रंगदारी में समझाैते का राज... यहां जितना मुंह काला करिए उतना बड़ा आदमी कहलाइये Dhanbad News
सत्ता क्या गई माननीयों के हाथ के तोते उड़ गए। कल तक जो हुक्म बजाते थे आज वही आंखें दिखाने लगे हैं। महीना दिन भी नहीं गुजरे और काले हीरे की नगरी का अर्थतंत्र बदलने लगा है।
धनबाद [ रोहित कर्ण ]। यहां जितना मुंह काला करिए उतना बड़ा आदमी कहलाइये। जी, कोयलांचल में यही हकीकत है। सफेदपोश माननीय भी कोयले की कमाई का लोभ नहीं छोड़ पाते। माफिया कहलाना गर्व की बात है। एक माननीय बाघ बहादुर हैं जिनकी धमक रांची तक रही है। दूसरे माननीय शहरी बाबू हैं। वह भी उसी कतार में अब हैं। ताजा मामला खैरा कोलियरी का है। दोनों के समर्थक आमने-सामने हुए। वजह कोलियरी में लोडिंग पर वर्चस्व की लड़ाई। बहाना वही पुराना स्थानीय को रोजगार। परेशानी यह कि दोनों नवनिर्वाचितों के साथ अब सत्ता की ताकत रही नहीं। सो अपने अडिय़ल रवैये के लिए ख्यात दोनों ने मौके की नजाकत को देख हाथ मिलाना ही उचित समझा। मामला 50-50 पर तय हुआ। खबर है कि दोनों ही गुटों की बराबर-बराबर गाडिय़ां लोड हो रही हैं। और रेट एक ही है- 630 रुपये प्रति टन।
उड़ गए हाथ से तोते
सत्ता क्या गई माननीयों के हाथ के तोते उड़ गए। कल तक जो हुक्म बजाते थे, आज वही आंखें दिखाने लगे हैं। महीना दिन भी नहीं गुजरे और काले हीरे की नगरी का अर्थतंत्र बदलने लगा है। न कंपनियां बात सुन रही हैं न ही प्रशासन भाव दे रहा। मानो सब मिलकर बाघ को घेरने चले हैं। तभी तो पहले जहां थाना से निकलने से पहले पुलिस बाघ बहादुर का आदेश लेती थी, अब आवाज उठी नहीं कि निषेधाज्ञा लगा दे रही। एक-एक कर इलाका हाथ से निकलता जा रहा है। पहले बेनीडीह में निषेधाज्ञा लगी। फिर खैरा कोलियरी में। और, अब गोंदूडीह में भी धारा 144 लगा दी गई। हालांकि कोयले का यह कारोबार यहां कभी खत्म नहीं होता। इधर संक्रांति काल में प्रशासन को भी अपनी उपलब्धि दिखानी ही है। लिहाजा पतंग को ऊंचा उड़ाने के लिए धागे को कुछ ढीला करना ही बेहतर समझ रहे।
हैवी ब्लास्टिंग से हिला ताज
झरिया और अग्नि प्रभावित भू-धंसान क्षेत्र एक-दूसरे का पर्याय रहे हैं। विगत चुनाव ने यहां एक महत्वपूर्ण मुद्दे की ओर लोगों का ध्यान खींचा है। वह है हैवी ब्लास्टिंग का। लोग-बाग तो इससे लंबे समय से परेशान थे, लेकिन सत्ताधारी इसे मानने को तैयार नहीं थे। सब कुछ मान ही लेंगे तो अपने पास बचेगा क्या। सो ब्लास्टिंग की आवाज सुनकर भी अनसुनी करते रहे। इधर शहर के चारों तरफ आउटसोर्सिंग कंपनियां बेरोक-टोक नियमों को ताक पर रख धमाके करती रहीं। किसी के घर में दरार आई तो उनकी बला से। बात आरएसपी कॉलेज के ठीक पीछे की हो या पुराना स्टेशन की। भौंरा या नार्थ तिसरा की। कहीं आवासीय इलाके तो कहीं ठीक बगल से सड़कें गुजर रहीं लेकिन इन्हें देखता कौन है। कोईरीबांध, कतरास मोड़, नई दुनिया, बालूगद्दा, घनुआडीह के इलाके के लोग बेजार थे। अब हार के बाद पूर्व माननीय के कर्ताधर्ताओं को लगा है कि समस्या वाकई गंभीर है, कुछ तो करना ही होगा।
सिंह इज किंग
तीन महीने का बकाया ही तो मांगा था सिंफर के ठेका कर्मियों ने लेकिन साहब को बर्दाश्त नहीं हुआ। उनके खिलाफ झंडा उठाने की हिमाकत कैसे की इन्होंने। सो तत्काल कार्रवाई हुई और वर्षों से कार्यरत 17 मजदूरों को तत्काल काम से बिठा दिया गया। चुनाव पूर्व हुई इस घटना को सलटाने के लिए मजदूर संगठन महीनों से पसीना बहा रहे थे। साहब का दिल नहीं पसीजा। इधर इस आशा में कि साहब बात मान लेंगे, हटाए गए श्रमिक भी जुबान पर ताला लगाए रहे। अब जबकि फलाफल कुछ नहीं निकला तो उनका धैर्य जवाब देने लगा है। श्रमिक प्रतिनिधियों का कहना है कि साहब राजशाही चला रहे हैं। सिंह इज किंग की तरह अपने मन की कर रहे हैं। जो काम कर रहे उनके भी बच्चों की पढ़ाई, आवास, मेडिकल सुविधाएं छीन रहे हैं। सो सीधे तौर पर आंदोलन का नोटिस थमा दिया है। भामसं के बैनर तले 24 को घेराव होने वाला है।