लिलोरी धाम में मां को चढ़ रहा केले व केतारी की बलि
दो वर्ष पहले शुभ लग्न के समय यहां दूल्हा-दुल्हन का मेला लगा रहता था। एक दिन में 100 से 200 जोड़ों का विवाह संपन्न कराया जाता था। मुंडन यज्ञोपवीत संस्कार अलग से। चारों तरफ ढोल और बैंड बाजे के धुन गूंजते रहते थे। वर-वधु के स्वजनों की चहल-पहल से पूरा मंदिर परिसर गुलजार रहता था। पांव रखने की जगह नहीं मिलती थी।
जागरण संवाददाता, धनबाद : दो वर्ष पहले शुभ लग्न के समय यहां दूल्हा-दुल्हन का मेला लगा रहता था। एक दिन में 100 से 200 जोड़ों का विवाह संपन्न कराया जाता था। मुंडन, यज्ञोपवीत संस्कार अलग से। चारों तरफ ढोल और बैंड बाजे के धुन गूंजते रहते थे। वर-वधु के स्वजनों की चहल-पहल से पूरा मंदिर परिसर गुलजार रहता था। पांव रखने की जगह नहीं मिलती थी। लेकिन पिछले दो वर्ष से पूरे मंदिर परिसर में मुर्दनी सी छाई हुई है। लिलोरी मंदिर के पुजारी सिंटू आचार्य का यह वक्तव्य बताने को काफी है कि मंदिर पर आश्रित लोग किस दौर से गुजर रहे हैं। इसका आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते।
सिटू बताते हैं कि पिछले लॉकडाउन में भी और इस लॉकडाउन में भी मंदिर बंद कर दिया गया। श्रद्धालु नहीं आ रहे हैं। यहां तक कि प्रतिदिन मां को चढ़ाए जाने वाले बलि की प्रथा पर भी संकट उत्पन्न हो गया है। विधि निर्वाह के लिए हम लोग केला और केतारी का बलि दे रहे हैं। मंदिर के बाहर इस लग्न में किसी दिन एक तो किसी दिन दो जोड़े का विवाह हो जाता है। यह नाकाफी है। इसी मौसम में विवाह दान से होने वाली कमाई से पंडा लोग का सालों भर का खर्च चलता था। दो साल से इस पर पाबंदी की वजह से पुजारियों को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है। आर्थिक संकट के कारण चिता मग्न रहते रहते परसों एक पंडा परेश बनर्जी का निधन हो गया। इस वजह से मंदिर में मां के सेवा कार्य में लगे सौ के लगभग ब्राह्मण फिलहाल शोक में हैं और पूजा पाठ नहीं कर रहे हैं। क्योंकि वे पंडों के भगना है इसलिए पूजा कार्य फिलहाल उन्हीं के जिम्मे में है। सिटू आचार्य जी के मुताबिक न सिर्फ ब्राह्मणों का परिवार बल्कि यहां के दुकानदार और मंदिर से जुड़े नाई व अन्य पेशेवर लोग भी काफी आर्थिक संकट पर गुजर रहे हैं। सरकार को हम लोगों के बारे में भी विचार करना चाहिए।