MakeSmallStrong: छोटे से किराना दुकान को जज्बे से बना दिया रॉयल बाजार, ग्राहकों को गांव में शहर-सा एहसास
रॉयल बाजार के निदेशक शुभाशीष पाल बताते हैं कि 2010-11 में नवाडीह आए। उस समय पाया कि धनबाद शहर और नवाडीह में बहुत दूरी है। छोटे से छोटा सामान खरीदने के लिए भी हीरापुर पुराना बाजार और बैंक मोड़ जाना पड़ता था। एक राशन दुकान खोलने का विचार आया।
धनबाद, जेएनएन। MakeSmallStrong जिस इलाके से रात आठ बजे के बाद गुजरना लोगों को भारी पड़ता था, आज वहां देर रात तक खरीदारी होती है। इसका श्रेय जाता है नवाडीह इलाके में रॉयल बाजार मॉल खोलने वाले शुभाशीष पाल को। नवाडीह से लेकर भूली और कतरास से लेकर गोमो तक में ग्रामीण इलाके के इस मॉल की खूब चर्चा होती है। रॉयल बाजार ग्रामीण इलाकों में बेहद लोकप्रिय है। 2010-11 में इसकी शुरुआत एक छोटी सी किराना दुकान से की गई थी, लेकिन धीरे-धीरे अब यहां एक ही छत के नीचे राशन से लेकर बर्तन और बच्चों के खिलौने से लेकर कपड़े तक उपलब्ध हैं। ग्रामीण परिवेश का मॉल होने के नाते यहां सामान भी किफायती दाम में मिलते हैं।
12 किमी के दायरे में नहीं था मॉल
रॉयल बाजार के निदेशक शुभाशीष पाल बताते हैं कि 2010-11 में नवाडीह आए। उस समय पाया कि धनबाद शहर और नवाडीह में बहुत दूरी है। छोटे से छोटा सामान खरीदने के लिए भी हीरापुर, पुराना बाजार और बैंक मोड़ जाना पड़ता था। लोगों की सुविधा के लिए एक राशन दुकान खोलने का विचार आया। सोचा कि घर के नजदीक होने पर छोटी-छोटी जरूरतों के लिए लोगों को बाहर नहीं जाना पड़ेगा। फिर देखा कि 12 किमी के दायरे में न तो कोई मॉल है और न ही बड़ा बाजार। सोचा यहां एक मॉल खोलने से लोगों की जरूरतें पूरी होंगी। आने-जाने में ईंधन कम खर्च होगा और किफायती मूल्य में राशन और कपड़ा मिल जाएगा। फिर रॉयल बाजार की शुरुआत की। हम लोग थोक में खरीदते हैं। इसके चलते ग्राहक को रियायत दर पर सामान उपलब्ध कराते हैं। ।
रॉयल फीलिंग के लिए रखा यह नाम
सुभाशीष बताते हैं कि यहां के लोगों को रॉयल फीङ्क्षलग दिलाने के लिए यह नाम रखा। हमारी पंचलाइन भी है-शॉङ्क्षपग करें शान से। यहां के लोगों से अक्सर सुनते थे कि एसी में शॉङ्क्षपग करेंग। इसके बाद हम लोग कांसेप्ट लेकर आए कि गांव के लोगों को एसी में ही शॉङ्क्षपग कराएंगे।
तीन वर्ष तक घर से लगी पूंजी
शुरुआत में बहुत अधिक पूंजी नहीं थी। काफी दिक्कत हुई। बैंक ने लोन नहीं दिया। पांच गुना खर्च हो गया। दो से तीन वर्ष तक घर से पूंजी लगानी पड़ी। आज सब ठीक है। लोग किफायती दर पर अच्छा सामान लेकर जा रहे हैं।
गांवों में राशन की होम डिलीवरी
सुभाशीष ने बताया कि गांवों में एक फोन पर राशन की होम डिलीवरी कर रहे हैं। जब गांव में रॉयल बाजार की गाडिय़ां जाने लगीं तो लोगों को भी लगा कि अब गांव भी शहर से कम नहीं है।