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सैप्टिक टैंक तीन परिवारों के लिए बना मौत का कुआं

देवीपुर में सैप्टिक में हुए हादसे में ना केवल छह लोगों की मौत हुई।

By JagranEdited By: Published: Sun, 09 Aug 2020 07:59 PM (IST)Updated: Sun, 09 Aug 2020 07:59 PM (IST)
सैप्टिक टैंक तीन परिवारों के लिए बना मौत का कुआं
सैप्टिक टैंक तीन परिवारों के लिए बना मौत का कुआं

अमित सोनी, देवघर

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देवीपुर में सैप्टिक में हुए हादसे में ना केवल छह लोगों की मौत हुई बल्कि तीन परिवारों पर कुछ इस कदर कहर बरपाया है कि शायद ही आनेवाले समय में इसकी भरपाई हो सके। इसमें दो परिवार के सिर से तो रहनुमा का ही साया छीन गया, जबकि तीसरे परिवार में तीन भाइयों में एक भाई ही बचा। घटना के बाद से देवीपुर समेत कोल्हड़िया और पिरहाकट्टा गांव में मातम पसर गया है। मृतक के परिवार सदमे और कंद्रन की आगोश में समाए हुए हैं तो उनके जानने वाला भी अभी बहुत करीब जाकर दिलासा देने में हिचक रहे हैं। सबकी कातर नजरें आंखों से निकलने वाले आंसू को पोछ कर दिल पर पत्थर रखकर तसल्ली दे रहे थे।

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मुस्कुराते हुए घर से निकले थे पिता और दोनों पुत्र

तीन शवों को देख कंद्रन से गूंज उठा कोल्हड़िया गांव

देवीपुर बाजार में रविवार को अजीब-सा मातमी सन्नाटा पसरा है। जिधर देखें सबकी निगाहें नम थी। कारण भी कम दर्दनाक नहीं। एक साथ छह लोगों की मौत के सदमे में यह इलाका इस कदर डूबा है कि सबकी जुबां खामोश हो गई है। रविवार की सुबह सात बजे देवीपुर से सटा कोल्हड़िया गांव में सब कुछ सामान्य दिन के ही जैसा था। राजमिस्त्री गोविद मांझी के घर में उनके पोता-पोती खेल रहे थे। बहुएं खाना परोस कर ससुर और अपने पति को बाजार जाने के लिए रोज की तरह हंसी-खुशी विदा करने की तैयारी में जुटी थीं। इसी बीच गोविद की पत्नी की आवाज आई कि आज शाम में जब वापस आइए तो पोता-पोतियों के लिए चॉकलेट और बिस्कुट के अलावा घर का राशन भी लेकर आइएगा। इसके बाद गोविद मांझी अपने दोनों पुत्र बबलू और लालू के साथ घर से मुस्कुराते हुए निकले थे। इन्हें क्या पता था कि आज का दिन इनकी अंतिम विदाई का है।

सुबह देवीपुर बाजार पहुंचे और अपने साथ काम करने वाले पिरहाकट्टा के लीलू मुर्मू को साथ लेकर पहुंच गए उस सैप्टिक टैंक का शटरिग खोलने जो उनके जीवन का अंतिम पड़ाव बननेवाला था। तकरीबन साढ़े नौ बजे जब गोविद और लीलू टैंक के अंदर प्रवेश किए तो उनके साथ मकान मालिक ब्रजेश चंद और मिथिलेश चंद भी थे। इसके बाद जैसे ही हादसा होने की सूचना मिली तो बाजार में मौजूद गोविद के दोनों पुत्र भी मौके पर पहुंच गए और पिता की जान बचाने के ललक में बिना सोचे-समझे सैप्टिक टैंक के अंदर चले गए और सबकी जान चली गई। इधर जब यह खबर कोल्हड़िया तक पहुंची तो गांव में मातमी सन्नाटा पसर गया। हर तरफ कंद्रन की आवाजें गूंजने लगी। घटना ने ऐसी हालत पैदा कर दी थी कि ना तो पुत्र अपने पिता के शव को कंधा दे पाया और ना पिता ही पुत्र की अर्थी को कंधा दे पाए। तीनों पिता-पुत्र एक साथ एक ही साथ अपने परिवार को जिदगी की मझधार में छोड़कर दुनिया छोड़कर चले गए। घर में केवल तीन महिलाएं और चार मासूम बच्चे पति, पिता और दादा के इंतजार में बिलख रहे हैं। बच्चों को इंतजार था कि दादा काम से लौटेंगे तो उनके लिए चॉकलेट, बिस्कुट लेकर आएंगे। पत्नियों को पति के बाजार से राशन लेकर घर आने का इंतजार था, लेकिन इन्हें क्या पता कि घर से सुबह हंसते हुए विदा लिए थे वह सदा के लिए विदा हो चुके हैं। अब कभी लौटकर नहीं वापस नहीं आएंगे। अब ऐसी ही परिस्थिति के साथ ताउम्र जीने की आदत डालनी होगी। गोविद के अलावा उनके घर में दोनों पुत्र परिवार का सहारा थे। हादसे में मृत लालू को लगभग तीन साल का बेटा है, जबकि बेटी दो साल की है। बबलू को दो बेटा है जो पांच और छह साल का है। घटना में गोविद मांझी और उनका दोनों पुत्र बबलू मांझी और लालू मांझी काल की गोद में समा चुके हैं। गोविद के परिवार में केवल उनकी पत्नी व दो बहुएं व चार पोता-पोती ही बचे है। परिवार में अब कोई कमाने वाला नहीं रह गया। परिवार के सामने पेट भरने का सवाल अब इनके सामने है।

