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Jharkhand Assembly Election 2019 : धनबाद में बढ़ रहे बुधन राम की तरह चुनावबाज, जीत-हार इनके लिए मायने नहीं

79 चुनाव लड़ चुके बुधन कोई चुनाव नहीं जीते। आखिरी वर्षो में डिप्टी मेयर चुनाव के लिए भी उन्होंने नामांकन कराया लेकिन प्रक्रिया पूरी नहीं होने की वजह से नामांकन रद हो गया।

By Edited By: Published: Tue, 03 Dec 2019 04:34 AM (IST)Updated: Tue, 03 Dec 2019 10:11 AM (IST)
Jharkhand Assembly Election 2019 : धनबाद में बढ़ रहे बुधन राम की तरह चुनावबाज, जीत-हार इनके लिए मायने नहीं
Jharkhand Assembly Election 2019 : धनबाद में बढ़ रहे बुधन राम की तरह चुनावबाज, जीत-हार इनके लिए मायने नहीं

धनबाद, जेएनएन। विधानसभा चुनाव के कई रंग देखने को मिल रहे हैं। कुछ लोग जहां चुनाव जीतने के लिए हर जुगत भिड़ा रहे वहीं कुछ का शौक ही चुनाव लड़ना है। जीत-हार इनके लिए मायने नहीं रखती। इनका जुनून सिर्फ चुनाव लड़ना है। पहले इस जुनून के लिए बुधन राम पूरे देश में मशहूर थे। उन्होंने धनबाद ही नहीं बल्कि देश के कई हिस्सों में कई मशहूर हस्तियों के खिलाफ चुनाव लड़ा। यहां तक कि सर्वाधिक चुनाव लड़ने के लिए लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी बुधन का नाम दर्ज किया गया।

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79 चुनाव लड़ चुके बुधन कोई चुनाव नहीं जीते। आखिरी वर्षो में डिप्टी मेयर चुनाव के लिए भी उन्होंने नामांकन कराया लेकिन प्रक्रिया पूरी नहीं होने की वजह से नामांकन रद हो गया। आज धनबाद में लगभग आधा दर्जन प्रत्याशी ऐसे हैं जो बुधन की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। लोकसभा, विधानसभा, नगर निगम, पंचायत कोई भी चुनाव हो आप उन्हें प्रत्याशी के रूप में देख सकते हैं। लगातार हार से इनके जोश और जुनून में कोई कमी नहीं आती। लोकतांत्रिक व्यवस्था के प्रति इनका अगाढ़ प्रेम इन्हें हर चुनाव में जोश से भरता रहता है और ये पूरी शिद्दत से उसमें भाग लेते नजर आते हैं। आइये जानते हैं ऐसे प्रत्याशियों के बारे में।

हीरालाल संखवार : 70 वर्ष के हो चले हीरालाल संखवार धनबाद में चुनाव महापर्व के स्थायी चेहरा हैं। चुनाव कोई भी हो संखवार नामांकन जरूर करते हैं। वे उच्च शिक्षित हैं। विज्ञान से स्नातकोत्तर किया है। इस बार वे फाब्ला से सिंदरी विधानसभा से किस्मत आजमा रहे हैं। वे झारखंड पार्टी, झारखंड पीपुल्स पार्टी व अन्य दलों से भी चुनाव लड़ते रहे हैं।

डॉ. कृष्णचंद्र सिंहराज : धनबाद विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी हैं। गांधी टोपी पहने केसी सिंह सिंहराज कहीं भी आपको अपने जुगाड़ गाड़ी पर सवार हो हाथ जोड़ते मिल जाएंगे। वे लोकसभा चुनाव में भी उम्मीदवार थे। उन्होंने नगर निगम का चुनाव भी लड़ा है। हालांकि जीत किसी में नहीं मिली। पिछले दो दशक से वे हर चुनाव में बतौर प्रत्याशी खड़े होते हैं। चुनाव चिह्न भले बदलता हो पर प्रचार वाहन जुगाड़ गाड़ी ही होता है। प्रेमप्रकाश पासवान : प्रेमप्रकाश पासवान ने पीपीपी (परोपकार परम पुण्य) समिति के नाम पर सामाजिक कार्य शुरू किया। चुनाव लड़ने की इच्छा हुई तो लोकसभा, विधानसभा, नगर निगम सभी में हाथ आजमाया। सफलता कहीं नहीं मिली। बावजूद इसके हिम्मत नहीं हारी और हर बार जमानत जब्त कराने के बावजूद इस बार भी नामांकन दाखिल किया। हालांकि उनका नामांकन रद हो गया। इसके बाद उन्होंने भाजपा की सदस्यता ले ली।

मेराज खान : समाजवादी पार्टी के नेता मेराज खान भी नियमित रूप से लोकतंत्र के चुनावी महापर्व में हिस्सेदारी निभाते रहे हैं। पिछले कई बार से वे भी लोकसभा, विधानसभा, नगर निगम के चुनावों में नियमित रूप से नामांकन पर्चा दाखिल करते रहे हैं। हार के बावजूद हर बार उन्हें टिकट भी मिलता है। पिछले लोकसभा चुनाव में वे प्रत्याशी थे। विधानसभा चुनावों में वे झरिया सीट के लिए नामांकन करते रहे थे लेकिन इस बार पार्टी ने उन्हें धनबाद से टिकट दिया है।

शैलेंद्रनाथ द्विवेदी : सिंदरी के रहनेवाले शैलेंद्रनाथ द्विवेदी चुनाव प्रक्रिया के नियमित चेहरे हैं। द्विवेदी भी लोकसभा, विधानसभा, नगर निगम चुनावों में लगातार नामांकन पर्चा दाखिल करते रहे हैं।

उमेश पासवान : उमेश पासवान लोकसभा चुनाव 2019 में निर्दलीय प्रत्याशी बने। सड़क किनारे चौकी पर नारियल की दुकान चलाने वाले उमेश ने चुनाव चिह्न भी नारियल ही चुना। तकरीबन छह हजार वोट मिले। अनुसूचित जाति के उमेश पर चुनाव लड़ने का ऐसा जुनून है कि कागजी प्रक्रिया पूरी नहीं होने की वजह से जमानत राशि में मिलनेवाली सब्सिडी नहीं मिली तो 25000 रुपये की पूरी राशि जमाकर चुनाव लड़े और जमानत गंवाई। इस चुनाव में वे फिर मैदान में हैं और पुराना चुनाव चिह्न ही मांगा है। कहते हैं विधानसभा छोटा सीट होता है। यहां सफलता जरूर मिलेगी।

कौन थे बुधन रामः धनबाद के बुधन राम का उद्देश्य ही चुनाव में प्रत्याशी बनना था। 1984 में वे पहली बार धनबाद लोकसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी बने। इसके बाद चुनाव लड़ने का ऐसा जुनून छाया कि सरपंच, मुखिया, विधायक, सांसद के लिए कुल 79 बार नामांकन पत्र दाखिल किया और चुनाव लड़े। वे राष्ट्रीय स्तर पर तब चर्चित हुए जब 1989 के चुनाव में अमेठी से राजीव गांधी के खिलाफ नामांकन पर्चा दाखिल कर दिया। बुधन ने एक बार राष्ट्रपति पद के लिए भी नामांकन पर्चा दाखिल किया लेकिन कई कागजात जमा नहीं कर पाने की वजह से नामांकन रद हो गया। 2009 में वे लकवाग्रस्त हो गए और 2010 में उनका निधन हो गया।


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