रिखियाधाम सेवादान व प्रेम का संगम
संवाद सहयोगी, मोहनपुर (देवघर) : रिखियापीठ में चल रहे पांच दिवसीय सीता कल्याणम सह शतचंडी
संवाद सहयोगी, मोहनपुर (देवघर) : रिखियापीठ में चल रहे पांच दिवसीय सीता कल्याणम सह शतचंडी यज्ञ बुधवार को सीताराम विवाह के साथ संपन्न हो गया। स्वामी योगप्रताप व स्वामी सूर्यप्रकाश ने यशोधारा के साथ यज्ञ की पूर्णाहुति दी। सैकड़ों कुंवारी कन्याओं का पूजन कर उन्हें भोजन कराया गया। स्वामी निरंजनान्द व स्वामी सत्यसंगानंद ने कन्याओं का देवी के रूप में पूजन किया। मौके पर कन्याओं ने एक से बढ़कर एक भजन प्रस्तुत किए। इसमें सीता राम मनोहर जोड़ी दशरथ नंदन जनक दुलारी.. भजन पर लोगों ने जमकर नृत्य किया। राम सीता की प्रतिमा की शादी कराई गई। इससे परिसर जनकपुर में तब्दील हो गया।
इस दौरान पद्मभूषण स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने कहा कि रिखिया प्राचीन काल से ही ऋषि मुनियों का निवास स्थान रहा है। इस कारण इस स्थान का नाम रिखिया पड़ा। स्वामी सत्यानंद सरस्वती भी एक महान ऋषि है। इन्होंने रिखिया का चयन तपोस्थल के रूप में किया। स्वामीजी ने रिखिया को रिखियापीठ की दर्जा दिया है और आज रिखिया विश्वपटल पर देखने को मिल रहा है। आज यहां जो इस महायज्ञ के दौरान आस्था व अध्यात्म का संगम देखने को मिल रहा है वह परमगुरुजी की देन है। रिखिया में ईश्वर का वास होने लगा है।
इस दौरान पीठाधीश्वरी स्वामी सत्यसंगानंद ने कहा कि यहां जो भी हो रहा है वह परमगुरु स्वामीजी के आदेशानुसार हो रहा है। वह आज भी हमारे बीच इस कार्यक्रम में मौजूद हैं, केवल हम लोग उन्हें देख नहीं पा रहे हैं। जबकि स्वामी हम लोगों को देखकर आदेश भी दे रहे है। उन्होंने कहा कि रिखिया में सेवादान व प्रेम का संगम है। जो परमगुरुजी द्वारा शुरू की है। उन्होंने उपस्थित सभी लोगों को स्वागत किया और यज्ञ के समापन में सबों के योगदान को सराहा।