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बूढ़ी मां और पत्नी को था लीलू का इंतजार

पिरहाकट्टा गांव में भी मातमी सन्नाटा है। लीलू मूर्मू अपने घर का एकमात्र कमानेवाला था। रोज कमाना, रोज खाना। यही दिनचर्या थी। काम से घर वापस लौटता तब घर का चूल्हा जलता था, लेकिन अब आगे क्या होगा यह सवाल उनके घर में उसकी मां, पत्नी और दो मासूम बच्चों के सामने है। कैसे इनकी परवरिश होगी। लीलू की मौत ने इस परिवार पर इस कदर कहर बरपाया है कि जिसकी भरपाई नहीं हो सकती है। घटना की जानकारी मिलते ही मां व पत्नी की हालत इतनी खराब हो गई कि दोनों को संभाल पाना मुश्किल हो रहा था। मासूम बच्चे दादी और मां को रोता देख, रोने लग गए लेकिन इन्हें तब तक कुछ समझ में नहीं आया। जब पिता का शव देखा तो लिपट कर रोने लगे।

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दोनों भाइयों की मौत से देवीपुर में मातमी सन्नाटा

सैप्टिक टैंक से जब बड़ा भाई ब्रजेश चंद बाहर नहीं निकले तो छोटा भाई मिथलेश भी आवाज देते हुए अंदर चला गया, लेकिन जब दोनों बाहर निकले तो पूरे घर-परिवार से विदा लेकर ही निकले। ब्रजेश को एक पुत्र व पुत्री है जबकि मिथलेश को दो पुत्र और एक पुत्री है। ब्रजेश का अपनी मिल है। जहां तेल, गेंहू आदि की पिसाई होती है। इसके अलावा वे इलाके में भी काफी लोकप्रिय थे। देवीपुर दुर्गापूजा समिति के सचिव भी थे। इनका सबसे बड़ा भाई राजेश चंद बरनवाल कांग्रेस पार्टी से जुड़े हैं।

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करंट का था अंदेशा

बताया जाता है कि सैप्टिक टैंक के अंदर लगभग दो फीट पानी भरा हुआ था। जब अंदर जाने के बाद जब लीलू, गोविद, मिथलेश व ब्रजेश बाहर नहीं निकले तो आसपास मौजूद लोगों को अंदर किसी तरह विद्युत का प्रवाह होने की आशंका हुई। मौके पर मौजूद भाजपा नेता मनीष कुमार ने त्वरित विद्युत विभाग को फोन कर पावर कट करने को कहा। विभाग से उन्हें जानकारी दी गई कि लगभग आधे घंटा पूर्व ही विद्युत विच्छेद किया जा चुका है। इसके बाद बबलू भी अंदर गया जब वह भी बाहर नहीं निकला तो लालू भी अंदर जाने का प्रयास करने लगा। उस वक्त मनीष कुमार सहित अन्य लोगों ने उसे रोकने का काफी प्रयास किया, लेकिन उसने बात अनसुनी करते हुए अंदर चला गया फिर लौटकर नहीं निकला।

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रेसक्यू के लिए एनडीआरएफ को नहीं दी गई थी सूचना

घटना की सूचना मिलते ही देवीपुर थाना प्रभारी करुणा सिंह, एएसआइ एसएन शर्मा व मो. शफउद्दीन सहित बड़ी संख्या में पुलिस जबान मौके पर पहुंचे। अंदर फंसे लोगों को निकालने के लिए जेसीबी को बुलाया गया। जेसीबी के सहारे टंकी को तोड़कर एक-एक कर सभी को बाहर निकाला गया। हालांकि लोगों को बाहर निकलने के लिए एनडीआरएफ टीम को सूचना नहीं दी गई थी, जबकि देवघर में बकायदा एनडीआरएफ टीम मौजूद है। शव निकालने व अस्पताल लाने में एक घंटे से अधिक समय बीत गया। हालांकि बाद में जब इस घटना की सूचना एनडीआरफ की टीम को दी गई तो टीम ने मौके पर पहुंच कर जहरीली गैस व टंकी में जमा पानी बाहर निकालने की कार्रवाई की।


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