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इंदिरा गांधी की पैरवी पर खदान में नौकरी के लिए आए थे अमिताभ, इन्होंने सिखाया काम

महानायक अमिताभ बच्चन ने फिल्मी करियर शुरू करने से पहले कभी रोजगार के लिए कोयला खदान में भी अपना भाग्य आजमाया था।

By Sachin MishraEdited By: Published: Sun, 24 Jun 2018 10:20 AM (IST)Updated: Mon, 25 Jun 2018 02:28 PM (IST)
इंदिरा गांधी की पैरवी पर खदान में नौकरी के लिए आए थे अमिताभ, इन्होंने सिखाया काम
इंदिरा गांधी की पैरवी पर खदान में नौकरी के लिए आए थे अमिताभ, इन्होंने सिखाया काम

धनबाद, विनय झा। शायद यह बात काफी कम लोगों को पता होगी कि भारतीय सिनेमा के महानायक अमिताभ बच्चन ने फिल्मी करियर शुरू करने से पहले कभी रोजगार के लिए कोयला खदान में भी अपना भाग्य आजमाया था। 'गूगल गुरु' से पूछें तो वह आपको बस इतना बताएगा कि उन्होंने कोलकाता में दो शिपिंग फमरें शॉ वालेस व मेसर्स बर्ड एंड कंपनी में काम किया था। मगर यह तो बाद की बात है। उनके शुरुआती करियर के संबंध में अभी तक का अनछुआ तथ्य यह है कि बेरोजगार अमिताभ ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की पैरवी पर नामी निजी कोल कंपनी मेसर्स बर्ड एंड कंपनी के अधीन झारखंड (तत्कालीन बिहार) के रामगढ़ जिला स्थित सिरका कोलियरी में सात-आठ महीने काम किया था। सीएस झा नामक जिस कोलियरी मैनेजर ने उन्हें काम सिखाया था और रहने-खाने की व्यवस्था की थी, वह अभी रांची में रहते हैं। उम्र के 95 बसंत देख चुके वयोवृद्ध सीएस झा ने दैनिक जागरण से बातचीत में अमिताभ बच्चन के उस दौर के जीवन के बारे में कई दिलचस्प बातों की पहली बार जानकारी दी है।

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झा से बातचीत से पहले हम आपको ले चलते हैं खदान में अमिताभ के इस शुरुआती करियर के संबंध में अध्ययन करने वाले धनबाद के बुजुर्ग साहित्यकार-पत्रकार बनखंडी मिश्र (75) के पास। वह इसकी पृष्ठभूमि के बारे में बताते हैं कि अमिताभ के पिता ख्यातिप्राप्त कवि हरिवंश राय बच्चन के जीवन का अधिकांश भाग इलाहाबाद में बीता था। वह प्रयाग विश्वविद्यालय में अंग्रेजी विभाग में प्राध्यापक थे। अमिताभ दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज से ग्रेजुएट होकर इलाहाबाद अपने जन्मस्थान लौटे थे। पढ़ने में उनकी दिलचस्पी कम थी। इसलिए पिता ने आगे पढ़ाने के बजाय युवा बेटे को कहीं काम दिलाने की सोची। इसके लिए उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से आग्रह किया था और इंदिरा गांधी की पैरवी पर युवा अमिताभ मेसर्स बर्ड एंड कंपनी के कोलकाता स्थित मुख्यालय पहुंच गए। कोलकाता में अमिताभ की भेंट कंपनी के प्रभारी फ‌र्स्ट क्लास मैनेजर एलएस घाटे से हुई। इतनी ऊंची पैरवी लेकर पहुंचे एक साधारण लंबी कद-काठी वाले युवक को देख घाटे भौंचक रह गए। उन्होंने अपनी ही कंपनी की रामगढ़ स्थित सिरका कोलियरी के मैनेजर सीएस झा के नाम पत्र लिख कर अमिताभ को वहां भेज दिया। झा धनबाद स्थित इंडियन स्कूल ऑफ माइंस (अभी आइआइटी का दर्जा) से बीटेक थे। अमिताभ बच्चन उनके पास करीब सात-आठ महीने रहे थे। बच्चन जब रुपहले पर्दे पर नाम कमाने लगे तो झा ने ये सारी बातें आज से बहुत पहले बनखंडी मिश्र को बताई थीं।

कोयला खदान में नहीं लगा अमिताभ का दिल
सिरका कोलियरी में अमिताभ के गुरु व स्थानीय अभिभावक रहे मैनेजर सीएस झा को उन दिनों की याद अब भी ताजा है। वह बताते हैं कि जब यह बात उन्हें मालूम हुई कि उनके यहां पहुंचा युवक इंदिरा गांधी की पैरवी वाला है तो गंभीरता से लेना स्वाभाविक था। ऊपर वाले अफसरों को लगा था कि मैं ही उन्हें सलीके से काम-धंधा सिखाने में योग्य था। उम्मीद के अनुरूप मैंने उस युवक का काफी खयाल रखा था। अपने बंगले से सटे गेस्ट रूम में रहने की व्यवस्था की। कैंपस के अंदर ही अलग गेस्ट हाउस भी था, जिसमें अंग्रेज अफसर रहा करते थे। मगर उन्हें वहां नहीं रखा। खाने की व्यवस्था भी मेरे घर में ही थी। मुख्यालय के निर्देश पर अमिताभ को कोयला कारोबार की बारीकियों के बारे में बताया जाने लगा। लेकिन, उन्हें अपने अधीनस्थों से रिपोर्ट मिल रही थी कि अमिताभ का मन अपने काम में संतोषजनक ढंग से नहीं लग रहा है।

बाद में उन्होंने आला अधिकारियों को कुछ सहमते हुए ही यह बता दिया कि अमिताभ बेमन से काम कर रहे हैं। उनमें प्रतिभा तो दिखती है मगर कोलियरी कायरें के लिए नहीं, किसी और काम के लिए। बाद में सिरका कोलियरी से अमिताभ कोलकाता मुख्यालय लौट गए। उस दौरान बर्ड कंपनी में एक्सपोर्ट-इंपोर्ट, जूट, पेपर मिल, लोडिंग-अनलोडिंग व कोयला कारोबार समेत करीब डेढ़ दर्जन विभाग हुआ करते थे। उन्हें नील घोष नामक एक विभागीय प्रभारी के अंदर ड्यूटी दी गई। उन्होंने भी कुछ दिनों बाद कंपनी के मालिकों को बता दिया कि अमिताभ इन कायरें के लिए फिट नहीं हैं। बाद में पता चला कि 1968 में अमिताभ बच्चन हावड़ा स्टेशन से सीधे मुंबई विदा हो गए जहां एक संघर्षपूर्ण फिल्मी करियर उनका इंतजार कर रहा था। शायद वह इसके लिए ही बने थे और इसी ने उन्हें बॉलीवुड का बेताज बादशाह बना दिया।

खदान का यही अनुभव फिल्म काला पत्थर में काम आया
धनबाद की चासनाला कोयला खदान में 27 दिसंबर, 1975 को अब तक की सबसे बड़ी दुर्घटना हुई थी, जिसमें पलक झपकते 372 कामगार मौत के मुंह में समा गए थे। इस रियल घटना पर ही फिल्म काला पत्थर बनी थी। सिरका कोलियरी के पूर्व अनुभव की बदौलत इसमें अमिताभ बच्चन ने प्रभावशाली भूमिका निभाई थी।


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