मार्क्सवादी चिंतक AK Roy का निधन, कोयले में रहकर भी बेदाग रहे Dhanbad News
Marxist thinker AK Roy के निधन पर मुख्यमंत्री रघुवर दास ने शोक संदेश में कहा है-राय का निधन झारखंड के लिए बड़ा नुकसान है। साथ ही राजकीय सम्मान के साथ अंत्येष्टि का निर्देश दिया है।
धनबाद [ मृत्युंजय पाठक ]। अपनी सादगी और ईमानदारी के लिए देश भर में पहचान बनाने वाले Marxist thinker AK Roy नहीं रहे। उन्होंने उम्रजनित बीमारियों के कारण 85 की उम्र में रविवार सुबह बीसीसीएल के केंद्रीय अस्पताल में अंतिम सांस ली। तबियत खराब होने के बाद इलाज के लिए 8 जुलाई को केंद्रीय अस्पताल में भर्ती कराया गया था। तब से उनका इलाज चल रहा था। उनके निधन के बाद न सिर्फ धनबाद बल्कि झारखंड में शोक की लहर दाैड़ गई है। मुख्यमंत्री रघुवर दास ने शोक संदेश में कहा है-एके राय के निधन से झारखंड को बड़ा नुकसान हुआ है। उन्होंने राजकीय सम्मान के साथ अंत्येष्टि कराने का निर्देश दिया है।
AK ROY का राजनीतिक सफरनामाः Marxist Co-ordination Committee (एमसीसी) के संस्थापक Arun Kumar Roy को AK ROY या राय दादा के नाम से ही जाना जाता है। राजनीति में आने से पहले राय पीडीआइएल सिंदरी में बताैर केमिकल इंजीनियर काम करते थे। हड़ताल ( 1966-67) का समर्थन करने के कारण प्रबंधन ने उन्हें बर्खास्त कर दिया। इसके बाद कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (एम) में शामिल होकर राजनीति के मैदान में खुलकर आ गए। 1966-71 तक सीपीआइएम में रहे। इसके बाद अलग होकर Marxist Co-ordination Committee ( मार्क्सवादी समन्वय समिति) नामक पार्टी बना राजनीति शुरू की। 1967 csx पहली बार माकपा के टिकट पर सिंदरी विधानसभा से बिहार विधानसभा के लिए विधायक चुने गए। तीन बार सिंदरी विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। देश में आपातकाल लागू होने के बाद राय को भी जेल में डाल दिया गया। वे हजारीबाग जेल से ही पहली बार 1977 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में धनबाद लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े और जीते। चुनाव में राय को जनता पार्टी का समर्थन प्राप्त था। उन्होंने 1980 और 1989 में भी चुनाव जीत धनबाद लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया।
झारखंड अलग राज्य आंदोलन के अगुवाः AK ROY झारखंड अलग राज्य आंदोलन के भी अगुवा रहे हैं। बिहार को विभाजित कर अलग झारखंड राज्य बनाने के आंदोलन के लिए ही झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) का 1972 में धनबाद में गठन हुआ। JMM के गठन में मुख्य भूमिका निभाने वालों में शिबू सोरेन और विनोद बिहारी महतो के साथ ही एके राय की भूमिका थी। हालांकि बाद में कुछ वैचारिक मतभेद के कारण झामुमो अध्यक्ष शिबू सोरेन के साथ एके राय का राजनीतिक सफर थम गया। इसके बाद भी झारखंड अलग राज्य आंदोलन को राय समर्थन देते रहे।
