मंहगाई डायन खाए जात है! आसमान छूते दलहन व तिलहन की कीमत से बिगड़ा घर का बजट Dhanbad News
कभी सब्जी तो कभी दलहन एक एक कर अपने तेवर दिखाते जा रहे है। इनके तेवर से हर वर्ग के लोगों का पसीना छूट रहा है। इनके तेवर पर काबू पाना आसान नही है। दाल रोटी खा कर अपना गुजारा कर लेने वाला कहावत भी अब सपना बन गया है।
सुमित राज अरोड़ा, झरिया : कभी सब्जी तो कभी दलहन एक एक कर अपने तेवर दिखाते जा रहे है। मंहगाई डायन खाए जात है गाना आज के परिपेक्ष में सटीक बैठता है। इनके तेवर से हर वर्ग के लोगों का पसीना छूट रहा है। इनके तेवर पर काबू पाना आसान नही है। कुछ नही तो दाल रोटी खा कर अपना गुजारा कर लेने वाला कहावत भी अब सपना बन गया है।
जी हां जिस प्रकार इन दिनों दलहन का भाव आसमान छू रहा है। उससे यह कहावत भी अब हंसी का पात्र बन कर रह गया है। लोग अब दलहन देखने से भी डर रहे है। लोगों के रसोई से दलहन गायब होता जा रहा है। विगत वर्ष से इस वर्ष लगभग 15 प्रतिशत दलहन के भाव बढ़े है।
दलहन व तिलहन के भाव में काफी उछाल आई है। जो तिलहन 120 का था अाज उसका भाव 135 रुपये हो गया है। तेल में भी लगभग 15 प्रतिशत की तेजी आई है। जिसका असर हर वर्ग के लोगों को उठाना पढ़ रहा है। दुकानदारों की माने तो दलहन व तिलहन का फसल कमजोर होने की वजह से इनके भाव में तेजी आई है। इंपोर्ट ड्यूटी का असर भी तिलहन पर पढ़ा है। वही व्यापारी की माने तो जल्द ही इसके भाव गिर सकते है।
दलहन व तिलहन के थोक मंडी के भाव
मूंग दाल 95, मसूर दाल 65, चना दाल 62, रहर दाल 94, उरद दाल 84, काबली चना 65, काला चना 52, गोलकी 420, चीरा 160, सरसो तेल 130, रिफाइन तेल 120 रुपये प्रति किलो की दर से बिक रहा है।
दलहन व तेलहन के खुदरा मंडी के भाव
मूंग दाल 110, मसूर दाल 70, चना दाल 70, रहर दाल 100, उड़द दाल 100, काला चना 60, काबली चना 75, गोलकी 500, चीरा 180, सरसो तेल 140, रिफाइन 125 रुुपये प्रति किलो की दर से बिक रहा है।
क्या कहती हैंं महिलाएंं
सरकार को इनके भाव के बारे में भी सोचना चाहिए जिस प्रकार दलहन के भाव बढ़ रहे है। उससे परिवार चलाने में काफी परेशानी उठानी पढ़ रही है।
- सीमा साहु, झरिया
महीने का सारा पैसा इन दिनों दलहन व तिलहन पर ही खर्च हो जाता है। रसोई से तेल दाल धीरे धीरे गायब होते जा रहे है। सरकार भी कुछ नही कर ही है।
- किरण साव, झरिया।
पहले तो सब्जी अब दलहन व तिलहन के भाव आसमान छू रहे है। दलहन की कीमत बढ़ती जा रही है। लोगों के घरों का बजट ही बिगड़ गया है।
- मंजू शर्मा, झरिया।
पहले किसी तरह अपने परिवार का भरण पोषण हो जाता था। बढ़ती मंंहगाई ने सभी का हालात खराब कर दिया है। जो पैसा मिलता उससे घर का राशन भी पूरा नही आता है।
- राधा गुप्ता, झरिया।