Move to Jagran APP

CIMFR: झांसी-बीना रेलमार्ग पर बेतवा नदी के नीचे हो रहा विस्फोट, रेलयात्रियों को कंपन भी नहीं होता महसूस, यह तकनीक है वजह

बेतवा नदी में जहां पर पुल बनना है उसके समीप ही पानी में कई मगरमच्छ की भी मौजूदगी है। अमूमन विस्फोट के कारण हुए धमाके व कंपन से आसपास की इमारतें हिलती हैं।

By MritunjayEdited By: Published: Tue, 18 Feb 2020 09:47 AM (IST)Updated: Tue, 18 Feb 2020 09:47 AM (IST)
CIMFR: झांसी-बीना रेलमार्ग पर बेतवा नदी के नीचे हो रहा विस्फोट, रेलयात्रियों को कंपन भी नहीं होता महसूस, यह तकनीक है वजह
CIMFR: झांसी-बीना रेलमार्ग पर बेतवा नदी के नीचे हो रहा विस्फोट, रेलयात्रियों को कंपन भी नहीं होता महसूस, यह तकनीक है वजह

धनबाद [ तापस बनर्जी ]। नीचे बेतवा नदी में धमाके होते हैं और ऊपर से गुजर रहे पुल से हर तीन मिनट पर यात्रियों से भरी रेलगाड़ी गुजरती है। विस्फोट से कंपन बेहद कम हो रहे हैं, चट्टान भी चकनाचूर होती है। चौंकिए नहीं। धनबाद स्थित सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ माइनिंग एंड फ्यूल रिसर्च (सिंफर) के  वैज्ञानिक यह कारनामा देश के अतिव्यस्ततम झांसी-बीना रेलमार्ग पर बेतवा नदी में अंजाम दे रहे हैं।

loksabha election banner

इस व्यस्त मार्ग पर तीसरी रेल लाइन बिछनी है। इसके लिए नदी पर 450 मीटर लंबा ओवरब्रिज बनेगा। पुल की बुनियाद तैयार करने के लिए चट्टानों को तोड़कर सिंफर को जमीन उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी दी गई है।दरअसल सिंफर वैज्ञानिकों को नियंत्रित विस्फोट की अत्याधुनिक तकनीक में विशेषज्ञता हासिल है। इस तकनीक से चट्टानों को तोडऩे से नदी के ऊपर बने अन्य दो रेल पुल व उस पर मौजूद ओवरहेड तार को कोई खतरा नहीं होगा। 

नदी के पारिस्थितिकी तंत्र पर भी नहीं होगा असर 

बेतवा नदी में जहां पर पुल बनना है, उसके समीप ही पानी में कई मगरमच्छ की भी मौजूदगी है। अमूमन विस्फोट के कारण हुए धमाके व कंपन से आसपास की इमारतें हिलती हैं। पत्थर के टुकड़े उड़ते हैं। पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होता है। इस नियंत्रित विस्फोट प्रणाली से धमाके और कंपन की तीव्रता कम होती है। पत्थर भी नहीं उड़ते। इस कारण न तो पुल व उस पर गुजर रही रेलगाड़ी पर कोई असर होगा न ही जलीय पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होगा। मगरमच्छ का बसेरा सुरक्षित रहता है। वैज्ञानिक जहां जगह समतल करनी है वहां नदी का पानी रोककर इस तकनीक का प्रयोग कर रहे हैं। विस्फोटक के रूप में इमल्शन का प्रयोग हो रहा है। आवाज और कंपन की तीव्रता कम करने को कन्वेयर बेल्ट, टायर और लोहे की चादर का इस्तेमाल हो रहा है। सिंफर के शैल उत्खनन अभियांत्रिकी विभाग के वैज्ञानिकों की टीम इस काम में लगी है। टीम के डॉ. एमपी राय ने बताया कि इस तकनीक से किए गए विस्फोट से मलबा छिटक कर नहीं उड़ता, चट्टान भी भरभराकर टूट जाती है। 

31 मार्च तक पूरा हो जाएगा प्रोजेक्ट 

उत्तर मध्य रेलवे के प्रोजेक्ट को वर्ष 2015-16 की पिंक बुक में मंजूरी मिली थी। अब प्रोजेक्ट पर काम शुरू हुआ है। चट्टानों को हटाकर बुनियाद के लिए जमीन 31 मार्च तक वैज्ञानिकों को उपलब्ध करानी है। झांसी-बीना रेलमार्ग बेहद व्यस्त है। यहां तीसरी रेल लाइन बनाना बेहद जरूरी है। उस पर काम चल रहा है।  

प्रोजेक्ट में शामिल हैं ये वैज्ञानिक

डॉ. एमपी राय, डॉ. सी सौम्लियाना, डॉ. आरके पासवान और एनके भगत। 

सिंफर के वैज्ञानिक इस प्रोजेक्ट पर काफी मिहनत कर रहे हैं। परियोजना चुनौतीपूर्ण है। उसे समय पर पूरा किया जाएगा।

  -डॉ. पीके सिंह, निदेशक, सिंफर 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.