आजादी से पहले साउथ इंडियन डिश लेकर झरिया पहुंचे थे वासुदेवन, आज भी वही स्वाद बरकार है
सचिन बालन ने कहा कि दादा वासुदेवन 1930 में केरल से झरिया कोयलांचल व्यवसाय के लिए आये थे। उन दिनों यहां निजी कंपनी कोयला निकालती थी। दादा वर्ड एंड कंपनी में काफी समय तक कार्य किये।
झरिया, गोविन्द नाथ शर्मा। लगभग ढाई सौ वर्ष पुराने ऐतिहासिक शहर झरिया में सात दशक पूर्व मेन रोड में स्थापित मद्रास कैफ दुकान आज भी साउथ इंडियन डिश के लिए जिले में प्रसिद्ध है। इसकी स्थापना केरल के जिला पालघाट से आये वासुदेवन अच्चन ने 69 साल पूर्व 1950 में किया था। यह दुकान साउथ इंडियन डिश मसाला डोसा, इडली, सांभर बड़ा और दही बड़ा के लिए मशहूर है। झरिया ही नहीं जिले के विभिन्न क्षेत्रों के लोग साउथ इंडियन डिश का मजा लेने आते हैं।
वर्षों तक वासुदेवन ने इस दुकान का संचालन किया। इसके बाद इनके पुत्र एमके बालन अभी इसका संचालन कर रहे हैं। एमके बालन के दो पुत्र सचिन बालन व संजीव बालन अपनी दुकान में पूरा समय देते हैं। सचिन ने बताया कि दादा ने एक ही नसीहत दी थी। ग्राहकों की संतुष्टि ही दुकान को मशहूर बनाती है। किसी भी ग्राहक से बिना भेदभाव के उनका पूरा सम्मान जरूरी है। हमारे लिए सभी ग्राहक एक समान हैं। दादा जी की यही नसीहत पिता एमके बालन व हम दोनों भाई पालन कर रहे हैं।
जिद में दादा ने खोली मद्रास कैफः सचिन बालन ने कहा कि दादा वासुदेवन 1930 में केरल से झरिया कोयलांचल व्यवसाय के लिए आये थे। उन दिनों यहां निजी कंपनी कोयला निकालती थी। दादा वर्ड एंड कंपनी में काफी समय तक कार्य किये। इसी दौरान सात दशक पूर्व दादा झरिया आये थे। उस समय मात्र एक वर्ष पूर्व शिव मंदिर रोड में खुले मद्रास कैफे हाउस गये। नास्ता के दौरान किसी बात को लेकर दुकानदार से दादा की नोकझोंक हो गई। दादा ने दुकानदार से कहा कि एक वर्ष के अंदर मेन रोड में दूसरा मद्रास कैफ खोलकर दिखायेंगे। इसके बाद 1950 में मेन रोड में मद्रास कैफ खोल दिया। यह आज भी चल रहा है।
अंग्रेज भी आते थे साउथ इंडियन डिश खाने : मद्रास कैफ के एमके बालन ने बताया कि झरिया में निजी कोलियरी होने के कारण देश के हर राज्य के लोग झरिया में रहते थे। 1950 के दशक में यहां काफी संख्या में अंग्रेज भी रहते थे। सिंदरी में साउथ इंडियन काफी संख्या में थे। अंग्रेज भी बड़े चाव से साउथ इंडियन डिश खाने आते थे। वहीं साउथ इंडियन लोग तो दुकान में अपने प्रिय डिश का स्वाद लेने जरुर-जरुर आते थे। एमके के पुत्र सचिन का कहना है कि अब पहले जैसी बात नहीं रही। पहले दुकान में बहुत भीड़ रहती थी। अब उसमें कमी आई है।