Dhanbad Leader Viewpoint: फाइलों से बाहर निकले फ्लाईओवर; Outsourcing में रोजगार हो, रंगदारोंं से मुक्त...पढ़िए यूनियन नेता की दो टूक
राष्ट्रीय कोलियरी मजदूर संघ के महामंत्री 24 अक्टूबर 1956 ई. को स्थापित देश की कोयला राजधानी धनबाद ने यूं तो अबतक सफलता के कई सोपान चढ़े हैं। आइआइटी बीसीसीएल डीवीसी डीजीएमएस सिंफर जैसी संस्थाएं धनबाद को राष्ट्रीय ही नहीं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाती हैं।
धनबाद, जेएनएन : राष्ट्रीय कोलियरी मजदूर संघ के महामंत्री एके झा ने कहा कि 24 अक्टूबर, 1956 ई. को स्थापित देश की कोयला राजधानी धनबाद ने यूं तो अबतक सफलता के कई सोपान चढ़े हैं। आइआइटी, बीसीसीएल, डीवीसी, डीजीएमएस, सिंफर जैसी संस्थाएं धनबाद को राष्ट्रीय ही नहीं, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाती हैं। राजस्व के मामले में धनबाद रेल मंडल देश में दूसरे स्थान पर है। बिग बाजार एवं कई ब्रांडों के आउटलेट के यहां खुलने से जिले के रूतबे में काफी वृद्धि हुई है।
इसके बावजूद भी कई क्षेत्रों में एक कदम आगे बढ़े दो कदम पीछे वाली हालत दिखायी पड़ रही है। धनबाद में औद्योगिक विकास की स्थिति भी अच्छी नहीं है। सिंंदरी खाद कारखाना 2002 में बन्द होने के बाद भारत की बेहतरीन ढंग से बसाई गयी कॉलोनियों में से एक सिंंदरी का लगातार क्षरण हो रहा है। हालांकि, अब हर्ल के खुलने से आशा की किरण जगी है। सरकार द्वारा किये गये विकास कार्यों का ठोस रूप धनबाद में नहीं दिखता है। केवल झांई मिलती है।
निरसा में लगने वाले महत्वाकांक्षी उद्योग ओम बोस्को की हालत आज किसी से छुपी हुई नहीं है। भारत कोकिंंग कोल लिमिटेड में उत्पादन का बड़ा हिस्सा आउटसोर्सिंग कंपनियों पर निर्भर है। ठेकेदारों के आसरे काम करने वाले, कोयला मजदूर एवं बीसीसीएल के कोयला श्रमिकों के वेतन एवं सुविधाओं में काफी विसंगतियां हैं। ऐसे में, यहां रोजगार के अवसर तैयार करने की जरूरत है। उद्योग स्थापित करने में जमीन की समस्या आती है।राजनीतिक और प्रशासनिक दृड़ता के साथ यह समस्या सुलझानी होगी। उद्योग स्थापित करने के लिए सिंंगल विंडो सिस्टम की व्यवस्था विकसित करनी होगी।
पीपीपी (पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप व्यवस्था) को प्रोत्साहन देना होगा। साथ ही, यह सुनिश्चित करना होगा कि स्थानीय को अधिकाधिक रोजगार मिले। राज्य सरकार का निजी क्षेत्र में 75फीसद स्थानीय को आरक्षण देने की योजना लाभकारी साबित होगी। आउटसोर्सिंग में केवल दबंगों और रंगदारों के लोगों को ही रोजगार न मिले। इसे सामूहिक रूप से रोकना होगा।
शैक्षणिक क्षेत्र में देखें, तो एक लंबे संघर्ष के प्रतिफल के रूप में प्रमंडल न होने के बाद भी धनबाद में विश्वविद्यालय की स्थापना की गयी। लेकिन बीबीएमकेयू में शिक्षकों का घोर अभाव है। जब शिक्षक ही नहीं होंगे, तो शिक्षा व्यवस्था चरमराएगी ही। इस ओर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। झरिया का आरएसपी कॉलेज भूमिगत आग की वजह से बेलगढिय़ा में स्थानांतरित करना पड़ा। पूर्वी भारत के सर्वाधिक पुराने शिक्षण संस्थान यानी राज प्लस टू स्कूल को भी अपनी जगह से हटना पड़ा। पांच लाख लोगों की प्यास बुझाने वाले माडा के जलागार पर भी विस्थापन का संकट मंडरा रहा है। इनकी समस्या को भी सुलझाना परम आवश्यक है।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में धनबाद को एम्स मिलते-मिलते रह गया। एम्स के यहां बनने से स्वास्थ्य के क्षेत्र में धनबाद के लिए एक बड़ी उपलब्धि होती साथ ही रोजगार का एक प्रशस्त मार्ग भी खुलता। हालांकि, कुछ निजी अस्पताल जिले में बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। लेकिन, सरकारी अस्पतालों में कोई सुधार नहीं हुआ है। सुविधा व संसाधनों की कमी के कारण मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा सीट घटा देने के बाद भी पीएमसीएच की स्थिति में सकारात्मक परिवर्तन नहीं आया है। सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं को पटरी पर लाने के लिए जबावदेही तय करनी होगी।
यातायात व्यवस्था में, जाम लगना आम समस्या हो गयी है। इसका कारण आबादी के साथ-साथ सड़कों पर गाडिय़ों का बढऩा है। फ्लाईओवर की बातें फाइलों तक ही सिमटी है। हालांकि धनबाद की लगभग हर गली-मुहल्ले तक में पीसीसी सड़क का बन जाना प्रगति का सूचक है। लेकिन, जाम की समस्या अब इतनी आम हो गयी है कि सार्थक उपाय के बिना धनबाद की तरक्की के रास्ते में बड़ी बाधा के रूप में यह परेशानी मुंह बाये खड़ी रहेगी। ऐसे में, धनबाद में दो फ्लाईओवर का निर्माण तत्काल होना जरूरी है। मूलभूत सुविधाओं में बिजली व्यवस्था की लचर हालत भी कोल सिटी की प्रगति का बाधक तत्व है। पूरे क्षेत्र को जल्द से जल्द नेशनल ग्रिड से जोड़कर इस समस्या को सुलझाना होगा।
कोयलांचल की अर्थतंत्र को संभालने में बड़ी भूमिका निभाने वाली कंपनी बीसीसीएल की हालत भी खस्ता हो गयी है। इसके रिवाइवल प्लान को सही तरीके के और शीघ्रातिशीघ्र कार्यान्वित करने की जरूरत है।पर्यावरण के क्षेत्र में अधिकाधिक काम करना होगा। पौधरोपण और उसके संवर्धन का काम केवल प्रमुख मौकों पर न करके प्रतिदिन करना होगा।
जल संचयन के लिए जागरूकता व प्रोत्साहन योजना पर काम करना होगा अन्यथा नई पीढी के लिए हम जलसंकट की बड़ी समस्या सौंप जाएंगे पिट वाटर प्रोजेक्ट, रेन वाटर हार्वेस्टिंग प्लान पर सकारात्मक रूप से काम करना होगा।