पेंशन न उठाने वाले देश के इकलाैते पूर्व सांसदः अविवाहित राय दा शायद देश के इकलाैते पूर्व सांसद रहे जिन्होंने पेंशन नहीं उठाई। तीन बार के सांसद एके राय की पेंशन राष्ट्रपति कोष में जाती रही। हुआं यूं कि 1989-91 के दाैरान लोकसभा में सांसदों के वेतन और पेंशन बढ़ाने का बिल आया। इसका राय ने विरोध किया। हालांकि संसद के अंदर राय को समर्थन नहीं मिल पाया। एके राय ने तर्क दिया कि लोग सांसद को सेवा के लिए चुनते हैं, वे सेवक नहीं है जो उन्हें वेतन या पेंशन दिया जाय।1991 में लोकसभा का चुनाव राय हार गए। इसके बाद पेंशन लेने की बारी आई तो लिखकर दे दिया कि वे पेंशन नहीं लेंगे। उनकी पेंशन राष्ट्रपति कोष में दे दी जाय। उनके निधन तक उनकी पेंशन राष्ट्रपति कोष में जाती रही।
सादगी और ईमानदारी का जोड़ नहींः राय की सादगी और ईमानदारी का जोड़ ढूंढने से भी नहीं मिलेंगे। वे धनबाद के पुराना बाजार स्थित एमसीसी कार्यालय में ही रहा करते थे। कार्यालय भी खपरैल। वह खुद खाना बनाते थे और खाते थे। कार्यालय की साफ-सफाई भी खुद करते थे। जब तक शरीर चला (1971-2012) यह क्रम चलता रहा। तीन दफा विधायक और तीन दफा सांसद होने के बावजूद राय दादा के पास जमीन-जायदाद और बैंक बैलेंस नहीं था। जब शरीर ने साथ देना छोड़ना शुरू किया तो उन्हें झरिया के नजदीक नुनूडीह निवासी पार्टी कार्यकर्ता सुबल गोराई का आसरा मिला। सुबल अपने घर में रख राय की देखभाल करते थे। पिछले पांच साल में कई बार तबियत खराब होने के बाद राय को बीसीसीएल के सेंट्रल अस्पताल में भर्ती कराया गया। हर बार स्वस्थ होकर राय दा सुबल गोराई के घर लाैटते रहे। अबकी बार राय की सांस टूट गई।
बांग्लादेश जन्मभूमि, धनबाद कर्मभूमिः देश का बंटवारा से पहले ब्रिटिश राज में 15 जून 1935 को एके राय का जन्म बंगाल के राजशाही जिले के सापुरा गांव में हुआ था। उनके पिता शिवेश चंद्र राय अधिवक्ता थे। देश बंटवारा के बाद राय का परिवार बांग्लादेश से कोलकाता आ गया। 1959 में कोलकाता विश्वविद्यालय से केमिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के बाद ने राय ने पीडीआइएल सिंदरी ज्वाइन की। इसके बाद उन्होंने धनबाद को ही राजनीतिक कर्मभूमि बना ली। उन्होंने धनबाद कोयलांचल में कोयला मजदूरों के लिए कई यादगार लड़ाई लड़ी। इसके साथ-साथ उनका कलम भी चलता था। वे नियमित रूप से देश की राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक विषयों पर लेखन भी करते थे। उनके विचार और आलेखों को देश के हिंदी और अंग्रेजी के बड़े अखबारों में स्थान मिलता था। इस कारण देश में मार्क्सवादी चिंतक के रूप में भी उनकी एक पहचान थी। राय दादा की कोयलांचल में राजनीतिक यात्रा एक मिसाल के रूप में याद की जाएगी। कोयलांचल में उनके राजनीतिक सफर के दाैरान विरोधी कई तरह के आरोप लगाते रहे। लेकिन, किसी ने भी उनकी ईमानदारी और सादगी पर कभी सवाल नहीं उठाया। वे कोयले में पूरा जीवन गुजार देने के बाद भी बेदाग निकल गए।
15 जून को मना था 85 वां जन्म दिवसः इसी साल 15 जून को समर्थकों ने एके राय का 85 वां जन्म दिवस नूनूडीह में मनाया था। तब किसी ने सोचा भी नहीं था कि राय दा सबको छोड़कर चले जाएंगे। राय दा को नजदीक से जानने वाले शिक्षक कन्हैया मिश्र कहते हैं- एके राय राजनीतिज्ञ, तकनिशियन और चिंतक के साथ-साथ धनबाद की पहचान भी थे। उनके निधन से धनबाद को गहरा आघात लगा है। इसकी भरपाई संभव नहीं है।