हूल दिवस कल: दो साल बाद संताल विद्रोह की जमीन भोगनाडीह आएंगे हेमंत सोरेन, इंतजार में बैठे सिदो-कान्हू के वंशज
दो साल बाद हूल दिवस पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भोगनाडीह आएंगे। भोगनाडीह सिदो-कान्हू चांद-भैरव और फूलो-झानो की जन्मस्थली है। 30 जून 1855 को यहां अंग्रेजी हुकूमत एवं महाजनी प्रथा के खिलाफ संताल विद्रोह हुआ था। कोरोना के कारण दो सालों में भोगनाडीह में बड़ा आयोजन नहीं हुआ।
ब्रजनंदन कुमार, बरहेट (साहिबगंज): दो साल बाद हूल दिवस पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भोगनाडीह आएंगे। भोगनाडीह सिदो-कान्हू, चांद-भैरव और फूलो-झानो की जन्मस्थली है। 30 जून 1855 को इसी भोगनाडीह के सपूतों ने अंग्रेजी हुकूमत एवं महाजनी प्रथा के खिलाफ संताल विद्रोह किया था।
कोरोना के कारण बीते दो सालों में हूल दिवस पर भोगनाडीह में बड़ा आयोजन नहीं किया गया। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी नहीं आए। अब कोरोना की लहर धीमी हो चुकी है। इसलिए इस बार हूल दिवस पर बड़े आयोजन की तैयारी भी हो रही है। मुख्यमंत्री कई योजनाओं का उदघाटन करेंगे तो कई प्रोजेक्ट का शिलान्यास भी होगा। सिदो-कान्हू के वंशजों को भी संदेश मिल चुका है कि मुख्यमंत्री का आगमन होगा। वंशजों को हेमंत सोरेन से उम्मीद भी बहुत है। इसका बड़ा कारण उनका शिबू सोरेन का पुत्र होना है। संथाली भी।
वंशजों को लगता है कि भोगनाडीह में जो नहीं हो सका है, वो अब जरूर होगा। छह साल पहले मंडल मुर्मू ने सिविल इंजीनयिरंग की पढ़ाई पूरी की है। सरकारी नौकरी करना चाहते हैं। झारखंड सरकार को कई बार आवेदन दे चुके हैं। अभीतक कुछ नहीं हुआ है। सिदो-कान्हू के वंशजों के पास 60 बीघा जमीन है। परिवार में बंटवारा हो चुका है। अधिकतर के हिस्से में तीन से चार बीघा जमीन आई है। खेती करते है। बारिश पर निर्भर है। वंशज चाहते हैं कि सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था हो जाए तो जमीन उपयोगी हो जाएगी।
सिदो-कान्हू के वंशज मंडल मुर्मू इंजीनियरिंग करने के बाद बेरोजगार हैं। और भी कई युवा हैं, जिन्हें नौकरी नहीं मिली है। हां, सरकारी योजनाओं के तहत साहिबगंज जिला प्रशासन उन लोगों को कई तरह की सुविधाएं जरूर उपलब्ध करा रहा है। यह सुविधाएं सामान्य जीवन जीने में मददगार जरूर है, मगर भविष्य को लेकर बहुत उम्मीद नहीं जगातीं। मंडल मुर्मू कहते हैं, झारखंड बनने के बाद छह लोगों को नौकरी मिली है। भोगनाडीह के बाकी युवाओं को रोजगार से जोड़ा जाए तो भविष्य सुखद होगा। सबको ऐसा लगता है कि हेमंत सरकार में यह हो सकता है। आखिर वे बरहेट से हम लोगों के विधायक भी हैं। उन्होंने कहा, उनके पूर्वज सिदो-कान्हू ने जमीन की लड़ाई लड़ी थी। महाजनी प्रथा के खिलाफ संघर्ष किए थे। जमीन तभी उपयोगी हो सकती है जब खेती के लिए समय पर पर्याप्त पानी मिले। भोगनाडीह को आदर्श गांव बनाना है तो सभी ग्रामीणों के खेतों तक पानी जाना चाहिए। ग्रामीणों को खेती की नई-नई विधि बतानी चाहिए। कृषि उपकरण के सदुपयोग का प्रशिक्षण होना चाहिए। बागवानी एवं पशुपालन की नई विधि का लोगों को ज्ञान होना चाहिए। कुटीर उद्योग के लिए प्रेरित करना होगा। ग्राम्य जीवन में इसी से सुधार आएगा।
संताल विद्रोह के नायकों के तीन वंशज को आवास नहीं
सिदो-कान्हू की छठवी पीढ़ी भोगनाडीह में रह रही है। कुल 17 परिवार है। मंडल मुर्मू बताते हैं, अभी तक 14 परिवारों को सरकार की तरफ से आवास दिए गए हैं। तीन परिवार ऐसे हैं जिन्हें अभी भी सरकारी आवास नहीं मिले हैं। साहेब राम मुर्मू, सिदो मुर्मू और पानी हांसदा को आवास मिल जाएगा तो उन लोगों को सहूलियत होगी। मंडल उम्मीद जताते हैं कि शायद इस बार उनके लिए भी आवास का काम शुरू हो जाय।
ग्रामीणों का कथन, सिंचाई और शिक्षा का इंतजाम जरूरी
सिदो-कान्हू के वंशजों के अलावा भोगनाडीह में और लोग भी हैं। ग्रामीण रामू मरांडी कहते हैं, पूरा गांव सिर्फ कृषि पर निर्भर है। सिंचाई के पर्याप्त साधन हो तो सभी लोग अपने खेतों में पटवन कर सकेंगे। ग्रामीण मनोज यादव के मुताबिक सिदो-कान्हू के नाम पर बड़े-बड़े शिक्षण संस्थान जरूर बन गए हैं। यहां के लोगों को लाभ नहीं होता। आंधी आती है तो दो-तीन दिन बिजली गायब हो जाती है। आदर्श गांव बनने का सफर अभी बहुत लंबा है।