही है जबकि शादी तो वह बंधन है जिसमें अग्नि को साक्षी मानकर सात जन्मों के लिए एक-दूसरे का साथ निभाने के वचन के साथ फेरे होते हैं।

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हर सुख-दुख में साथ निभाने की कसमें खाई जाती हैं। सात फेरों से बंधे बंधन पर अहंकार भारी पड़ रहा है। धनबाद के विशेष विवाह निबंधन कार्यालय में जितनी शादियां नहीं हो रही हैं, उससे कहीं ज्यादा तलाक की अर्जियां फैमिली कोर्ट तक पहुंच रही हैं। इस साल धनबाद के विवाह निबंधन कार्यालय में अब तक कुल 231 विवाह संपन्न हुए हैं तो पति-पत्नी के रिश्तों में मामूली बातों के कारण सैकड़ों मामले भी अलगाव के लिए कोर्ट में हैं। रोज औसतन चार मामले महिला थाने पहुंच रहे हैं। कोर्ट पहुंचनेवाले कुछ मामलों को मध्यस्थता केंद्र में सुलझाया तो गया पर अधिसंख्य मामलों में बात बनी ही नहीं। दोनों पक्षों का अहं टकरा गया। यही कारण रहा कि तलाक की 302 अर्जियां कोर्ट के पास पहुंच गई हैं। 

पारिवारिक न्यायालय में दर्ज हुए इस वर्ष 1304 मामले 

पारिवारिक विवाद के कुल 1688 मामले फैमिली कोर्ट में लंबित हैं। सिर्फ 2017 में फैमिली कोर्ट में पति-पत्नी के बीच विवाद के कुल 1304 मामले दायर हुए। आपसी सहमति से 140 जोड़ों ने तलाक की अर्जी दी। 162 मामलों में किसी एक पक्ष ने तलाक की मांग की। मुस्लिम लॉ के तहत भी 36 मुकदमे दाखिल किए गए हैं। 562 महिलाओं ने पति से अलग रहते हुए भरण पोषण की मांग की है। हालांकि 380 ने दांपत्य जीवन में फिर रंग भरने को अदालत का सहारा लिया। पति-पत्नी के बीच विवाद के प्रमुख कारण आपसी मनमुटाव, दोनों पक्षों में से किसी का भी न दबना, आर्थिक तंगी और शक हैं। 

 केस स्‍टडी 1 शक से टूटा परिवार 

आरफी (परिवर्तित नाम) की शादी को लंबा अरसा गुजर चुका था। बच्चे भी बड़े हो गए। लेकिन, पति को शक हो गया कि उसकी पत्नी का किसी अन्य के साथ अफेयर है। बस इस बात पर दोनों में विवाद हुआ। बात यहां तक पहुंची कि अंत तलाक पर जाकर खत्म हुआ। पति ने तीन तलाक देकर पत्नी को मायके भेज दिया। अब पत्नी कोर्ट में मुकदमा लड़ रही है। जिस आंचल में खुशियों की सौगात बरसनी थी वहां अब दुख ही दुख है। 

केस स्टडी - दो

नौकरी करनेवाली पत्‍नी का सह‍कर्मियों से बात करना बना पारिवारिक टूट का कारण 

कविता (परिवर्तित नाम) की शादी दो साल पूर्व राजेश (परिवर्तित नाम)  के साथ हुई थी। राजेश को आपत्ति थी कि उसकी पत्नी मोबाइल और सोशल मीडिया में व्यस्त रहती है। उसके मित्र उसे फोन करते हैं। कविता शादी से पूर्व प्राइवेट कंपनी में काम करती थी। शादी के बाद भी उसके सहकर्मियों के साथ उसकी बातचीत कायम रही। पति को यही बात नागवार गुजरी। दोनों में विवाद हुआ और बात तलाक तक जा पहुंची।   

ऐसे बन सकती है बात, टूटने से बच सकता है परिवार 

जीवन को खुशियों से सराबोर करना है तो संयम, धैर्य और एक दूसरे पर भरोसा कायम रखना होगा। आपसी विश्‍वास ही पति-पत्‍नी के रिश्ते को अटूट बनाता है। इस विश्‍वास को कभी टूटने नहीं देना चाहिए। यदि किसी कारण वश एक पक्ष विवाद खड़ा भी करता है तो दूसरे पक्ष को चाहिए कि वह धैर्य रखकर बात समझने की कोशिश करे। ऐसे में बात बन जाती है और विवाद समाप्‍त हो जाता है। 

मध्यस्थता केंद्र, धनबाद की काउंसलर मीना कुमारी कहती हैं कि पति-पत्नी के रिश्तों पर अब सोच बदल रही है। महिलाएं भी अब मुखर हो रहीं हैं। ईगो फैक्टर पति-पत्नी के बीच दूरी बढ़ा रहा है। अधिकांश मामलों में छोटी-छोटी बातों से विवाद शुरू होता है और बात तलाक तक पहुंच जाती है। भरोसा और संयम खत्म हो रहा है। 

दोनों पक्ष धैर्य और संयम से काम लें तो बात बन जाती है। ऐसे में परिवार टूटने से बच जाता है। 

महिला थाना, धनबाद की काउंसलर सह लीगल एडवाइजर लोपामुद्रा कहती हैं कि दांपत्य जीवन की तबाही में ईगो फैक्टर सबसे बड़ा कारण है। मध्यम वर्गीय परिवारों में आर्थिक कारणों से भी विवाद हो रहे हैं। खास कर बच्चों के स्कूल जाने के बाद विवाद शुरू होते हैं। ऐसे में विवाद नहीं बल्कि समाधान तलाशने की जरूरत है। पर, ऐसा नहीं हो पा रहा है। पति-पत्‍नी दोनों को यह सोचना होगा कि इससे परिवार तो टूटेगा ही बच्‍चों का भविष्‍य भी बर्बाद हो जाएगा। दोनों पक्ष यदि समझदारी से काम लें तो समस्‍या कभी नहीं होगी। 


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